महंगाई के मोर्चे पर तो कुछ राहत की खबर आई है। रिजर्व बैंक के आशावाद पर मोहर भी लग गई और उसकी यह बात सही भी साबित हुई कि महंगाई शायद अब उतार पर है। खुदरा महंगाई का आंकड़ा सोलह महीनों में सबसे नीचे पहुंच गया है। हालांकि इसका मतलब यह कतई नहीं है कि दाम गिर गए हैं। इसका मतलब बस यह है कि महंगाई बढ़ने की रफ्तार में कमी आई है।
रिजर्व बैंक ने जब इस बार ब्याज दरें बढ़ाने के सिलसिले पर ब्रेक लगाया तो उसे यह भरोसा था कि महंगाई दर में अब कुछ कमी दिखने वाली है। हालांकि उस वक्त तक खुदरा महंगाई का आंकड़ा छह परसेंट से नीचे नहीं आया था। यानी अगर रिजर्व बैंक एक बार और दरें बढ़ाने का ऐलान करता तो उसकी कोई खास आलोचना नहीं होती। बाज़ार को उम्मीद तो यही थी कि अभी कम से कम एक बार दरें और बढ़ेंगी। लेकिन रिजर्व बैंक ने उम्मीद से पहले ही खुशखबरी दे दी।
हालांकि यह खुशखबरी से ज्यादा एक बड़ी चिंता से मुकाबले की कोशिश भी थी। हालांकि रिजर्व बैंक ने भारत की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान पहले से 0.1% बढ़ा दिया और गवर्नर ने कहा भी कि महंगाई की चुनौती बनी हुई है। लेकिन विश्लेषकों की राय थी कि रिजर्व बैंक दरअसल सरकार का काम आसान कर रहा है और कोशिश कर रहा है कि इस विकट समय में देश की तरक्की की रफ्तार तेज़ करने में अगर कोई भूमिका न भी निभा सके तो कम से कम उसकी राह में रोड़ा न अटकाए।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने बीते हफ्ते दुनिया भर की ग्रोथ के जो आंकड़े जारी किए हैं वो इस बात की पुष्टि करते हैं कि ग्रोथ के मोर्चे पर भारत अभी आश्वस्त भाव में नहीं दिख सकता। जहां रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए आर्थिक वृद्धि का अनुमान 0.1% बढ़ाकर 6.5% किया है, वहीं मुद्रा कोष यानी आईएमएफ ने अपने पुराने अनुमान 6.1% को भी 0.2% घटाकर 5.9% कर दिया है। इससे पहले विश्व बैंक भी अपने 6.6% से घटाकर 6.3% कर चुका है। हालांकि इस गिरावट के बाद भी भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़नेवाली अर्थव्यवस्था रहेगी यह बात मुद्राकोष की रिपोर्ट में कही गई है। वो इस अंधकार भरे माहौल में भारत को रोशनी की एक चमकती किरण की तरह देख रहे हैं। उसके यह कहने की वजह भी है, यूरोप और अमेरिका में मंदी का संकट सामने दिख रहा है। आईएमएफ के अनुसार 2023 में अमेरिका 1.6% और फ्रांस 0.7% ही तरक्की कर पाएगा, जबकि जर्मनी की अर्थव्यवस्था में -0.1% और ब्रिटेन में -0.7% की गिरावट आने की आशंका है। उधर चीन इस साल 5.2% और 2024 में 4.5% की रफ्तार दिखा सकता है, पिछले साल उसकी बढ़त तीन परसेंट ही थी। हालांकि मुद्राकोष को यकीन है कि दुनिया के ज्यादातर देश कोरोना महामारी के अभी तक खिंच रहे दुष्प्रभावों और रूस युक्रेन संकट से पैदा हुई नई मुसीबत के बावजूद मंदी की चपेट में जाने से बचने में कामयाब रहेंगे।
फिर भी आर्थिक विकास दुनिया के सामने एक बड़ी चुनौती बना रहेगा। भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाएं मजबूत रहेंगी और दुनिया की ग्रोथ का आधा हिस्सा इन दो देशों से ही आएगा। आईएमएफ प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा का कहना है कि अभी काफी समय तक आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी रहने का डर है। अगले पांच साल तक दुनिया का ग्रोथ रेट तीन परसेंट से नीचे ही रहेगा। यह 1990 के बाद से सबसे कमजोर अनुमान है। और पिछले दो दशकों के औसत 3.8% से काफी नीचे भी है।
ऐसे में यह तो साफ समझ आता है कि विश्व बैंक और मुद्रा कोष दोनों को ही भारत में ऐसी चमक क्यों दिख रही है। वो कह रहे हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत है और यह ज़रूरी भी है ताकि भारत अपने नागरिकों का जीवन स्तर सुधार सके और रोजगार पैदा कर सके जो इस वक्त ज़रूरी हैं। लेकिन इसी वक्त वो बाकी दुनिया के बारे में इतना आशावान नहीं है। उनका कहना है कि अमीर देशों में तो नब्बे परसेंट की ग्रोथ में कमी आना तय है और गरीब देशों में भी ग्रोथ कम होना उनके लिए एक बड़े झटके की तरह आएगा क्योंकि फिर उनके लिए तरक्की की रेस में आगे आना और मुश्किल होता जाएगा। इसकी वजह से कोरोना के बाद पैदा हुआ गरीबी और भूख का संकट और बढ़ सकता है। शायद इसीलिए पिछले हफ्ते विश्व बैंक और मुद्रा कोष की बैठक में यह चिंता साफ दिखती रही। भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि भारत आर्थिक सुधारों के लिए संकल्पबद्ध है और उन्होंने दुनिया को न्योता दिया कि इस सफर में हमारे साथ आएं।
