महात्मा गांधी भारत के ही नहीं, दुनिया के उन ऐतिहासिक व्यक्तित्वों में हैं जिनके जीवन और दर्शन की आभा लगातार विस्तृत होती जा रही है। हालांकि समांतर रूप से एक और तथ्य ये भी है कि जिस भारत में उनका जन्म हुआ और जिसकी आजादी की लड़ाई के वे सबसे अग्रणी शख्सियत थे वहीं ठीक आजादी के बाद उनकी उनकी हत्या हुई और आज भी उनके खिलाफ विषवमन चलता रहता है। पर शायद मानव इतिहास की यही विडंबना है कि नायकों को प्रतिनायक बनाने की कोशिशें भी होती रहती हैं और असत्य सत्य पर हावी होने में लगा रहता है। भारत और दुनिया को अहिंसा का प्रथम पाठ पढ़ाने वालों में से एक गौतम बुद्ध के विरुद्ध अभियान का सिलसिला आज भी चल रहा है और प्रेम व करूणा की मूर्ति ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया।
पर ये भी सच है कि जनचेतना के मन में न कभी बुद्ध मरेंगे, न ईसा और न गांधी। इसी धारणा को लेकर महाराष्ट्र के चंद्रपुर की लोकजागृति संस्था ने पिछले दिनों दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम में अनिरुद्ध वनकर ने `गांधी कभी मरते नहीं’ नाटक खेला। वैसे, चंद्रपुर का इलाका झाड़पट्टी नाट्य शैली का बड़ा केंद्र रहा है पर वहां इस तरह के नाटक भी होते हैं। और वो भी हिंदी में। इसे भी गौर किया जाना चाहिए।
युवा रंगकर्मी संगीता टिपले (हीरामन) द्वारा लिखित इस नाटक में गांधी के जीवन के कई अध्याय हैं। पर संक्षिप्त रूप में।
गांधी के बचपन में जीवन कैसा था, वे दक्षिण अफ्रीका कैसे पहुंचे, चंपारण में नीलहे अंग्रेजों के सामने कैसे संघर्ष किया, नमक सत्याग्रह आरंभ किया और नोआखाली के दंगाग्रस्त इलाकों में किस तरह मानव एकता के लिए लगे रहे – ऐसे प्रसंग इस नाटक में उठे। पर ये नाटक मात्र गांधी के जीवन तक नहीं ठहरता। वो वहां से आगे बढ़ते हुए उन दुष्प्रचारों तक भी पहुँचता है और उनके खंडन करता है जो आज गांधी विरोधियों द्वारा किए जाते हैं और जिनके बारे में आम धारणा ये बन गई है कि ह्वाट्स ऐप यूनिवर्सिटी से पढ़े (जिसका वास्तविक अर्थ है कुपढ़) ऐसा करते हैं। ये ह्वाट्सऐपिए गांधी जी के बारे में कई मिथ्या आरोप लगाते रहे हैं – जैसे ये कि गांधी जी ने भगत सिंह को फांसी से बचाने के लिए कुछ नहीं किया, वे विभाजन के बाद पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपए दिलाने पर अड़ गए आदि आदि। ह्वाट्स ऐप पर इस चरह के संदेश लोगों के मोबाइल पर लगातार आते रहते हैं।
नाटक में ऐसे मिथ्या आरोपों का उत्तर दिया गया है और बताया गया है कि कैसे गांधी ने भगत सिंह को फांसी के फंदे से बचाने के लिए कई प्रयास किए और पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपए इसलिए भी दिलवाना चाहते थे कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारत की साख बची रहे। महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच रिश्ते के बारे में भी नाटक में एक प्रसंग है और उसमें बताया गया है आखिरकार नेताजी ने ही उनको राष्ट्रपिता कहा था।
`गांधी कभी मरते नहीं’ डॉ. आंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच कुछ वैचारिक असहमतियों की तरफ भी पहुंचता है। दोनों व्यक्तित्वों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की जो कोशिशों की जाती रही हैं, ये नाटक उनके बारे में भी एक सुसंगत परिप्रेक्ष्य देता है और उस प्रसंग का परीक्षण और विश्लेषण करता है।
कुल मिलाकर इस नाटक में महात्मा गांधी के बारे में फैलाए गए और फैलाए जा रहे पूर्वग्रहों के निवारण के प्रयास किए गए हैं।
आखिर तक पहुंचते पहुंचते ये इस बात को रेखांकित करता है कि आज के भारत में किस तरह कुछ राजनैतिक ताक़तें भारत के संविधान के आदर्शों को क्षत-विक्षत करने पर तुली पड़ी हैं और भारतीयों को उनको लेकर सजग रहना है। संविधान को बचाना भी गांधी के मूल्यों को बचाना है।
`गांधी कभी मरते नहीं’ एक नाटक है पर इससे अधिक ये एक समकालीन राजनैतिक बहस में एक हस्तक्षेप है। एक जरूरी हस्तक्षेप। इस कारण कि आज हमारे देश में जिस तरह वैचारिक बहसों को विषाक्त किया जा रहा है उसमें सबसे ज्य़ादा हमला महात्मा गांधी के विचारों और सिद्धांतों पर ही हो रहा है। चाहे हमारी धर्मनिरपेक्षता हो या संवैधानिक मूल्य हों, उनका निर्माण भारत की आजादी की लड़ाई के दौरान हुआ जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया और उन पर चोटें की जा रही हैं। और चाहे सरदार भगत सिंह हों या आजादी की लड़ाई के दूसरे क्रांतिकारी सेनानी- वे भी गांधी विरोधी नहीं थे।
उनके रास्ते गांधी से अलग थे लेकिन उनके आंदोलनों और विचारों के मिलन बिंदु भी थे, जिनको समझाना भी ज़रूरी है और उनके बारे में आमलोगों को समझाना भी। गांधी एक व्यक्ति थे लेकिन वे एक विचार भी थे और उनके विचारों की आभा को और भी दीप्त करते रहना हर भारतीय और हर विश्व नागरिक का कर्तव्य होना चाहिए। ये नाटक भी वही करने का एक सिलसिला है। स्कूलों, कॉलजों तक भी इस नाटक को ले जाया जाना चाहिए। अगर हम गांधी के विचारों को नहीं बचाएंगे तो मानवता को बचाना भी मुश्किल हो जाएगा गांधी को प्रिय दो मूल्य- सत्य और अहिंसा- संपूर्ण मानवता के भी मूल्य हैं।