एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में कहा गया है कि फाइजर की तुलना में एस्ट्राजेनेका की कोविड वैक्सीन से जुड़े मामलों में ब्लड क्लॉटिंग का जोखिम ज़्यादा रहा है। इसमें कहा गया है कि यह 30 फ़ीसदी तक अधिक है।
कोरोना टीके लगाने के बाद ब्लड क्लॉटिंग यानी ख़ून के थक्के जमने की शिकायतें कई बार आ चुकी हैं। पिछले साल एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन पर यूरोपीय यूनियन के बड़े देशों- जर्मनी, इटली, फ्रांस जैसे कई देशों ने तात्कालिक तौर पर रोक लगा दी थी। ऐसे मामले भारत में भी आए थे। टीकाकरण के बाद विपरीत प्रभावों पर नज़र रखने वाले सरकारी पैनल ने कहा था कि कोविड वैक्सीन के बाद रक्तस्राव और थक्के जमने के मामले मामूली हैं और ये उपचार किए जाने के अपेक्षा के अनुरूप हैं।
भारत के पैनल ने पिछले साल मई महीने में कहा था कि उसने 700 में से 498 'गंभीर मामलों' का अध्ययन किया और पाया कि केवल 26 मामले थ्रोम्बोम्बोलिक मामले के रूप में रिपोर्ट किए गए थे। इसको आम भाषा में कह सकते हैं कि ख़ून के थक्के जमने के इतने घातक मामले आए थे।
एस्ट्राज़ेनेका ही वह कंपनी है जिसने ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के साथ मिलकर इस वैक्सीन को विकसित किया है और जिसका भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया बड़े पैमाने पर उत्पादन कर रहा है। सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा बनाई गई वैक्सीन भारत में तो सप्लाई की ही जा रही है, दुनिया के कई देशों में भी सप्लाई की जा रही है।
पिछले शोध से ऐसे संकेत मिलने के बाद कई देशों ने पहले ही अपनी सलाह बदल दी है कि कुछ मामलों में कोविड टीकों का एक ऐसा संभावित दुष्प्रभाव हो सकता है जो एक एडेनोवायरस वेक्टर, या 'संशोधित' वायरस का उपयोग करते हैं, जैसे कि एस्ट्राजेनेका और जॉनसन एंड जॉनसन।
न्यूज़ एजेंसी एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार बीएमजे पत्रिका में प्रकाशित नया अध्ययन कई देशों में एडेनोवायरस और फाइजर जैसे एमआरएनए टीकों के बीच ऐसे मामलों की तुलना करने वाला पहला अध्ययन है। अंतरराष्ट्रीय शोध दल ने फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, स्पेन, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका में 10 मिलियन से अधिक वयस्कों के स्वास्थ्य डेटा का विश्लेषण किया है। ये वे लोग हैं जिन्होंने दिसंबर 2020 और मध्य 2021 के बीच वैक्सीन की कम से कम एक खुराक ली थी।
जर्मनी और यूके में शोधकर्ताओं ने 1.3 मिलियन लोगों, जिन्होंने एस्ट्राजेनेका की पहली खुराक ली थी, के डेटा का मिलान फाइजर टीका लगाए 2.1 मिलियन लोगों से किया। अध्ययन में कहा गया है कि एस्ट्राजेनेका की पहली खुराक के बाद 28 दिनों में कुल 862 'थ्रोम्बोसाइटोपेनिया के केस' यानी खून के थक्के जमने के केस दर्ज किए गए, जबकि फाइजर के लिए यह संख्या 520 थी। इसका मतलब है कि एस्ट्राजेनेका के टीके में फाइजर की तुलना में थ्रोम्बोसाइटोपेनिया का 30 प्रतिशत अधिक जोखिम था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जब दूसरी खुराक की बात आई, तो किसी भी टीके के बीच ब्लड क्लॉटिंग का कोई अतिरिक्त जोखिम नहीं था।
बता दें कि पिछले साल यूरोपीय देशों में टीके लेने के बाद ब्लड क्लॉटिंग की शिकायतें काफी आई थीं। इसके बाद जर्मनी, इटली, फ़्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, स्लोवेनिया और लातविया जैसे देशों ने एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन पर रोक लगा दी थी। ऐसा तब था जब विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूरोपीय मेडिसीन एजेंसी यानी यूएमए तक बार-बार एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन को सुरक्षित बता रही थीं। हालाँकि अभी भी नये अध्ययनों में इन टीकों को सुरक्षित बताया जा रहा है, लेकिन ब्लड क्लॉटिंग की शिकायतों और उसके जोखिम का भी ज़िक्र किया जा रहा है।