भारत और बांग्लादेश के प्रधानमंत्रियों के बीच आज द्विपक्षीय वार्ता हुई। इस वार्ता से इतर बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि दोनों देशों के बीच व्यापार तेजी से बढ़ रहा है।
पीएम नरेंद्र मोदी ने मंगलवार सुबह राष्ट्रपति भवन में बांग्लादेशी पीएम का स्वागत किया। शेख हसीना को औपचारिक गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। हसीना ने कहा, 'दोस्ती से आप किसी भी समस्या को हल कर सकते हैं। इसलिए, हम हमेशा ऐसा करते हैं।' इसी बीच पत्रकारों से बात करते हुए शेख हसीना ने 1971 में मुक्ति संग्राम के दौरान भारत के योगदान के लिए धन्यवाद दिया। तो सवाल है कि भारत ने आख़िर ऐसा क्या किया था कि बांग्लादेश 50 साल बाद भी उसके लिए धन्यवाद देता रहा है?
बांग्लादेश के इतिहास में 6 दिसंबर 1971 का दिन बेहद खास है। इसी दिन भारत ने बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दी थी। इसके 10 दिन के अंदर ही पाकिस्तानी सेना के कमांडर ने पूर्वी पाकिस्तान में आत्मसमर्पण कर दिया। इसी के साथ पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बन गया। इससे पहले वह पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा था। पूर्वी पाकिस्तान में देश की 56 प्रतिशत आबादी रहती थी। उनकी भाषा बांग्ला है। 1947 में पाकिस्तान भी आज़ाद हुआ था और 1971 आते-आते वह दो देशों में बँट गया।
कहा जाता है कि बांग्लादेश के अलग बनने के कई कारण थे। भाषा का मुद्दा काफ़ी अहम था। पूर्वी पाकिस्तान की आबादी बांग्ला भाषी थी, तो पश्चिमी पाकिस्तान की आबादी उर्दू भाषी। जब उर्दू को राजभाषा घोषित किया गया तो बांग्ला भाषी पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में असंतोष और बढ़ गया था।
आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के प्रति पश्चिमी पाकिस्तान के रवैये, उनके साथ हुए अन्याय को भी इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाता है। देश के शासन प्रशासन पर पश्चिमी पाकिस्तान की ही चलती थी। वहीं के लोग राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर सेना तक में अहम पदों पर थे। पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के उत्पीड़न की ख़बरें आने लगीं।
इन्हीं सब वजहों से पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में अलगाव की भावना पैदा हुई। शेख मुजीबुर रहमान पूर्वी पाकिस्तान की स्वायत्ता के लिए शुरू से संघर्ष कर रहे थे। उन्होंने इसके लिए छह सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की थी। इन्हीं कारणों से वह पाकिस्तानी शासन के निशाने पर थे।
मुजीब उर रहमान को गिरफ्तार करके पश्चिमी पाकिस्तान ले जाया गया। इसके बाद उनकी अगुवाई में मुक्ति वाहिनी का गठन किया गया। पूर्वी पाकिस्तान में आजादी का आंदोलन दिन ब दिन तेज होता जा रहा था। पाकिस्तान की सेना ने आंदोलन को दबाने के लिए अत्याचार का सहारा लिया। मार्च 1971 में पाकिस्तानी सेना ने क्रूरतापूर्वक अभियान शुरू किया। बड़े पैमाने पर हत्या और बलात्कार की ख़बरें भी आने लगी थीं।
भारत में शरणार्थियों की समस्या पैदा होने लगी। इस कारण भारत पर कार्रवाई के लिए दबाव पड़ा। 31 मार्च, 1971 को इंदिरा गांधी ने भारतीय सांसद में भाषण देते हुए पूर्वी बंगाल के लोगों की मदद की बात कही थी। 29 जुलाई, 1971 को भारतीय सांसद में सार्वजनिक रूप से पूर्वी बंगाल के लड़कों की मदद करने की घोषणा की गई।
इससे बौखलाए पाकिस्तान की वायु सेना ने 3 दिसंबर 1971 को भारत पर हमला कर दिया। भारत के अमृतसर और आगरा समेत कई शहरों को निशाना बनाया। इसके साथ ही भारत-पाक युद्ध की शुरुआत हो गई। 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान की सेना के आत्मसमर्पण और बांग्लादेश के जन्म के साथ युद्ध ख़त्म हो गया। और इस तरह बांग्लादेश के अस्तित्व में आने में भारत का अहम योगदान रहा।