किसान आंदोलन से पंजाब के बाद सबसे ज़्यादा उबल रहा दूसरा राज्य हरियाणा है। हरियाणा की बीजेपी-जेजेपी सरकार किसानों और उनके समर्थकों के निशाने पर है। हालात यह हैं कि बीजेपी-जेजेपी नेताओं का छोटे-मोटे कार्यक्रम करना मुश्किल हो गया है। किसानों की ज़्यादा नाराज़गी जेजेपी से है क्योंकि यह ख़ुद को किसानों, युवाओं की पार्टी बताती है लेकिन अब तक कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ खड़े होने की हिम्मत नहीं दिखा पाई है।
बीजेपी-जेजेपी विधायकों के ख़िलाफ़ किसानों की बढ़ती नाराज़गी को देखते हुए कांग्रेस हरियाणा का विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाई थी। अविश्वास प्रस्ताव लाने से पहले विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा था कि अविश्वास प्रस्ताव से यह पता चल जाएगा कि कौन सा विधायक सरकार के साथ खड़ा है और कौन सा किसानों के साथ। लेकिन अविश्वास प्रस्ताव तो औंधे मुंह गिर गया क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 32 जबकि इसके ख़िलाफ़ 55 वोट पड़े।
90 सदस्यों वाली हरियाणा की विधानसभा में बीजेपी के पास 40, कांग्रेस के पास 30, जेजेपी के पास 10 विधायक हैं। 7 निर्दलीय विधायकों में से 5 ने सरकार को समर्थन दिया हुआ है। दो सीटें इन दिनों खाली हैं। हरियाणा लोकहित पार्टी के एक विधायक का भी सरकार को समर्थन हासिल है।
किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने हरियाणा के लोगों से कहा था कि वे अपने इलाक़े के विधायकों से अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट करने के लिए कहें। लोगों ने विशेषकर जेजेपी के विधायकों पर दबाव भी बनाया था लेकिन यह साफ हो गया कि बीजेपी-जेजेपी को किसानों की नाराज़गी की कोई परवाह नहीं है क्योंकि उनके और निर्दलीय विधायकों ने अविश्वास प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट दिया है। इससे किसान नेता नाराज़ हैं।
किसान आंदोलन पर देखिए चर्चा-
किसान आंदोलन में सक्रिय स्वराज इंडिया के संस्थापक योगेंद्र यादव कहते हैं कि अविश्वास प्रस्ताव गिरने से किसानों का ग़ुस्सा बढ़ेगा और आंदोलन को जारी रखने का उनका संकल्प मजबूत होगा। उन्होंने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा कि यह साफ हो गया है कि बीजेपी-जेजेपी और उनके सहयोगियों ने कुर्सी और किसान में से कुर्सी को चुना है और अब किसानों द्वारा उन्हें सबक सिखाने का वक़्त आ गया है।
यादव ने कहा कि किसान इस धोखेबाजी को कभी नहीं भूलेंगे, विशेषकर ऐसे लोगों को जिन्होंने किसानों के हक़ में काम करने की बात कही थी।
भारतीय किसान यूनियन की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव के गिरने से बीजेपी और उसके सहयोगियों के ख़िलाफ़ किसानों में नफ़रत और ज़्यादा बढ़ेगी।
चढ़ूनी ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा कि ऐसे विधायकों ने जिन्होंने हरियाणा विधानसभा में किसानों के पक्ष में यानी अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट नहीं किया, उनका बहिष्कार किया जाना चाहिए और उन्हें गांवों में नहीं आने देना चाहिए। चढ़ूनी ने दावा किया कि अविश्वास प्रस्ताव के गिरने से दुष्यंत चौटाला की छवि और ख़राब होगी।
दुष्यंत से नाराज़ हैं युवा
किसान आंदोलन में शामिल हरियाणा के युवाओं का कहना है कि 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान दुष्यंत चौटाला ख़ुद को किसानों का हिमायती बताते थे लेकिन आंदोलन के 100 दिन बाद भी उन्होंने धरना दे रहे किसानों के समर्थन में एक भी बयान नहीं दिया। किसानों के समर्थन में बीजेपी और जेजेपी के कई नेता पार्टी को भी अलविदा कह चुके हैं।
झुकने को तैयार नहीं सरकार
किसान साफ कर चुके हैं कि वे कृषि क़ानूनों को वापस लेने और एमएसपी को लेकर गारंटी एक्ट बनाने तक दिल्ली के बॉर्डर्स पर बैठे रहेंगे। अब यह आंदोलन कई राज्यों तक फैल चुका है और वहां किसान महापंचायतें हो रही हैं। संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से पांच राज्यों के चुनावों में बीजेपी को वोट नहीं देने की अपील भी की जा चुकी है लेकिन मोदी सरकार झुकने के लिए तैयार नहीं है।
भारत बंद का आह्वान
आंदोलन को धार देते हुए संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से कहा गया है कि सरकार को चेताने के लिए 26 मार्च को भारत बंद का आह्वान किया गया है। इससे पहले किसान और मज़दूर संगठन 15 मार्च को सार्वजनिक उपक्रमों को बेचे जाने और पेट्रोल डीजल की क़ीमतों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करेंगे।
किसान नेता बूटा सिंह बुर्जगिल ने कहा कि निजीकरण के ख़िलाफ़ देश के सभी रेलवे स्टेशनों पर प्रदर्शन किया जाएगा और 19 मार्च को किसान मंडी बचाओ-खेती बचाओ दिवस मनाएंगे।
हरियाणा में किसानों को जो जबरदस्त समर्थन मिला है और जिस तरह बीजेपी-जेजेपी सरकार का विरोध हो रहा है, उससे यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अविश्वास प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट देने वाले विधायकों को आने वाले दिनों में किसानों के और ज़्यादा ग़ुस्से का सामना करना पड़ सकता है।