नए संसद भवन के बारे में जानने से पहले ये जानिए कि देश के 19 राजनीतिक दलों ने नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार का ऐलान किया है। इनमें प्रमुख दल हैं - कांग्रेस, सीपीएम, सीपीआई, आरजेडी, डीएमके, एनसीपी, शिवसेना यूबीटी, टीएमसी और आप। झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसी क्षेत्रीय पार्टियां भी इन 19 दलों में शामिल हैं। नए संसद भवन का 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली के सेंट्रल विस्टा में उद्घाटन करने वाले हैं।
नया संसद भवन और विवाद
नया संसद भवन सेंट्रल विस्टा का हिस्सा है। प्रधानमंत्री मोदी ने 10 दिसंबर 2020 को इसका शिलान्यास किया था। उस समय देश में कोरोना चरम पर था। विपक्ष ने उस समय भी कहा था कि इस पर खर्च किए जा रहे करोड़ों रुपये गैर जरूरी हैं। बताते चलें कि नए संसद भवन के बनाने पर करीब 1200 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं।सेंट्रल विस्टा परियोजना राष्ट्रपति भवन और इंडिया गेट के बीच का क्षेत्र है, जहां केंद्र सरकार से संबंधित सभी महत्वपूर्ण भवन स्थित हैं। इस परियोजना के दो मुख्य भाग हैं, एक नया संसद भवन और केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों को एक स्थान पर लाने के लिए एक नया सचिवालय परिसर। तीसरे भाग में राजघाट और उसके आसपास के क्षेत्र का विकास शामिल है, जो आम जनता के लिए उपलब्ध है, जिसमें सार्वजनिक सुविधाओं का विकास भी शामिल है। इस परियोजना में क्षेत्र में कुछ गैर-विरासत भवनों को ध्वस्त करना और उनके स्थान पर नए भवनों का निर्माण शामिल है।
नया संसद भवन और उसकी जरूरत
सेंट्रल विस्टा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू नया संसद भवन है। नए संसद भवन की जरूरत की कई वजहें हैं। सबसे खास है, संसद के आकार का विस्तार। समय समय पर हुए या आगे होने वाले परिसीमन के मद्देनजर लोकसभा क्षेत्रों की संख्या बढ़ रही है। उसी के मद्देनजर नए संसद भवन का निर्माण किया गया है। लोकसभा क्षेत्रों का अगला परिसीमन 2026 के लिए तय है, जो ज्यादा दूर नहीं है। सांसदों की संख्या पर 50 साल की लंबी रोक के साथ, यह उम्मीद की जाती है कि अब इसे एक बार और स्थगित नहीं किया जाएगा। 1976 के बाद से राज्यों और भारतीय जनसंख्या की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है, और लोकसभा सदस्यों की संख्या में वृद्धि करने की भी फौरन जरुरत है ताकि हर सांसद जनसंख्या के एक तय आकार का प्रतिनिधित्व करे। यह अनुमान लगाया गया है कि लोकसभा की मौजूदा संख्या 543 के वर्तमान से बढ़कर 800 से अधिक हो जाएगी।
लोकसभा की संख्या बढ़ाने से पहले एक बड़ी समस्या है, संसद भवन में लोकसभा हॉल का आकार। वर्तमान सदन में केवल 552 सीटें हैं, कोई नई सीट जोड़ने की गुंजाइश नहीं है। वास्तव में, लोकसभा के पीछे की दीवार को पहले ही गिरा दिया गया था, और इसके बगल के गलियारे को सांसदों के लिए अतिरिक्त कुर्सियों के लिए अधिक जगह बनाने के लिए लोकसभा हॉल में शामिल किया गया था। इसलिए, सभी सांसदों को समायोजित करने के लिए जगह बनाए बिना लोकसभा की ताकत नहीं बढ़ाई जा सकती थी। इसीलिए नए संसद भवन की जरूरत पड़ी।
इसी तरह, संसद के सेंट्रल हॉल में, जहां संयुक्त सत्र होता है, वास्तव में दोनों सदनों के सांसदों के लिए पर्याप्त सीटें नहीं हैं। सेंट्रल हॉल में लगभग 430 सीटें हैं, जो लोकसभा के आकार से भी कम हैं। संयुक्त सत्र के दौरान गलियारे में अस्थायी कुर्सियाँ लगाई जाती हैं ताकि सभी सदस्य बैठ सकें। निश्चित रूप से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की संसद के लिए यह एक गरिमापूर्ण दृश्य नहीं है। सेंट्रल हॉल संसद के लाउंज के रूप में भी कार्य करता है, क्योंकि भवन में सदस्यों के लिए सत्र के घंटों के बाहर अपना समय बिताने के लिए कोई समर्पित लाउंज नहीं है। उल्लेखनीय है कि लाउंज केवल खाली समय बिताने की जगह नहीं है।
नए संसद भवन में क्या-क्या
