इसी साल मार्च में वैज्ञानिकों के एक दल ने कहा था कि यदि कोरोना वायरस लंबे समय तक रहा तो वह मौसमी बीमारी की तरह हो जाएगा। अब ताज़ा जो रिपोर्ट आ रही है उससे लगता है कि कोरोना कभी ख़त्म नहीं होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि कोरोना से ठीक हुए कई लोग भी संक्रमित हो रहे हैं और कोरोना का टीका लगाए हुए लोग भी। इसका मतलब है कि 'हर्ड इम्युनिटी' यानी 'झुंड प्रतिरक्षा' की संभावना धुमिल होती दिख रही है। हर्ड इम्युनिटी ही वह एक उम्मीद की किरण थी जिससे कोरोना संक्रमण को काबू किए जाने की आस थी।
कोरोना संक्रमण के मामले पिछले साल आने के बाद से ही कहा जाता रहा था कि हर्ड इम्युनिटी आने के बाद संक्रमण कम होने लगेगा। हर्ड इम्युनिटी यानी झुंड प्रतिरक्षा का सीधा मतलब यह है कि कोरोना संक्रमण से लड़ने की क्षमता इतने लोगों में हो जाना कि फिर वायरस को फैलने का मौक़ा ही नहीं मिले। यह हर्ड इम्युनिटी या तो कोरोना से ठीक हुए लोगों या फिर वैक्सीन के बाद शरीर में बनी एंटीबॉडी से आती है।
शुरुआत में कहा जा रहा था कि यदि किसी क्षेत्र में 70-80 फ़ीसदी लोगों में कोरोना से लड़ने वाली एंटीबॉडी बन जाएगी तो हर्ड इम्युनिटी की स्थिति आ जाएगी। लेकिन अब कोरोना से ठीक हुए लोगों और वैक्सीन की दोनों खुराक लिए हुए लोगों में भी संक्रमण के मामले आने के बाद इस पर सवाल उठने लगे हैं। अब विशेषज्ञ कह रहे हैं कि बेहद तेज़ी से फैलने वाले कोरोना के डेल्टा वैरिएंट ने हर्ड इम्युनिटी की संभावना को धुमिल कर दिया है।
डेल्टा वैरिएंट अब तक सबसे ज़्यादा तेज़ फैलने वाला और सबसे ज़्यादा घातक भी है। फ़ोर्ब्स की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन के वुहान में सबसे पहले मिले कोरोना संक्रमण से 50 फ़ीसदी ज़्यादा तेज़ी से फैलने वाला अल्फा वैरिएंट था। यह वैरिएंट सबसे पहले इंग्लैंड में पाया गया था। इस अल्फा से भी 40-60 फ़ीसदी ज़्यादा तेज़ी से फैलने वाला डेल्टा वैरिएंट है। यह सबसे पहले भारत में मिला था और अब तक दुनिया के अधिकतर देशों में फैल चुका है। कई देशों में संक्रमण काफ़ी तेज़ी से फैल रहा है।
डेल्टा वैरिएंट के बारे में जो रिपोर्ट आ रही है वह बेहद परेशान करने वाली है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार सार्वजनिक स्वास्थ्य के हार्वर्ड टी.एच. चैन स्कूल में संक्रामक रोग डाइनेमिक्स के विशेषज्ञ और एक महामारी विज्ञानी विलियम हैनेज ने कहा, 'डेल्टा कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे हम मिटा पाएंगे'। वह ऐसा इसलिए कहतें हैं क्योंकि डेल्टा वैरिएंट बेहद घातक है।
अमेरिका और यूरोप के उन देशों में जहाँ 50-60 फ़ीसदी आबादी को दोनों टीके लगाए जा चुके हैं वहाँ भी कोरोना संक्रमण तेज़ी से फैल रहा है।
हाल ही में पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड यानी पीएचई ने एक रिपोर्ट में कहा था कि डेल्टा वैरिएंट के साथ अस्पताल में भर्ती कुल 3,692 लोगों में से 22.8% को पूरी तरह से टीका लगाया गया था। यूरोप के बाहर भी ऐसे ही हालात हैं। सिंगापुर के भी सरकारी अधिकारियों ने तब कहा था कि इसके कोरोना वायरस के तीन चौथाई मामले टीकाकरण वाले व्यक्तियों में हुए, हालाँकि कोई भी गंभीर रूप से बीमार नहीं था।
कुछ दिनों पहले यूके के ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप के प्रमुख प्रोफेसर एंड्रयू पोलार्ड ने भी चेतावनी दी थी कि डेल्टा वैरिएंट ने झुंड प्रतिरक्षा की संभावना कम कर दी है। पोलार्ड ने मंगलवार को कोरोना पर ऑल-पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप को बताया कि एक और भी ज़्यादा संक्रामक वैरिएंट की संभावना है और इसलिए, ऐसा कुछ भी नहीं है जो घातक वायरस को फैलने से पूरी तरह से रोक सके। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, प्रोफेसर पोलार्ड ने ऑनलाइन सत्र के दौरान समझाया, 'इस वायरस के साथ समस्या यह है कि यह खसरा नहीं है। यदि 95% लोगों को खसरा का टीका लगाया जाता है तो वायरस आबादी में फैल नहीं सकता है।'
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, मिनेसोटा के रोचेस्टर में मेयो क्लिनिक में वैक्सीन रिसर्च ग्रुप के निदेशक ग्रेग पोलैंड ने कहा, 'क्या हम झुंड की प्रतिरक्षा प्राप्त करेंगे? नहीं, परिभाषा के अनुसार, बहुत कम संभावना है।'
वह कहते हैं कि 'फिर, अगर हम भाग्यशाली रहे तो यह होने की संभावना है कि यह इन्फ्लूएंजा के समान कुछ बन जाएगा, जो हमारे पास हमेशा रहेगा।' उन्होंने कहा, 'यह और अधिक मौसमी हो जाएगा, ठीक वैसे ही जैसे वे कोरोना वायरस हैं जो पहले से ही मौजूद हैं और हमें बस टीकाकरण करते रहना होगा।' वह कहते हैं कि 1918 में स्पैनिश फ्लू दिखाता है कि यह कोरोना कैसे व्यवहार करेगा।
इसी साल मार्च में संयुक्त राष्ट्र द्वारा गठित वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की कमिटी ने रिपोर्ट में कहा था कि धीरे-धीरे कोरोना के मौसमी बीमारी की तरह हो जाने की आशंका है। संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने विशेषज्ञों की एक कमेटी को यह ज़िम्मेदारी सौंपी थी कि वह उस रहस्य का पता लगाए कि मौसम और हवा की गुणवत्ता का कोरोना के फैलने पर क्या असर होता है। कमेटी में 16 विशेषज्ञ शामिल थे।
संयुक्त राष्ट्र की गठित कमेटी ने एक बयान में कहा था कि इससे आशंका बढ़ गई है कि अगर यह कई सालों तक बना रहता है तो कोरोना एक गंभीर मौसमी बीमारी साबित होगा।