एमएसपी की क़ानूनी गारंटी सहित कई मांगों को लेकर किसानों द्वारा किए जा रहे प्रदर्शन के बीच केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिए 'नेशनल पॉलिसी फ्रेमवर्क ड्राफ्ट' क्यों जारी किया है? क्या इस नीति में उन तीन कृषि कानूनों के कुछ प्रावधान शामिल हैं जिन्हें मोदी सरकार को वापस लेना पड़ा था? क्या इस नीति का मक़सद कृषि क्षेत्र में निजी पूँजी को लाना और एमएसपी की उम्मीदों पर पानी फेरना है? इस ड्राफ़्ट को लेकर किसान कुछ ऐसे ही संदेह जता रहे हैं।
इस मसौदे को लेकर किसानों में कैसी हलचल है, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर किसानों का मौजूदा प्रदर्शन किस हालत में है। किसान आंदोलन के नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल पंजाब-हरियाणा सीमा खनौरी बॉर्डर पर 20 दिन से भूख हड़ताल पर हैं। अब उनकी हालत चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करने के प्रयास में, पिछले रविवार को केंद्र सरकार के अधिकारी मयंक मिश्रा, कृषि विभाग के निदेशक और पंजाब सरकार के शीर्ष अधिकारी डी.जी.पी. गौरव यादव स्थिति का जायजा लेने और वार्ता करने पहुंचे थे। बाद में आंदोलन में शामिल अन्य किसान संगठनों के नेताओं के साथ हुई बातचीत में इन अधिकारियों ने किसानों की मांगों को केंद्र सरकार तक पहुंचाने का आश्वासन दिया। केंद्रीय प्रतिनिधि मयंक मिश्रा ने मोर्चा के अन्य नेताओं से आग्रह किया कि वे जगजीत सिंह दल्लेवाल को चिकित्सा सहायता लेने और उनकी भूख हड़ताल समाप्त करने के लिए मनाने का प्रयास करें।
एक बार अन्ना हजारे के 11 दिनों के आंदोलन के बाद उनकी मांगों को केंद्र सरकार ने मान लिया था। पिछले किसान आंदोलन में भी किसान 13 महीने तक दिल्ली के चारों ओर की सीमाओं पर बैठे रहे और 700 से ज़्यादा किसानों की जान चली गई, तब सरकार ने कृषि क़नूनों को वापस लिया और किसानों से एमएसपी पर कानून बनाने का लिखित वादा किया। देश के अन्नदाता के साथ सरकार का ऐसा व्यवहार निश्चित तौर पर बड़ा सवाल खड़ा करता है कि आखिर सरकार अन्नदाता को कानून के जरिए सुरक्षा देने से क्यों कतरा रही है?
सबसे महत्वपूर्ण एवं मूल्यवान संसाधन जमीन है। कृषि क्षेत्र में आवश्यक सुधारों के माध्यम से उत्पादन की गुणवत्ता और दक्षता बढ़ाने तथा कृषि को लाभकारी बनाने की योजना के तहत वर्तमान भाजपा सरकार ने नीतिगत निर्णय के तहत देश के संरक्षित कृषि क्षेत्र को विदेशी निवेश के लिए पूरी तरह से खोल दिया था। आत्मनिर्भर भारत बनाने के मोदी सरकार के दावों को किस आधार पर परखा जाना चाहिए? देश की एक बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है। जिसे समझना किसान नेताओं के लिए कोई मुश्किल पहेली नहीं है।
एक हफ्ते पहले ही केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिए 'नेशनल पॉलिसी फ्रेमवर्क ड्राफ्ट' जारी किया है, जिसमें राज्यों से इसका अनुपालन करने और अपने सुझाव भेजने को कहा गया है। इस मसौदे में कृषि विपणन में सुधार के लिए कई पहलों का विवरण दिया गया है। इस मसौदे को लेकर किसान नेताओं और कृषि अर्थशास्त्रियों में विरोध है।
उनका मानना है कि इस नीति का उद्देश्य निजी पूंजी निवेश और बड़े कॉरपोरेट्स को कृषि विपणन में लाना है। कुछ किसान नेताओं का कहना है कि इस नीति में उन तीन कृषि कानूनों के कुछ प्रावधान शामिल हैं जिन्हें 2021 में किसानों के पहले आंदोलन के दबाव में वापस ले लिया गया था। अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक धवले ने कहा है कि इस मसौदे के सभी बिंदुओं पर विस्तृत आकलन किया जाएगा। लेकिन शुरुआती समीक्षा में साफ लग रहा है कि सरकार पूरी तरह निजी पूंजी और विदेशी निवेश के पक्ष में है। कृषि क्षेत्र और एमएसपी के पहलू को खारिज करता है। उन्होंने सरकार से इस ड्राफ्ट को तुरंत वापस लेने को कहा है।
सरकार द्वारा हाल ही लाई गई डिजिटल कृषि मिशन, राष्ट्रीय सहकारी नीति और अब कृषि क्षेत्र के लिए नेशनल पॉलिसी फ्रेमवर्क ड्राफ्ट कॉर्पोरेट और निजी पूंजीपतियों को कृषि क्षेत्र में नियंत्रण देने की पिछले दरवाजे से रास्ता देने की पहल है। ऐसा किसानों में संदेह है।
मसौदे में एकीकृत बेहतर बाजार व्यवस्था बनाने पर जोर दिया गया ताकि किसानों को बेहतर मूल्य मिल सके लेकिन इसमें मूल मांग एमएसपी को कानूनी रूप दिए जाने का कोई जिक्र तक नहीं है। इस नीति के द्वारा सरकार एमएसपी को कानूनी दर्जा देने के सवाल को ख़ारिज करना चाहती है।
संयुक्त किसान मोर्चा ने दल्लेवाल के स्वास्थ्य के प्रति गंभीर चिंता जताई है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को किसी भी अप्रिय अनहोनी के लिए जिम्मेदार ठहराया है। संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार को चेताया है कि देश में किसी भी स्थान पर होने वाले किसानों के प्रदर्शन या आंदोलन का दमन करना सरकार बंद करे। 14 दिसंबर को संयुक्त किसान मोर्चा की आपातकालीन बैठक में निर्णय किया गया है कि 23 दिसंबर को पूरे देश के हरेक जिले में इस मसौदे की प्रतियां जलाई जाएंगी और किसान प्रदर्शन करेंगे।
किसानों को पहली क़लम से स्वामिनाथन आयोग के फॉर्मूले से न्यूतम समर्थन मूल्य देने का वादा करके सत्ता में आयी भाजपा सरकार और तीन कृषी क़ानूनों को माफ़ी मांग कर वापिस लेने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की किसानों के प्रती उदारता का कच्चा चिठा अब स्पष्ट होने लगा है। क्या सरकार नयी नीति से किसानों की ताक़त को राज्यों में विभाजित करके कमजोर करना चाहती है ताकि एम एसपी का क़ानून बनाने से पीछा छुड़ाया जा सके।