विश्व के तमाम देशों ने कोरोना से जूझने के लिए राहत पैकेज का एलान किया है। भारत सरकार ने भी कोविड-19 के कारण हुई देशबंदी से राहत देने के लिए 1,70,000 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की है। यह पैकेज सिर्फ़ देखने में भारी भरकम लगता है, क्योंकि अमेरिका के पैकेज से इसकी तुलना करें तो अमेरिका ने जहाँ देश की अर्थव्यवस्था के आकार के 10 प्रतिशत राशि का पैकेज पेश किया है, वहीं भारत का पैकेज उसकी अर्थव्यवस्था के आकार का महज 0.9 प्रतिशत भर है। बहरहाल, सरकार का दावा है कि इससे बंदी की मार झेल रहे लोगों को बहुत बड़ी राहत मिलने वाली है।
इस पैकेज को तीन भाग में बाँटकर देखा जाए तो स्थिति साफ़ होगी। पहला, घोषणा से राहत मिली। दूसरा, राहत मिलना इस पर निर्भर है कि सरकार लोगों तक लाभ पहुँचा पाएगी या नहीं। तीसरा, सरकार ने सिर्फ़ झुनझुना थमाया है।
राहत मिली
सबसे पहले हम उन घोषणाओं की बात करते हैं, जिनसे लोगों को सीधे तौर पर राहत मिलने की उम्मीद है। वित्त मंत्री ने महिला जनधन खाताधारकों और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग की विधवाओं, पेंशनभोगियों और दिव्यांगों को एकमुश्त पैसे देने का वादा किया है। रसोई गैस की उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को मुफ़्त में अतिरिक्त सिलेंडर देने की घोषणा की गई है। विधवाओं, पेंशनभोगियों और दिव्यांगों को सरकार हर महीने 200 रुपये से 500 रुपये महीने तक पेंशन देती है। अगले 3 महीने में 1,000 रुपये अतिरिक्त मिलेंगे, यानी उन्हें हर महीने क़रीब 330 रुपये का लाभ 3 महीने तक मिलेगा।
सरकार का कहना है कि वह इस मद में 3,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त ख़र्च करेगी। इसके अलावा उज्ज्वला लाभार्थियों को 3 मुफ्त रसोई गैस सिलेंडर देने पर सरकार 13,000 करोड़ रुपये ख़र्च करेगी। महिला जनधन खाताधारकों को एकमुश्त 500-500 रुपये देने की घोषणा की गई है। 20.4 करोड़ खाताधारकों को यह रक़म देने पर सरकार 31,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त ख़र्च कर सकती है।
राहत की संभावना
सरकार ने कहा है कि 80 करोड़ परिवारों को अतिरिक्त 5 किलो गेहूँ या चावल और उसके साथ एक किलो दाल मुफ़्त मिलेगी। यह भी ग़रीब आदमी के लिए फ़ायदेमंद है। लेकिन इस पर संदेह जताया जा रहा है कि बंदी के बीच यह राशन किस तरह से लोगों तक पहुँचाया जाएगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि इससे कहीं ज़्यादा बेहतर व्यवस्था यह होती कि विभिन्न इलाक़ों में अस्थायी भोजनालय खोले जाएँ, जहाँ चावल, दाल, सब्जी या खिचड़ी का इंतज़ाम सरकार ख़ुद कर दे। इसमें उन्हीं ग़रीब लोगों को खाना बनाने के लिए लगाया जा सकता है, जिन्हें यह 5 किलो अनाज और एक किलो दाल दी जानी है। यह बेहतर योजना हो सकती थी।
झुनझुना थमाया
सरकार ने पीएम किसान की क़िस्त का अग्रिम भुगतान करने, रोज़गार गारंटी के तहत वेतन बढ़ाने, स्वयं सहायता समूहों को रेहन मुक्त कर्ज में इज़ाफा करने, संगठित क्षेत्र के कामगारों के भविष्य निधि खाते में अंशदान करने, डॉक्टरों, पैरामेडिकल कर्मियों, चिकित्सा सेवा कर्मियों का 50 लाख रुपये का चिकित्सा बीमा करने की घोषणा की है।
सबसे पहले बात करते हैं पीएम-किसान की। सरकार ने कहा है कि वह अप्रैल के पहले हफ़्ते में किसानों के खाते में 2,000 रुपये डालेगी, जिस पर 16,000 करोड़ रुपये ख़र्च आएगा। यह धन 8.69 करोड़ किसानों को मिलेगा।
