लखनऊ में नदवां मदरसे की जांच का मतलब क्या है 

01:30 pm Sep 15, 2022 |

सुन्नी मुसलमानों के सबसे बड़े और प्रमुख मदरसे नदवां में गुरुवार 15 सितंबर को सरकार ने सर्वे और जांच के लिए टीम भेज दी। इसमें एसडीएम, बीएसए और डीएमओ की टीम शामिल है। योगी सरकार ने गुरुवार को ही जवाहर भवन में मदरसा बोर्ड की बैठक बुलाई थी। जिसमें यह फॉर्मेट तय होना था कि किन-किन बिन्दुओं पर मदरसों की जांच होगी। लेकिन उस बैठक से पहले ही सबसे बड़े मदरसे दारुल उलूम नदवा-तुल-उलेमा मदरसे में जांच टीम पहुंच गई है। इस रिपोर्ट के लिखने के समय टीम का सर्वे मदरसे में चल रहा था और कोई आधिकारिक बयान देने से अधिकारियों ने मना कर दिया। नदवां मदरसे के बाहर पुलिस तैनात कर दी गई है। नदवां मदरसे से जांच की शुरुआत कर योगी सरकार ने अपना टारगेटेड (लक्षित) संकेत दे दिया है। इस पर दोनों तरफ से प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू होगा। जो हिन्दू-मुसलमानों की डिबेट को जिन्दा रखेगा।

मदरसों की जांच देश में राजनीतिक मुद्दा बन गई है। इसकी शुरुआत असम से हुई थी, जहां असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने खुद बयान देकर कहा था कि कई मदरसों के लिंक आतंकी गुटों से पाए गए हैं। सरकार इस पर कार्रवाई करेगी। इसके बाद इन्हीं कथित आरोपों के आधार पर असम में तीन मदरसे गिरा दिए गए। असम में अभी कार्रवाई जारी ही थी कि यूपी और उत्तराखंड ने भी मदरसों की जांच करने का आदेश दे दिया। यूपी के अमरोहा में एक मदरसे को अवैध बताकर गिराया भी जा चुका है।

लखनऊ में गुरुवार को जिस दारुल उलूम नदवा-तुल-उलेमा मदरसे की जांच के लिए योगी सरकार की टीम पहुंची है, उसकी स्थापना 26 सितंबर 1898 में हुई थी। भारत की आजादी की लड़ाई में इस मदरसे का बहुत बड़ा योगदान रहा है। यहां पर विदेशी छात्र भी पढ़ने आते हैं। इसलिए इतने बड़े मदरसे पर कार्रवाई चौंकाने वाली मानी जा रही है। जांच टीम ने नदवां मदरसे में पहुंचने के बाद टीचरों का हाजिरी रजिस्टर अपने कब्जे में ले लिया। फिर उन्होंने टीचरों का भौतिक सत्यापन शुरू किया। उन्हें कितनी सैलरी मिलती है, वो क्या विषय पढ़ाते हैं, उसके बारे में पूछताछ शुरू हुई। फिर टीम के लोग कुछ क्लासेज (कक्षाओं) में भी गए और ये जानने की कोशिश की कि छात्रों को क्या पढ़ाया जा रहा है।

नदवां मदरसा लखनऊ में गुरुवार को जांच करते योगी सरकार के अधिकारी

योगी सरकार ने गुरुवार को जवाहर भवन में मदरसा बोर्ड की बैठक बुलाई है। जिसमें यह तय होना है कि किन मदरसों की जांच होगी और वो जांच किन बिन्दुओं पर होगी। सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण धर्मपाल सिंह ने हाल ही में कहा था कि सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों के अलावा प्राइवेट मदरसों की भी जांच होगी। इस सर्वे से हमारा लक्ष्य है कि हम इन्हें मुख्यधारा से जोड़कर आईएएस, आईपीएस, इंजीनियर और डॉक्टर बनाएंगे। इसलिए इन्हें हिंदी, गणित, अंग्रेजी और सामाजिक विषय भी पढ़ना जरूरी है। हालांकि सरकार ने गुरुवार को जिस नदवां मदरसे पर सर्वे की कार्रवाई की है, उसमें दीनी तालीम के अलावा आधुनिक विषय भी पढ़ाए जाते हैं। दूसरी तरफ जो प्राइवेट मदरसे सरकारी पैसा हजम कर रहे हैं, उनमें कार्रवाई में तेजी नहीं आ रही है। 

