किसी मुस्लिम की लिंचिंग करने से पहले बैठक करना, मांस की दुकानें बंद कराना और आप्रवासियों को भगाने का प्रोपेगेंडा तय हुआ हो तो लिंचिंग की वजह क्या होगी, क्या इसे समझना इतना मुश्किल है? चरखी दादरी में इस साल ही अगस्त महीने में हुई लिंचिंग को लेकर जो पुलिस की चार्जशीट आई है उसमें तो कम से कम ऐसे ही तथ्य उजागर हुए हैं।
वैसे, चरखी-दादरी के कस्बा बाढड़ा में 27 अगस्त को एक युवक की पीट-पीटकर हत्या मामले में चौंकाने वाला तथ्य लैब की रिपोर्ट में ही आ गया था। लैब रिपोर्ट में साफ़ तौर पर कहा गया था कि इसमें गोवंश का मांस नहीं मिला। गोवंश का मांस मिलने का आरोप लगाकर ही युवक को पीट-पीट कर मार दिया गया था। अब जो रिपोर्ट आई है उसमें कहा गया है कि चरखी दादरी में कथित तौर पर गौ रक्षा दल, हरियाणा के सदस्यों द्वारा गोमांस खाने के आरोप में एक प्रवासी मजदूर की हत्या से दो दिन पहले, आरोपियों ने गांवों में मांस की दुकानें बंद करने और इलाके में झुग्गियों में रहने वाले असम और बंगाल के मुसलमानों के दस्तावेज मांगने पर चर्चा करने के लिए एक बैठक की थी।
बैठक के अगले दिन यानी 26 अगस्त को आरोपियों ने कथित तौर पर झुग्गियों में रहने वाले मुस्लिम युवकों को वहां से चले जाने के लिए कहा था। द इंडियन एक्सप्रेस ने पुलिस चार्जशीट के हवाले से रिपोर्ट दी है कि 27 अगस्त को गौ रक्षा दल के जिला अध्यक्ष और मुख्य आरोपी रविंदर ने कथित तौर पर साथी गौरक्षकों को मुसलमानों को पीटने और उन्हें भगाने के लिए भेजा। रिपोर्ट के अनुसार पिछले महीने के अंत में हरियाणा पुलिस द्वारा दायर आरोपपत्र में कहा गया है कि आरोपियों ने ऐसा करने के लिए यह दावा करते हुए भेजा कि 'पुलिस मुसलमानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं करेगी'।
जिस दिन ये सब घटनाक्रम चला था उसी दिन पश्चिम बंगाल के एक प्रवासी मजदूर साबिर मलिक को आरोपियों ने इस संदेह में मार डाला कि उसने बड़हरा गांव में अपनी झुग्गी में गोमांस पकाया और खाया था। साबिर इलाके में कूड़ा बीनने का काम करता था। अंग्रेज़ी अख़बार ने रिपोर्ट दी है कि आरोप पत्र में आठ आरोपियों के नाम हैं। पुलिस ने 34 गवाहों से पूछताछ की है और मौके से सबूत भी संलग्न किए हैं। इसके अलावा, पुलिस द्वारा आरोप पत्र के साथ संलग्न की गई लैब रिपोर्ट में कहा गया है कि गौरक्षकों के आरोपों के आधार पर मौके से जुटाया गया मांस मवेशियों का नहीं था।
आरोपियों के खुलासे के बयानों का पुलिस ने आरोप पत्र में उल्लेख किया है। उसके अनुसार 25 अगस्त को गौ रक्षा दल के सदस्यों ने बड़हरा में एक कार्यालय में बैठक की थी। रिपोर्ट के अनुसार आरोपियों में से एक रविंदर के खुलासे के बयान में कहा गया है, 'हमने गांवों में मांस की दुकानें बंद करने, बड़हरा और हसावास खुर्द में असम और बंगाल से अस्थायी झोपड़ियों में रहने वाले मुसलमानों के बारे में दस्तावेज मांगने और उनके द्वारा गाय के मांस के सेवन की जांच करने पर चर्चा की थी। 26 अगस्त को अपने अन्य सहयोगियों के साथ हमने हसावास खुर्द में झोपड़ियों में रहने वाले मुस्लिम युवाओं को धमकी दी कि वे वहां से चले जाएं।'
