किसान आंदोलन से ख़ासे प्रभावित राज्य हरियाणा में किसानों और बीजेपी नेताओं के बीच लगातार झड़प चल रही है। बीजेपी नेता और हरियाणा विधानसभा के डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा के काफिले पर हमले के मामले में पुलिस ने 100 किसानों पर राजद्रोह का मुक़दमा लगा दिया है। किसानों के हमले में डिप्टी स्पीकर की सरकारी गाड़ी को नुक़सान पहुंचा था। यह घटना 11 जुलाई को सिरसा में हुई थी और उसी दिन इस मामले में पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज की थी।
एफ़आईआर में राजद्रोह की धाराओं के अलावा हत्या के प्रयास की धाराएं भी जोड़ी गई हैं। पिछले साल नवंबर में दिल्ली के बॉर्डर्स पर किसान आंदोलन के शुरू होने के बाद से ही बीजेपी और उसकी सहयोगी जननायक जनता पार्टी के नेताओं को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को ही पूछा है कि देश के आज़ाद होने के 75 साल बाद भी क्या राजद्रोह के क़ानून की ज़रूरत है। अदालत ने कहा है कि वह इस क़ानून की वैधता को जांचेगी और इस मामले में केंद्र सरकार का जवाब भी मांगेगी। अदालत ने कहा कि यह क़ानून औपनिवेशिक है और ब्रिटिश काल में बना था।
गंगवा का काफिला जब सिरसा से गुजर रहा था तो सैकड़ों किसानों ने उनका घेराव कर दिया था और जमकर नारेबाज़ी की थी। किसानों को संभालने में पुलिस को पूरा जोर लगाना पड़ा था।
अदालत में देंगे चुनौती
संयुक्त किसान मोर्चा ने इस मामले में किसानों पर लगाए गए मुक़दमों को झूठा बताया है और कहा है कि वह इन्हें अदालत में चुनौती देगा। जिन किसानों पर मुक़दमे दर्ज हुए हैं, उनमें किसान नेता हरचरण सिंह और प्रहलाद सिंह का भी नाम शामिल है। मोर्चा ने कहा है कि किसानों पर राजद्रोह जैसा गंभीर मुक़दमा इसलिए लगाया गया है क्योंकि वे गंगवा के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे थे।
संसद के नज़दीक देंगे धरना
केंद्र सरकार के कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे किसान अब अपने आंदोलन को रफ़्तार देने जा रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि 22 जुलाई से किसान संसद के नज़दीक धरना देना शुरू करेंगे। सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती है क्योंकि 19 जुलाई से संसद का सत्र शुरू हो रहा है।
दबाव में हैं दुष्यंत चौटाला
किसान आंदोलन को लेकर जितना दबाव बीजेपी पर है, उतना ही उसके सहयोगी दलों पर। जैसे-जैसे किसान आंदोलन आगे बढ़ता गया, बीजेपी के सहयोगी उसे छोड़ते गए, जो बचे हैं, वे जबरदस्त दबाव में हैं। किसानों के दबाव के कारण ही शिरोमणि अकाली दल और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी एनडीए से बाहर निकल चुकी हैं लेकिन जेजेपी इस मामले में फ़ैसला नहीं ले पा रही है।
सोशल मीडिया पर किसान और युवा लगातार दुष्यंत चौटाला पर सियासी हमले कर रहे हैं। किसानों और युवाओं का कहना है कि दुष्यंत ने बीजेपी के विरोध और किसानों की हिमायत करने के वादे के कारण पहले ही चुनाव में बड़ी सफ़लता हासिल की थी। लेकिन अब वह कुर्सी मोह के कारण किसानों का साथ नहीं देना चाहते।
बता दें कि किसान संगठन कृषि क़ानूनों के विरोध में पिछले सात महीने से दिल्ली के बॉर्डर्स पर धरना दे रहे हैं। किसानों ने कहा है कि जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जाती तब तक आंदोलन चलता रहेगा।
पंजाब से चले किसान 26 नवंबर को दिल्ली के बॉर्डर्स पर पहुंचे थे और बाद में हरियाणा-राजस्थान में भी किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया था। इसके बाद किसानों और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। 26 जनवरी को किसानों के ट्रैक्टर मार्च के दौरान लाल किले पर हुई हिंसा के बाद से सरकार और किसानों के बीच बातचीत बंद है।