दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे किसानों के आंदोलन ने मरक़जी सरकार और बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। बिहार चुनाव में मिली जीत की ख़ुमारी में डूबी पार्टी हैदराबाद, बंगाल की ओर तेज़ी से क़दम बढ़ा रही थी लेकिन किसानों के जमावड़े ने उसके होश उड़ा दिए हैं। दूसरी ओर, जिस तरह विपक्षी दलों के नेताओं का समर्थन किसानों के आंदोलन को मिल रहा है, उससे अब सरकार को समझ नहीं आ रहा है कि आगे क्या किया जाए।
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत तमाम बड़े नेता, प्रवक्ता यही कह रहे हैं कि ये क़ानून किसानों के हित में हैं और उनको ग़ुलामी से मुक्ति दिलाएंगे। लेकिन उनकी दलीलों का किसानों के लिए कोई मतलब नहीं है क्योंकि उनकी एक सूत्रीय मांग है- इन तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लो।
हैरान-परेशान बीजेपी के नेता और केंद्र सरकार के आला मंत्री रविवार रात को नड्डा के घर पर जुटे। बैठक में अमित शाह के अलावा राजनाथ सिंह और नरेंद्र तोमर भी मौजूद रहे। पार्टी के नेताओं ने इस बात पर माथापच्ची की कि कैसे इस मुसीबत का हल निकाला जाए क्योंकि किसानों के बॉर्डर्स पर बैठ जाने के कारण दिल्ली में जाम की भयंकर समस्या खड़ी हो जाएगी। यह बैठक दो घंटे तक चली।
मोदी सरकार को बिहार की जीत के बाद लगा था कि कृषि क़ानूनों पर किसानों ने मोहर लगा दी है। लेकिन पंजाब-हरियाणा के किसानों ने दिल्ली बॉर्डर पर आकर उसे बता दिया है कि अब तक उनके राज्यों में चल रहा यह आंदोलन कितना ताक़तवर है।
सरकार को भी किसानों की ताक़त और इरादों का अंदाज़ा हो चुका है क्योंकि सड़कें खोदने से लेकर, रास्तों को ब्लॉक करने की उसने हज़ार कोशिशें कर लीं लेकिन वह किसानों को दिल्ली पहुंचने से नहीं रोक सकी।
राजधानी घेरने की तैयारी
अब जब दिल्ली-हरियाणा के बॉर्डर पर हज़ारों किसान जमा हो चुके हैं तो सरकार को घुटनों के बल आना पड़ा है। अमित शाह को अपील करनी पड़ी है कि किसान बुराड़ी ग्राउंड पर आ जाएं, सरकार उनसे तुरंत बात करेगी। लेकिन किसानों ने ऐसी किसी भी शर्त को ठुकरा दिया है और चेतावनी दी है कि दिल्ली में प्रवेश के पांचों रास्तों को ब्लॉक कर राजधानी को घेर लिया जाएगा।
खालिस्तानी कहने से लोग नाराज
बीजेपी को किसान आंदोलन के कारण राजनीतिक नुक़सान का भी डर सता रहा है। पंजाब और हरियाणा में बड़ी संख्या में किसानों की आबादी है। ये दोनों राज्य देश की बड़ी आबादी का पेट भरते हैं। किसानों पर हुए ज़ुल्म के बाद सोशल मीडिया पर आम लोगों में भी जबरदस्त नाराजगी है।
किसानों को खालिस्तानी, देशद्रोही बताने पर भी आम लोग भड़क गए हैं। उन्होंने कहा है कि बीजेपी नेताओं को किसानों की आलोचना का हक़ है लेकिन मोदी की हुक़ूमत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने पर उन्हें खालिस्तानी बता देना अन्नदाता का घोर अपमान है।
पसोपेश में फंसी बीजेपी और मोदी सरकार के सामने किसानों की मांगें मानने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा है। सरकार और संगठन दोनों ने मिलकर पूरा जोर लगा दिया है कि वे किसानों के आंदोलन को कांग्रेस प्रायोजित साबित कर दें लेकिन किसान नेताओं ने उनके इन दावों की यह कहकर हवा निकाल दी है कि किसानों के मंच पर कोई भी राजनीतिक व्यक्ति नहीं आएगा।
सुनिए, देवेंद्र शर्मा से खास बातचीत-
दो दिन पहले किसानों के आंदोलन को कांग्रेस का आंदोलन बताने वाले हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के बयान को ख़ुद उनके नेता अमित शाह ने खारिज किया है। शाह ने कहा कि उन्होंने कभी नहीं कहा कि किसानों का आंदोलन राजनीतिक है।
विपक्ष का मिला साथ
किसान आंदोलन के पक्ष में राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और वाम दलों के नेता खुलकर उतरे हैं। दिल्ली सरकार तो किसानों के लिए पानी के टैंक और उनके खाने की भी व्यवस्था कर रही है। केजरीवाल साफ कह चुके हैं कि केंद्र सरकार किसानों से तुरंत बात करे। किसान ख़ुद भी कह चुके हैं कि चार महीने का राशन वे लोग साथ लेकर आए हैं। ऐसे में विपक्षी नेताओं का सहयोग मिलने से भी किसानों के हौसले बुलंद हैं। देखना होगा कि बीजेपी और मोदी सरकार इस मसले का क्या हल निकालती है।