हरियाणा: बच गई खट्टर सरकार, गिरा अविश्वास प्रस्ताव 

05:27 pm Mar 10, 2021 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

किसान आंदोलन से जूझ रही हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार को बुधवार को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। अविश्वास प्रस्ताव पर काफी देर तक चर्चा हुई और फिर वोटिंग कराई गई। वोटिंग में अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 32 जबकि इसके ख़िलाफ़ 55 वोट पड़े। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कृषि क़ानूनों को लेकर विधानसभा में काफी हंगामा भी हुआ। 

90 सदस्यों वाली हरियाणा की विधानसभा में दो सीटें खाली हैं। ऐसे में 88 सदस्यों की मौजदूगी में खट्टर सरकार को 45 विधायकों की ज़रूरत थी। बीजेपी के पास 40, जेजेपी के पास 10 विधायक हैं। 7 निर्दलीय विधायकों में से 5 ने सरकार को समर्थन दिया हुआ है जबकि कांग्रेस के पास 30 विधायक हैं। हरियाणा लोकहित पार्टी के एक विधायक का भी सरकार को समर्थन हासिल है। 

अविश्वास प्रस्ताव लाने से पहले विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा था कि अविश्वास प्रस्ताव से यह पता चल जाएगा कि कौन सा विधायक सरकार के साथ खड़ा है और कौन सा किसानों के साथ। 

कई नेताओं ने छोड़ी बीजेपी-जेजेपी 

बीजेपी-जेजेपी के भीतर कृषि क़ानूनों को लेकर किसानों के समर्थन में न खड़े होने को लेकर जबरदस्त उथल-पुथल है और इस बीच दोनों दलों के कई नेताओं ने इस्तीफ़ा दे दिया है। हरियाणा बीजेपी के नेता और पूर्व संसदीय सचिव रामपाल माजरा ने कृषि क़ानूनों के विरोध में पार्टी छोड़ दी थी। इसके अलावा फतेहाबाद से बीजेपी के पूर्व विधायक बलवान सिंह दौलतपुरिया पार्टी छोड़ चुके हैं। दादरी से निर्दलीय विधायक सोमवीर सांगवान हरियाणा पशुधन विकास बोर्ड के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके हैं। करनाल जिले के अध्यक्ष इंद्रजीत सिंह गौराया किसानों के समर्थन में पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। इसके अलावा भी कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। 

किसान मोर्चा ने की थी अपील

पांच राज्यों के चुनावों में बीजेपी को वोट नहीं देने की अपील करने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने हरियाणा सरकार को गिराने में सहयोग करने का आह्वान किया था। मोर्चा के नेताओं ने कहा था कि हरियाणा में अभियान चलाएगा जिससे सरकार गिर जाए। मोर्चा की ओर से लोगों से कहा गया था कि वे अविश्वास प्रस्ताव में बीजेपी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को हराएं।

दबाव में हैं दुष्यंत चौटाला

किसान आंदोलन को लेकर जितना दबाव बीजेपी पर है, उतना ही उसके सहयोगी दलों पर। जैसे-जैसे किसान आंदोलन आगे बढ़ता गया, बीजेपी के सहयोगी उसे छोड़ते गए, जो बचे हैं, वे जबरदस्त दबाव में हैं। किसानों के दबाव के कारण ही शिरोमणि अकाली दल और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी एनडीए से बाहर निकल चुकी हैं लेकिन जेजेपी इस मामले में फ़ैसला नहीं ले पा रही है।

सोशल मीडिया पर किसान और युवा लगातार दुष्यंत चौटाला पर सियासी हमले कर रहे हैं। किसानों और युवाओं का कहना है कि दुष्यंत ने बीजेपी के विरोध और किसानों की हिमायत करने के वादे के कारण पहले ही चुनाव में बड़ी सफ़लता हासिल की थी। लेकिन अब वह कुर्सी मोह के कारण किसानों का साथ नहीं देना चाहते।