रिपोर्ट के अनुसार आरोपियों ने बड़हरा गांव के पूर्व सरपंच विजय को कथित तौर पर उनके साथ शामिल होने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। 27 अगस्त को आरोपी रविंदर, संजय, प्रवेश बॉक्सर और सात-आठ अन्य लोग हसावास खुर्द की झोपड़ियों में गए।
रविंदर ने अपने खुलासे वाले बयान में कहा, 'हमने निवासियों से पूछताछ शुरू की, लेकिन तनाव को देखते हुए विजय ने हमें सलाह दी कि हम किसी का निरीक्षण न करें और न ही किसी के साथ दुर्व्यवहार करें। प्रवेश बॉक्सर और संजय ने फिर और युवकों को बुलाया और झोपड़ी के निवासियों पर हमला करना शुरू कर दिया।' उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने असरुद्दीन नामक एक व्यक्ति को उठाया।
बाद में पुलिस आई और उसने पका हुआ मांस जब्त किया और पाँच-सात प्रवासी मजदूरों को पूछताछ के लिए बड़हरा पुलिस स्टेशन ले गई।
रविंदर ने कहा कि वह उनके साथ स्टेशन गया और साथी गौरक्षकों को सलाह दी कि 'अगर कोई मुस्लिम युवक मिले, तो उसे भंडवा में मेरे फार्महाउस पर ले जाया जाए और पूछताछ के लिए ठीक से पीटा जाए'। उसने कहा कि फार्महाउस पर 10-12 लड़कों ने साबिर और असरुद्दीन के बेटे पर हमला किया। बयान में उसके हवाले से कहा गया है, 'साबिर को काम के बहाने मौके पर बुलाया गया था और वह चोटों के कारण बेहोश हो गया, जिसके बाद उसे भांडवा नहर के पास फेंक दिया गया।' रिपोर्ट में रविंदर के हवाले से कहा गया है, 'यह जानने के बाद कि साबिर की मौत मेरे साथियों की वजह से हुई चोटों से हुई है, मैंने उन्हें छिपने की सलाह दी। बाद में मैंने अपने साथियों को ले जाने के लिए अपनी एम्बुलेंस (पशु चिकित्सा सेवाओं के लिए) का इस्तेमाल किया।'
रविंदर ने आगे बताया कि जाते समय उसने घटनास्थल पर बाक़ी गौरक्षकों को निर्देश दिया कि वे मुसलमानों को पीटना और भगाना जारी रखें। उन्होंने कहा, 'मैंने उनसे यह भी कहा कि अगर उन्हें कोई अन्य मुस्लिम व्यक्ति दिखाई दे, तो वे उसे बुरी तरह पीटें और मेरे खेत में बने कमरे में ले जाएँ। मैंने उनसे आगे कहा कि पुलिस मुसलमानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं करेगी।'
आरोपपत्र से जुड़े उसके खुलासे में यह भी पता चलता है कि आरोपी ने पूछा कि मंगलवार को निवासी मांस कैसे खा सकते हैं। एक कूड़ा बीनने वाला असरुद्दीन ने अपने पुलिस बयान में कहा कि दो लोग मोटरसाइकिल पर आए और उससे पूछा कि वह किस तरह का मांस खाता है, जिस पर उसने कहा कि वह मांस नहीं खाता है। उन्होंने आरोप लगाया, 'उसी समय मेरा बेटा रकीब-उल वहां आ गया। दोनों लड़कों ने हमें धमकाया और अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा लिया। वे हमें भंडवा गांव से आगे खेतों में बने एक कमरे में ले गए। उन्होंने मुझे वहीं छोड़ दिया और मेरे बेटे रकीब-उल को मोटरसाइकिल पर ले गए। थोड़ी देर बाद, 5-7 लड़के आए और मुझ पर गोमांस खाने का आरोप लगाने लगे। उन्होंने मुझे पीटा और काफी देर तक मेरे साथ मारपीट करते रहे। उसके बाद 4-5 और लड़के आए, जो साबिर मलिक और मेरे बेटे रकीब-उल को साथ लेकर आए। उन्होंने मिलकर साबिर मलिक को डंडों और लात-घूंसों से पीटना शुरू कर दिया। अत्यधिक पिटाई के कारण साबिर मलिक बेहोश हो गया। इसके बाद दो लड़के साबिर को मोटरसाइकिल पर उठाकर चले गए। थोड़ी देर बाद, वे वापस आए और कहा कि उन्होंने साबिर को नहर के पास छोड़ दिया है...'।