नए संसद भवन में एक लोकसभा हॉल, एक राज्यसभा हॉल, एक आंगन के चारों ओर एक लाउंज और एक केंद्रीय स्थान होगा जिसे संविधान गैलरी कहा गया है। इसमें एक अलग सेंट्रल हॉल नहीं होगा, क्योंकि लोकसभा में संयुक्त सत्र आयोजित करने के लिए बैठने की पर्याप्त क्षमता होगी। त्रिकोणीय भवन में लोकसभा उत्तर-पश्चिम कोने में, राज्यसभा दक्षिण-पश्चिम कोने पर और लाउंज पूर्वी कोने में है। भवन के बाहरी किनारों पर, घरों के आसपास और लाउंज में कार्यालय होंगे। नए लोकसभा हॉल की क्षमता 876 सीटों की है। लेकिन सीटें आकार में बहुत बड़ी हैं, और वे वास्तव में 1350 व्यक्तियों को समायोजित कर सकती हैं। इसलिए, यहां संसद के संयुक्त सत्रों को आसानी से आयोजित किया जा सकेगा। संयुक्त सत्र के लिए अलग हॉल की आवश्यकता अब नहीं होगी।
लोकसभा की तरह ही नए संसद भवन में राज्यसभा भी काफी बड़ी है। इसमें 400 सीटें हैं।
बहिष्कार की खास वजह
नए संसद भवन का जब शिलान्यास हुआ था तो केंद्र की मोदी सरकार ने उस कार्यक्रम में भी तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नहीं बुलाया था। विपक्षी दलों ने कोरोना काल में इसके निर्माण को फिजूलखर्ची यह कहकर बताया था कि अभी जब पुरानी बिल्डिंग से काम चल रहा है तो नए की जरूरत क्या है। वो भी जब देश में भयानक आपदा आई हो। आपदा के बाद भी अभी भी अर्थव्यवस्था की हालत सुधरी नहीं है। लेकिन विपक्ष ने अब जो 28 मई के कार्यक्रम के बहिष्कार की घोषणा की है, वो राष्ट्रपति को नहीं बुलाने को लेकर है।टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन का ट्वीट इस बारे में विपक्ष के नजरिए को बताता है- "संसद सिर्फ एक नई इमारत नहीं है, यह पुरानी परंपराओं, मूल्यों, मिसालों और नियमों के साथ एक प्रतिष्ठान है - यह भारतीय लोकतंत्र की नींव है। लेकिन पीएम मोदी को यह सब समझ में नहीं आता है। उनके लिए, रविवार को नए भवन का उद्घाटन मैं, मेरा, खुद के बारे में है। इसलिए हमें इस कार्यक्रम में नहीं गिनें।"
आम आदमी पार्टी ने कहा कि राष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं करना "उनका अपमान" है और पार्टी रविवार को संसद समारोह का बहिष्कार करेगी।
आप सांसद संजय सिंह ने अपने ट्वीट में कहा - "संसद भवन के उद्घाटन समारोह में महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी को आमंत्रित नहीं करना उनका घोर अपमान है। यह भारत के दलित आदिवासी और वंचित समाज का अपमान है। @AamAadmiParty मोदी के विरोध में उद्घाटन कार्यक्रम का बहिष्कार करेगी। क्योंकि इसमें महामहिम राष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं किया जा रहा है।"
कांग्रेस सहित 19 विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की जगह पीएम मोदी द्वारा नई संसद खोलने पर आपत्ति जताई है। कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति को उद्घाटन के लिए आमंत्रित नहीं करके सरकार पर "बार-बार मर्यादा का अपमान" करने का आरोप लगाया है।
खड़गे ने हाल ही में याद दिलाया था कि नई संसद के शिलान्यास समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति कोविंद को आमंत्रित नहीं किया गया था। और अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नए संसद भवन के उद्घाटन के लिए आमंत्रित नहीं किया जा रहा है।
19 विपक्षी दलों का बयान
खड़गे ने कहा था कि "वो (राष्ट्रपति) अकेले ही सरकार, विपक्ष और हर नागरिक का समान रूप से प्रतिनिधित्व करती हैं। वह भारत की पहली नागरिक हैं। उनके द्वारा नए संसद भवन का उद्घाटन लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक मर्यादा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का प्रतीक होता।"
बता दें दिसंबर 2020 में जब पीएम मोदी ने नए संसद भवन का शिलान्यास किया था, तब भी कांग्रेस ने इस कार्यक्रम का बहिष्कार किया था। सीपीआई और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम सहित कई विपक्षी दलों ने भी सरकार के इस कदम की आलोचना की है।