सरकार की यह योजना पहले से ही चल रही है और अप्रैल तिमाही में यह धन डाला जाने वाला था। सरकार ने सिर्फ़ इतना किया है कि एक महीने या दो महीने बाद पैसे देने के बजाय अप्रैल के पहले सप्ताह में ही देने का फ़ैसला कर लिया है। इस पर कोई अतिरिक्त ख़र्च नहीं आएगा।
सरकार ने महात्मा गाँधी ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना यानी मनरेगा के तहत मज़दूरी 20 रुपये प्रतिदिन बढ़ाने का फ़ैसला किया है। अनुमान के मुताबिक़ इस पर 5,600 करोड़ रुपये ख़र्च आएगा और इसका फ़ायदा 5.5 करोड़ परिवारों को मिलेगा। मनरेगा की मज़दूरी ग्रामीण उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जुड़ी हुई है। इसमें ग़ैर खाद्यान्न का भार बढ़ाया गया है, जिससे मज़दूरी बढ़ना पहले से ही अनुमानित था और सरकार ने आपदा के दौरान इसे बढ़ाकर राहत पैकेज में जोड़ दिया। देशबंदी के दौरान कहीं कोई काम नहीं हो रहा है, जिससे मज़दूरों को काम करने पर अतिरिक्त 20 रुपये मिल जाएँ। इसके कारण फ़िलहाल 20 रुपये की दिखावटी बढ़ोतरी का भी लाभ नहीं मिलने जा रहा है।
रेहन मुक्त क़र्ज़ का क्या लाभ
सरकार ने स्वयं सहायता समूहों के लिए रेहन मुक्त क़र्ज़ में इज़ाफा करने की घोषणा की है। इसका भी फ़िलहाल कोई तत्काल लाभ मिलने की संभावना नज़र नहीं आती है। डॉक्टरों, पैरामेडिकल कर्मियों, चिकित्सा सेवा कर्मियों का 50 लाख रुपये का चिकित्सा बीमा करने की घोषणा का लाभ सिर्फ़ उन कर्मचारियों को मिल सकेगा, जो बीमार पड़ेंगे।
पीएफ़ खाते में अंशदान
सरकार ने कर्मचारी भविष्य निधि खाते में अंशदान की घोषणा की है। यह 100 कर्मचारी तक रखने वाले प्रतिष्ठानों के लिए योजना है। ईपीएफ़ओ में कुल 5,63,00 प्रतिष्ठान हैं, जिनमें से 3,77,000 प्रतिष्ठान इसके दायरे में आएँगे। इसका फ़ायदा 4.8 करोड़ खाताधारकों में से 79 लाख को मिल सकता है। इसमें शर्त यह जोड़ी गई है कि अगर प्रतिष्ठान यह दिखाते हैं कि उन्होंने इस दौरान कर्मचारियों को वेतन का भुगतान किया है, लेकिन पीएफ़ में अंशदान नहीं किया है, तभी सरकार इसका फ़ायदा देगी।
कुल मिलाकर महज 16 प्रतिशत ईपीएफ़ खाताधारकों के लिए घोषित इस योजना में सिर्फ़ उन्ही कर्मचारियों को फ़ायदा मिलने जा रहा है, जिनकी कंपनी ने वेतन का भुगतान तो किया है, लेकिन पीएफ़ में अंशदान नहीं किया है।
देश के मध्य और निम्न मध्य वर्ग में मज़दूर, किसान, अन्य श्रमिक, नौकरीपेशा, छोटे/मझोले व्यापारी आदि न जाने कितने लोग ऐसे हैं, जिनके लिए यह लॉकडाउन इनकी रोटी दाल, दवा, इलाज, रोज़गार, व्यापार आदि के लिए आफत बन कर आया है। इन वर्गों में थोड़ी बेहतर आर्थिक स्थिति वाले लॉकडाउन को झेलने के नाम पर घर में राशन आदि जमा करके या ऑनलाइन/रोज़ाना खरीदारी करके थोड़ी बेहतर स्थिति में नज़र आ रहे हैं। वहीं उन्हें आर्थिक स्थिति बदहाल हो जाने का खौफ़ है। दरअसल, यह खौफ इसलिए हैं, क्योंकि उनकी कार, घर या अन्य तमाम ऐशो-आराम के साधन बैंक क़र्ज़ पर हैं। इसके चलते उन पर ऑटो, होम, पर्सनल, क्रेडिट कार्ड, बीमा, म्युचुअल फ़ंड आदि लोन/निवेश की भारी भरकम किश्तें भी लदी हुई हैं। इसके अलावा कई लोगों के लिए घर का किराया, बिजली, ब्रॉडबैंड/इंटरनेट, मोबाइल आदि के तमाम तरह के मासिक ख़र्च का भी अच्छा-खासा बोझ रहता ही है। सरकार ने ऐसा कोई क़दम नहीं उठाया है, जिससे देश के इस मध्य और निम्न मध्य वर्ग को भरोसा मिल सके कि उनकी कंपनी बंद हुई या उनकी सैलरी रुकी तो वे बैंक की किस्तों का भुगतान कैसे कर पाएँगे।