आर्किटेक्ट अन्वय नाइक और उनकी मां की आत्महत्या के मामले में गिरफ़्तार पत्रकार अर्णब गोस्वामी के समर्थन में जिस तरह बीजेपी उतरी थी, उससे इन दोनों का रिश्ता साफ हो गया था। लेकिन यह साफ नहीं हुआ था कि अर्णब के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों के वहां केंद्रीय एजेंसियां छापेमारी करने पहुंच जाएंगी।
यह राजनीति-पत्रकारिता के नापाक गठजोड़ का बेहद घटिया नमूना है, जिसमें एक पत्रकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने पर देश की प्रतिष्ठित एजेंसी विरोधी दल के विधायक के वहां छापा मारने पहुंच जाएं।
10 ठिकानों पर मारे छापे
विपक्षी दलों के नेताओं के वहां आए दिन छापा मारने की अभ्यस्त हो चुकी ईडी ने मंगलवार को महाराष्ट्र में शिव सेना के विधायक प्रताप सरनाइक के घरों और दफ़्तरों में छापे मारे। बताया गया है कि यह छापे मनी लॉन्ड्रिन्ग के मामले में मारे गए हैं। ईडी ने कहा है कि ठाणे और मुंबई में विधायक से जुड़े 10 ठिकानों पर छापे मारे गए। सरनाइक के बेटे का दफ़्तर भी ईडी के निशाने पर है।
प्रस्ताव लाए थे सरनाइक
सुशांत की मौत के मामले में जब अर्णब गोस्वामी के चैनल ने उद्धव ठाकरे सरकार के ख़िलाफ़ अनाप-शनाप रिपोर्टिंग और बयानबाज़ी की थी तो सितंबर महीने में उनके ख़िलाफ़ महाराष्ट्र की विधानसभा में शिव सेना के विधायक प्रताप सरनाइक विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लेकर आए थे। सरनाइक ने आर्किटेक्ट अन्वय नाइक के मामले को फिर से खोले जाने की मांग भी सरकार से की थी।
अर्णब के पक्ष में प्रदर्शन करते महाराष्ट्र बीजेपी के कार्यकर्ता।
‘अर्णब बीजेपी प्रायोजित पत्रकार’
सरनाइक ने कहा था कि अर्णब गोस्वामी बीजेपी प्रायोजित पत्रकार हैं और वह गैर बीजेपी नेताओं के ख़िलाफ़ कुछ भी बोलते रहते हैं। उन्होंने कहा था कि मीडिया की स्वतंत्रता के नाम पर आप किसी भी व्यक्ति को जो मन में आए, वैसी भाषा से संबोधित नहीं कर सकते, वह भी एक बार नहीं बार-बार। इस प्रस्ताव पर मंत्री अनिल परब ने कहा था कि इसी सदन में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर भी क़ानून पास किया गया है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई भी पत्रकार अपने आप को न्यायाधीश मान बैठे और ख़बरों को फ़ैसले की तरह सुनाए।
अनिल परब ने कहा था कि अर्णब गोस्वामी जैसे "सुपारी" लेकर पत्रकारिता करने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जानी चाहिए।
सरनाइक के इस प्रस्ताव पर शोर-शराबा कर रहे बीजेपी विधायकों से परब ने कहा था कि प्रधानमंत्री के बारे में कोई कुछ बोल दे तो आपको गुस्सा आ जाता है लेकिन मुख्यमंत्री के बारे में बोलने पर क्यों नहीं आता!
शिवसेना की कड़ी प्रतिक्रिया
शिवसेना की ओर से ईडी की छापेमारी को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया सामने आई है। शिव सेना की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा अपने विरोधियों को शांत करने के लिए कई बार ईडी, आईटी, सीबीआई का दुरुपयोग किए जाने को लेकर अब लोग भी समझते हैं कि ऐसा बदले की भावना से किया जाता रहा है।
अर्णब को लेकर देखिए चर्चा-
शिव सेना सांसद संजय राउत ने बीजेपी का नाम लिए बिना कहा कि उसे महाराष्ट्र की सत्ता में आने का सपना अगले 25 तक के लिए भूल जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह एजेंसियों के जरिये हम पर कितना ही दबाव बना ले, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। राउत ने केंद्र को चेताते हुए कहा कि अगर आपने आज ये काम शुरू किया है तो हम इसे ख़त्म करना जानते हैं।
अर्णब के अलावा कंगना रनौत के ख़िलाफ़ भी विधानसभा में विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाया गया था। कंगना ने उद्धव ठाकरे के ख़िलाफ़ जमकर बयानबाज़ी की थी। इसके बाद शिव सेना के मुखपत्र ‘सामना’ बीजेपी और केंद्र सरकार पर हल्ला बोला गया था।
‘सामना’ के संपादकीय में लिखा गया था, ‘मुंबई शहर महाराष्ट्र और यहां रहने वाले 11 करोड़ लोगों का है। इसका अपमान देशद्रोह के तुल्य है और ऐसा करने वाले के पीछे केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय मजबूती के साथ खड़ा है। कोई भी ऐरा-गैरा मुंबई और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के बारे में तू-तड़ाक से बात करने लगता है, इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।’
‘सामना’ में अर्णब और कंगना के लिए लिखा गया था कि अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए किसी देशद्रोही पत्रकार, किसी सुपारी बाज कलाकार को आगे लाना और उसका समर्थन करना गलत है।
अर्णब के ख़िलाफ़ मुक़दमे
पालघर में साधुओं की लिंचिंग प्रकरण में अर्णब के चैनल की रिपोर्टिंग से दो धर्मों में तनाव पैदा होने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा प्रदेश में कई पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कराया गया था। नागपुर में उद्धव ठाकरे फैंस क्लब की तरफ से भी मुख्यमंत्री का अपमान करने की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई गई थी जबकि पुणे में सामाजिक कार्यकर्ता निलेश नवलखा ने अर्णब के ख़िलाफ़ टीवी शो में ग़लत भाषा का इस्तेमाल करने संबंधी मामला दर्ज कराया था।
4 नवंबर की सुबह रायगढ़ और मुंबई पुलिस ने अर्णब गोस्वामी को उनके घर से गिरफ़्तार कर लिया था। मुंबई पुलिस ने अर्णब, उनकी पत्नी, बेटे और दो अन्य लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस अधिकारियों पर हमला करने के आरोप में एफ़आईआर भी दर्ज की थी। लेकिन अर्णब सुप्रीम कोर्ट चले गए थे और वहां से उन्हें राहत मिल गई थी।