प्राइवेट मदरसों पर कार्रवाई पर चुप्पी क्योंः हाल ही में योगी सरकार के पास इरम एजुकेशन सोसाइटी लखनऊ समेत कई संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे प्राइवेट मदरसों की शिकायतें पहुंची थीं, जिनमें टीचरों को पूरी सैलरी न देना, सरकार की ग्रांट से मिलने वाली रकम का आधा पैसा टीचर को देना, एक-एक टीचर पर कई-कई विषयों का बोझ होना जैसी शिकायतें हुई थीं। लेकिन सरकार ने अभी तक ऐसी एक भी संस्था पर कार्रवाई नहीं की। अकेले इरम एजुकेशन सोसाइटी लखनऊ और बाराबंकी शहर के 16 आधुनिक मदरसे सरकारी जांच के रडार पर हैं। योगी सरकार ने हाल ही में बीएसए के नेतृत्व में एक टीम से जांच भी कराई थी। इसके बाद कुछ टीचरों को बीएसए के पास सोसाइटी की पूरी जानकारी के साथ भेजा गया था। लेकिन उस जांच रिपोर्ट पर क्या कार्रवाई हुई कोई नहीं जानता।दरअसल, यूपी के प्राइवेट मदरसों में सबसे ज्यादा शोषण टीचरों का ही हो रहा है। सरकार से मिलने वाली ग्रांट का बहुत बड़ा हिस्सा इसके मालिकान हड़प लेते हैं और टीचरों से जबरन चेक पर साइन कराए जाते हैं। जिन टीचरों को बिना ग्रांट वाली सूची में रखा जाता है, उनका शोषण तो और भी ज्यादा है। उन्हें सैलरी के नाम पर 12 से 18 हजार रुपये मिलते हैं।

मदरसों से जुड़े लोगों का कहना है कि मदरसों को लेकर सरकार की नीयत ठीक हो सकती है लेकिन अगर टीचरों का शोषण खत्म नहीं हुआ तो ऐसा सर्वे बेकार है। उनका कहना है कि सरकार को चाहिए कि मदरसा बोर्ड के जरिए ऐसे सभी मदरसों का अधिग्रहण कर ले और दीनी तालीम के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा भी दे। अगर सरकार ये कदम उठाए तो उसके सर्वे का मकसद भी पूरा हो जाएगा। अगर यह राजनीति के लिए हो रहा है तो अलग बात है। क्योंकि अब बहुत गरीब घरों के बच्चे ही मदरसों में जा रहे हैं। मुस्लिमों के ज्यादातर बच्चे स्कूल-कॉलेजों में शिक्षा ले रहे हैं। 

सर्वे का भारी विरोध

बहरहाल, मदरसों के सर्वे का भारी विरोध हो रहा है। भारतीय मुस्लिमों की दो प्रमुख संस्थाओं ने मदरसों में सर्वे की कार्रवाई का विरोध करते हुए इसे सरकार का साम्प्रदायिक नजरिया करार दिया है। सुप्रसिद्ध दारुल उलूम देवबंद के प्रिंसिपल और जमात-ए-उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि सर्वे का मकसद अगर सर्वे हो तो ठीक है। लेकिन इसके जरिए सरकार नफरत को बढ़ावा दे रही है। सरकार यह बताने की कोशिश कर रही है, जैसे मदरसों में न जाने क्या हो रहा है। सरकार साम्प्रदायिक नजरिए से काम कर रही है। मुसलमानों को ऐसा महसूस हो रहा है कि सरकार की हर नीति उन्हें बर्बाद करने के लिए आ रही है। मौलाना मदनी ने एक घंटा पहले अपना एक वीडियो ट्वीट किया है। जिसमें कहा गया है कि मदरसों का काम धर्म की रक्षा करना है। और वो काम हम करते रहेंगे।

मौलान अरशद मदनी ने बुधवार को भी एक बयान जारी कर कहा था कि अन्य स्कूल, कॉलेजों और संस्थाओं की जांच सरकार क्यों नहीं करवा रही है। एआईएमआईएम असदद्दीन ओवैसी ने भी बुधवार को कहा था कि सरकार आरएसएस संचालित संस्थाओं और स्कूलों का सर्वे क्यों नहीं करवा रही है। सरकार की नीयत साफ नहीं है।