जाहिर है दुनिया के अमीर से अमीर देशों को भी इस वक्त भारत और चीन में संभावनाएँ दिख रही हैं क्योंकि इस मुसीबत के दौर में यह दो देश हैं जो तरक्की की दौड़ में आगे रहेंगे। इससे न सिर्फ हमारा अपना भला होगा बल्कि बाकी दुनिया को भी शायद आर्थिक मंदी से मुकाबले में मदद मिल सकती है। इस वक्त खासकर विकसित देश कितनी बड़ी मुसीबत में हैं और क्यों वो भारत या चीन जैसे देशों की तरफ नज़रें टिकाए हुए हैं यह समझने के लिए एक ही आंकड़ा काफी है। पिछले साल दुनिया की बड़ी टेक कंपनियों ने करीब 165000 कर्मचारियों को नौकरी से निकाला, और इस साल भी यह सिलसिला जारी है। जनवरी से मार्च 2023 के बीच ही 168000 लोग अपनी नौकरियों से हाथ धो चुके हैं। अभी मंदी का डर गहराया तो क्या होगा समझना मुश्किल नहीं है। इधर मुश्किल हालात में भी भारत से एक्सपोर्ट बढ़ना राहत की खबर है। हालांकि मार्च के महीने में भारत से जो माल बाहर गया वो पिछले साल से 13.6% कम रहा जो तीन साल की सबसे बड़ी गिरावट थी। लेकिन 22-23 में कुल मिलाकर माल के निर्यात में छह परसेंट की बढ़ोत्तरी आई जो इस विकट परिस्थिति में बड़ी बात मानी जाएगी।
उधर सर्विसेज का एक्सपोर्ट सत्ताइस परसेंट बढ़कर 323 अरब डॉलर हो गया है। इसमें सॉफ्टवेयर और दूसरी पुरानी सेवाओं के अलावा हाल ही में शुरू हुए लीगल सर्विसेज के कारोबार की भी हिस्सेदारी है। हालांकि फरवरी में यहां कमी दिखी है, और आइटी कंपनियों के नतीजों पर नज़र रखनेवाले जानकारों को डर है कि अमेरिका या यूरोप में जो बैंकिंग संकट दिखाई दिया या अर्थव्यवस्था में जिस कमजोरी का डर है उसका झटका इस कारोबार पर भी आ सकता है। चिंता इस बात की भी है कि एक्सपोर्ट के मुकाबले इंपोर्ट में ज्यादा तेज़ बढ़त हुई है। जहां पूरे वित्त वर्ष में कुल एक्सपोर्ट 13.84% बढ़कर 77000 करोड़ डॉलर के रिकॉर्ड पर पहुंचा वहीं इंपोर्ट ने 17.38% की और ऊंची छलांग लगाकर 89200 करोड़ डॉलर का नया शिखर छू लिया है। सबसे भारी तेज़ी रूस से इंपोर्ट में आई है जो सस्ते तेल की भारी खरीद के कारण 370% उछल गया। इसका दबाव भारत के व्यापार घाटे पर भी दिख रहा है और विदेशी मुद्रा भंडार के कम होने में भी इसी का हाथ है।
इन आशंकाओं के बावजूद हालात सुधरने की उम्मीद दिख रही है। आइटी कंपनियों के अलावा बाकी ज्यादातर कारोबार में लगी कंपनियों के चौथी तिमाही के नतीजों में काफी तगड़ा मुनाफा दिखेगा ऐसी उम्मीद है।किराना कारोबार की बिक्री के आंकड़े आ रहे हैं और खबर है कि गांवों में फिर खऱीदारी तेज़ हो रही है। जहां शहरों में पिछले साल के मुकाबले 7.9% की बढ़त है वहीं गांवों का यह आंकड़ा 16.8% है। लेकिन यह जानकारी जुटानेवाली रिसर्च एजेंसी का कहना है कि अब भी लोग हाथ खोलकर खर्च करते नहीं दिख रहे हैं। यानी चिंता बाकी है।
चिंता यह भी है कि अमीर और गरीब की खाई को पाटने का इंतजाम नहीं किया गया तो ग्रोथ तेज़ होने का फायदा कितने लोगों को मिल पाएगा। जो फिक्र आईएमएफ प्रमुख को दुनिया के गरीब देशों के लिए हो रही है। वही फिक्र भारत में सबसे गरीब लोगों और सबसे पिछड़े इलाकों के लिए भी होनी ज़रूरी है। लेकिन जैसा विश्व बैंक का कहना है कि इस गरीबी और पिछड़ेपन से मुकाबले के लिए विकास का तेज़ होना बहुत ज़रूरी है और शायद यही एकमात्र तरीका भी है। सवाल सिर्फ यह है कि आज की तारीख में भी जब आर्थिक सुधारों की बात होती है तो क्या सुधारों की परिभाषा पर पुनर्विचार नहीं होना चाहिए।
इस वक्त भारत इस स्थिति में भी है कि वो अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं पर दबाव बनाए और यह सवाल पूछे कि विकास किसके लिए और किसकी कीमत पर होना है? विकास का फायदा आखिरी आदमी या आखिरी औरत तक पहुंचाने की शुरुआत तो यह सवाल पूछकर ही होना है। या फिर एक मुल्क की तरह भारत को अपना जवाब तैयार कर लेना होगा और फिर दुनिया देख लेगी कि उज्जवल भविष्य की राह कैसे बनती है। लेकिन गरीब और कमजोर की फिक्र किए बिना विकास तेज हो भी जाए तो ज्यादा समय तक पटरी पर टिकना मुश्किल है।