बीजेपी से ‘प्रचंड’ समर्थन की आस तो अर्णब को भी नहीं होगी!

01:42 pm Nov 06, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

बीजेपी के सामने बड़ा लक्ष्य आ खड़ा हुआ है। बिहार चुनाव के बीच ही उसने अपने कार्यकर्ताओं को नया काम दिया है। ये ऐसा काम है जो शायद ही आज़ाद भारत के इतिहास में किसी राजनीतिक दल ने अपने कार्यकर्ताओं को दिया हो। छोटे से लेकर बड़ा मतलब राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर बीजेपी का ब्लॉक अध्यक्ष और सामान्य कार्यकर्ता भी इस काम में जुट गया है। 

केंद्र सरकार में गृह मंत्री से लेकर राज्यों के मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष भी इसी काम में जुटे हुए हैं। काम है- रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी की रिहाई। 

आर्किटेक्ट अन्वय नाइक और उनकी मां की आत्महत्या के मामले में मुंबई और रायगढ़ पुलिस द्वारा गिरफ़्तार पत्रकार अर्णब गोस्वामी की रिहाई को बीजेपी ने राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया है। दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र और बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश, सब जगह उसके नेता, कार्यकर्ता इस मामले में सड़क पर हैं। उनका कहना है कि अर्णब की गिरफ़्तारी प्रेस की आज़ादी पर हमला है। 

जबकि मुंबई पुलिस और महाराष्ट्र सरकार ने साफ किया है कि अर्णब की गिरफ़्तारी अन्वय नाइक की बेटी और पत्नी द्वारा इस मामले में अदालत जाने के बाद हुई है। सरकार के मुताबिक़, अदालत ने मामले में जांच करने के निर्देश दिए और आगे की कार्रवाई पुलिस ने अपनी जांच के आधार पर की और इसमें प्रेस की आज़ादी पर हमले जैसी कोई बात ही नहीं है। 

लेकिन आप सोशल मीडिया पर जाएंगे तो देखेंगे कि बीजेपी ने इस मुद्दे पर बवाल काट रखा है। तमाम नेता-कार्यकर्ता वीडियो जारी कर अर्णब को रिहा करने की मांग कर रहे हैं। 

अर्णब के पक्ष में प्रदर्शन करते महाराष्ट्र बीजेपी के कार्यकर्ता।

मौक़े की थी तलाश

फ़िल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में जिस तरह की पत्रकारिता रिपब्लिक टीवी ने की, उसे लेकर सवाल तो ढेरों खड़े हुए ही, इसे पत्रकारिता को बदनाम करने वाला भी माना गया। अर्णब ने उद्धव ठाकरे को चैलेंज किया, महाराष्ट्र को पाकिस्तान और मुंबई को पीओके बताने वालीं सिने अदाकारा कंगना रनौत का खुलकर समर्थन किया लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की। 

पानी सिर के ऊपर चले जाने के बाद भी ठाकरे सरकार चुप रही और वह मौक़ा तलाश रही थी। जैसे ही अन्वय नाइक का परिवार ठाकरे सरकार के गृह मंत्री अनिल देशमुख से मिला और न्याय दिलाने की मांग की, सरकार भी सक्रिय हो गयी। 

अन्वय ने अपने सुसाइड नोट लिखा था कि पत्रकार अर्णब गोस्वामी, फिरोज़ शेख और नितीश सारडा ने उनके पांच करोड़ 40 लाख रुपये नहीं दिए हैं। इस बात से परेशान होकर अन्वय और उनकी मां ने आत्महत्या जैसा कठोर क़दम उठाया।

इसी दौरान टीआरपी घोटाले में नाम आने को लेकर रिपब्लिक चैनल की पूरी संपादकीय टीम के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई और अर्णब पर शिकंजा कस गया। 

इस मामले में अदालत में कार्यवाही चल रही है और पुलिस भी अपना काम कर रही है लेकिन बीजेपी ने इसे जबरदस्त राजनीतिक रंग दे दिया है। जिस प्रचंड तरीके से बीजेपी ने अर्णब का समर्थन किया है, उसकी तो उम्मीद अर्णब को भी नहीं रही होगी। 

महाराष्ट्र सरकार का पुतला फूंकते एबीवीपी कार्यकर्ता।

बीजेपी के साथ ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने भी पूरी ताक़त अर्णब के पक्ष में झोंक दी है। कई कॉलेजों में अध्यक्ष और एबीवीपी कार्यकर्ता महाराष्ट्र सरकार का पुतला फूंक रहे हैं। 

बीजेपी-शिव सेना में दुश्मनी बढ़ी

अर्णब की गिरफ़्तारी के बाद उद्धव ठाकरे सरकार और बीजेपी की सियासी अदावत चौराहे पर आ गई है। बीजेपी के सुशांत सिंह मामले को तूल देने के बाद भड़की ये चिंगारी अब शोला बन चुकी है और कहा जा रहा है कि ठाकरे सरकार भी अर्णब से अपने अपमान का बदला लेने का मौक़ा नहीं चूकेगी। दूसरी ओर, बीजेपी ने अर्णब के प्रति अपने ‘प्यार’ को जगजाहिर कर दिया है। लेकिन उससे यह सवाल ज़रूर पूछा जा रहा है कि क्या वह किसी और पत्रकार के समर्थन में भी इसी तरह खड़ी होगी। 

अर्णब जिस तरह अपने कार्यक्रमों में शिव सेना को सोनिया सेना कहकर बुलाते थे, उद्धव ठाकरे और संजय राउत को चुनौती देते थे, उसे शिव सेना कभी नहीं भूलेगी और उसने अन्वय नाइक के मामले में मराठी कार्ड खेलकर महाराष्ट्र के लोगों को यह बताया है कि बीजेपी अभियुक्त के पक्ष में खड़ी है। 

राजनीतिक नुक़सान होगा

फिलहाल, बीजेपी के लिए अर्णब की रिहाई सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है। इतने जबरदस्त ढंग से तो वह शायद अपने किसी नेता के लिए नहीं खड़ी हुई। लेकिन इसका राजनीतिक नुक़सान भी उसे उठाना पड़ सकता है। अब तक जो न्यूज़ चैनल उसे सपोर्ट करते थे, वे भी उससे मुंह फेर सकते हैं क्योंकि टीआरपी घोटाले की जंग में अर्णब उन चैनलों को जमकर बदनाम कर चुके हैं। ऐसे में ये चैनल कतई नहीं चाहेंगे कि वे अर्णब का खुलकर पक्ष लेने वालों के साथ खड़े हों। शायद, उन्हें भी अब पत्रकारिता का सही मतलब समझ में आएगा कि निष्पक्षता ही पत्रकारिता की असली कमाई है ना कि सत्ता परस्ती।