पीएफ़आई पर जल्द प्रतिबंध लगा सकती है केंद्र सरकार, साक्ष्य जुटा रहीं एजेंसियां 

07:17 am Aug 15, 2020 | दक्षिणेश्वर - सत्य हिन्दी

पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफ़आई) पर प्रतिबंध लगाने की माँग ज़ोर पकड़ती जा रही है। कर्नाटक में पिछले दिनों भड़की हिंसा के बाद एक बार फिर से अलग-अलग संगठन और राजनीतिक पार्टियाँ पीएफ़आई के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने लगी हैं। पीएफ़आई और उसके राजनीतिक संगठन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया (एसडीपीआई) की सारी गतिविधियाँ संदेह के घेरे में हैं। 

2006 में बने इस संगठन पर इसलामिक कट्टरता को बढ़ावा देने, साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने की कोशिश करने, हिंसक वारदातों को अंजाम देने के लिए युवकों को भड़काने, हवाला रैकेट चलाने जैसे कई गम्भीर आरोप हैं। 

देश के कई राज्यों की पुलिस और खुफ़िया एजेंसियां पीएफ़आई की गतिविधियों पर पैनी नज़र बनाये हुए हैं। नेशनल इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी (एनआईए) और केंद्र की अन्य एजेंसियां भी पीएफ़आई पर कार्रवाई के लिए साक्ष्य जुटा रही हैं।

सूत्रों ने बताया कि सुरक्षा एजेंसियों को पीएफ़आई के ख़िलाफ़ पुख्ता सबूत मिले हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इस कट्टरपंथी संगठन ने देश के लगभग सभी राज्यों में अपने पैर पसार लिए हैं। इसके कार्यकर्ता देश के कोने-कोने में सक्रिय हैं। 

सीएए विरोधी हिंसा में हाथ!

देश के अलग-अलग हिस्सों में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजन्स (एनआरसी) के विरोध में जो हिंसा हुई, उसमें पीएफ़आई की बड़ी भूमिका थी। सूत्रों की मानें तो देश की अलग-अलग एजेंसियों के पास इस बात के सबूत हैं कि कई जगह हिंसा पीएफ़आई के कार्यकर्ताओं ने ही की। कई जगह इस संगठन ने हिंसा करवाने के लिए लोगों को उकसाया। इसके अलावा हिंसा, उपद्रव के लिए कई संगठनों और लोगों की फंडिंग की। 

पीएफ़आई पर हवाला रैकेट चलाने, धमकियाँ देकर रुपये ऐंठने, अपहरण करवाने, हफ्ता वसूली करने जैसे आरोप भी हैं। कई जगह हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं और नेताओं की हत्या करने/करवाने का भी इस संगठन पर आरोप है। 

हाल ही में सुरक्षा एजेंसियों को यह जानकारी भी मिली है कि पीएफ़आई ने मणिपुर, नागालैंड और त्रिपुरा में आतंकी संगठनों से हाथ मिला लिया है। पीएफ़आई के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर जबरन धर्मांतरण करवाने, हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले काम करने के आरोप भी हैं। 

आंतरिक सुरक्षा के लिए ख़तरा 

देश के कई राज्यों की पुलिस अब यह मानने लगी है कि पीएफ़आई से देश की आंतरिक सुरक्षा को ख़तरा है। जाँच के दौरान एजेंसियों ने पाया कि पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी की सुरक्षा में तैनात एक एनएसजी कमांडो की हत्या पीएफ़आई ने ही करवाई। केरल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के कुछ कार्यकर्ताओं की हत्या भी इसी संगठन के कर्ता-धर्ताओं ने करवाई। 

एजेंसियों को मिली जानकारी के मुताबिक़, पिछले दिनों दिल्ली में भड़की हिंसा के लिए इसी संगठन ने बड़े पैमाने पर फंडिंग की और प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं को दिल्ली भेजा।

मुसलिम युवाओं को भड़काने का आरोप

हैरान करने वाली बात यह है कि पिछले छह सालों में इस संगठन ने अपने नेटवर्क का बड़े पैमाने पर विस्तार किया है और काफी तगड़ी रकम भी जमा की है। वैसे तो यह संगठन खुद को ग़ैर सरकारी बताता है और दावा करता है कि यह ग़रीब लोगों के उत्थान के लिए काम करता है, लेकिन इसकी सारी गतिविधियाँ सरकार/सरकारों के ख़िलाफ़ रही हैं और यह ग़रीब, बेरोज़गार मुसलिम युवाओं को भड़काता और उकसाता है। 

जिहादी संगठनों से संबंध! 

'ज़कात' के नाम पर इस संगठन ने करोड़ों रुपये वसूल किये हैं। अब प्रवर्तन निदेशालय भी इस संगठन के ख़िलाफ़ सक्रिय हो गया है। विश्वसनीय सूत्रों ने बताया कि प्रतिबंधित संगठन 'सिमी' से जुड़े रहे कई कट्टरपंथी अब पीएफ़आई के लिए काम कर रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों के सूत्रों ने बताया कि इस संगठन के संबंध जिहादी संगठनों से भी हैं। 

मुसलिम वोट बैंक में सेंध 

अगर बात इस संगठन की राजनीतिक गतिविधियों के बारे में की जाए तो, इसने एक राजनीतिक पार्टी भी बना ली है जिसका नाम सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया है। यह पार्टी मुसलमानों में अपना जनाधार देख रही है। केरल, कर्नाटक में इसने कांग्रेस के मुसलिम वोट बैंक में सेंध लगाई है। यही वजह है कि केरल की वामपंथी सरकार इस संगठन के ख़िलाफ़ ज़्यादा मुखर नहीं है। 

केरल में वामपंथियों को कांग्रेस से ही सबसे बड़ी चुनौती है और कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध का सीधा मतलब उसका फ़ायदा है। 

कर्नाटक में कांग्रेस पसोपेश में है। उसके सभी बड़े नेता यह जानते हैं कि यह कट्टरपंथी संगठन पार्टी का वोट बैंक काट रहा है। राज्य के नेताओं को आलाकमान से आदेश का इंतज़ार है। उधर, उत्तर प्रदेश सहित कुछ राज्यों की सरकारों ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने की माँग की है। 

कर्नाटक भी जल्द ही पीएफ़आई पर प्रतिबंध लगाने की माँग करेगा। लेकिन इस बात में दो राय नहीं है कि पीएफ़आई कई राज्य सरकारों के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है।

राज्य सरकारें भेज रहीं रिपोर्ट

ख़ुफ़िया एजेंसियों के सूत्रों की मानें तो इस संगठन से देश की सुरक्षा को ख़तरा है और इस ख़तरे को खत्म करने के लिए प्रतिबंध लगाना ज़रूरी है। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि अलग-अलग राज्य सरकारों से मिल रही रिपोर्टों के आधार पर केंद्र सरकार पीएफ़आई पर प्रतिबंध की भूमिका तैयार कर रही है और जल्द ही इस संगठन पर बड़ी कार्रवाई संभव है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, गुजरात के अलावा तमिलनाडु और कर्नाटक की सरकारों ने भी पीएफ़आई के ख़िलाफ़ सुबूत जुटाने के लिए विशेष टीमें बनायी हैं।