नफ़रत के इंजन से कैसे दौड़ेगा विकास?

08:19 pm Apr 07, 2025 | पंकज श्रीवास्तव

स्टार्ट अप महाकुम्भ में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के बयान पर वबाल मच गया है। तमाम उद्यमी खुलकर सरकार की आलोचना करने को मजबूर हुए हैं। इनमें उद्योग जगत के ऐसे सितारे भी हैं जो कल तक हर बात पर मोदी सरकार की वाह-वाह करते थे। ऐसा लगता है कि सरकार इस मुद्दे पर घिर गयी है। सबसे बड़ी बात ये है कि पीयूष गोयल के बयान में चीन से पिछड़ जाने की स्वीकारोक्ति छिपी हुई है जिससे मोदी सरकार हमेशा मुँह छिपाती रही है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी ने बजट सत्र में लोकसभा में यही कहा था जिस पर बीजेपी ने उन्हें चीनपरस्त तक बता दिया था।

दिल्ली में 5 अप्रैल को केंद्रीय उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने स्टार्ट-अप महाकुम्भ में समापन भाषण देते हुए कुछ ऐसा कह दिया कि उद्यमियों को बर्दाश्त नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा, “हमारा ध्यान फूड डिलीवरी एप्स की तरफ़ ज़्यादा है। हम बेरोज़गार नौजवानों को सस्ते लेबर में बदल रहे हैं ताकि अमीर लोगों को बिना घर से बाहर निकले खाना मिल सके। …लोग फैंसी आइसक्रीम और कूकीज़ बेच रहे हैं। हेल्दी आइसक्रीम, 'ज़ीरो ग्लूटन फ्री’ और ‘विगन’ जैसे शब्द लगाकर अच्छी पैकेजिंग करके अपने आपको स्टार्टअप बोलते हैं। यह स्टार्टअप नहीं है। यह व्यवसाय है।”

यही नहीं, उन्होंने सार्वजनिक तौर पर चीन से पिछड़ने की बात स्वीकार की। उन्होंने कहा, "चीन के स्टार्टअप इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और बैट्री टेक्नोलॉजी को विकसित करने पर काम कर रहे हैं। जिसके चलते आज चीन इलेक्ट्रिक मोबिलिटी ईकोसिस्टम क्षेत्र में बहुत आगे है। सेमी कंडक्टर्स में ग्रोथ हो रही है। चीन में खुद की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बनाई जा रही है। वे आत्मनिर्भर बनने के लिए भारी निवेश कर रहे हैं। चिप्स और एआई मॉडल्स तैयार कर रहे हैं। जो देश को भविष्य के लिए तैयार करेगा।”

चीन की तरक़्क़ी की ये दास्तान बीजेपी का कोई नेता करे, ऐसा आमतौर पर होता नहीं है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि केंद्रीय मंत्री सारी ज़िम्मेदारी स्टार्ट-अप कंपनियों पर डाल रहे हैं, जबकि निवेश से लेकर उद्यमियों की राह आसान करने वाली नीतियों को बनाने की ज़िम्मेदारी सरकार की ही है। इस बयान पर विपक्ष को तो हमलावर होना ही था, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इस मोर्चे पर उद्योग जगत ने खुला खुला एतराज़ जताया है। यह ऐतराज़ ऐसी भाषा में है जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी।

भारत पे के संस्थापक अश्नीर ग्रोवर ने कहा,

“चीन ने भी शुरू में फूड डिलीवरी एप बनाए, बाद में वे एआई टेक की तरफ़ आगे बढ़े। चीन ने जो किया उससे प्रेरित होना अच्छा है। लोगों के लिए नौकरियाँ पैदा करने वालों की आलोचना करने से पहले राजनेताओं को भी अगले 20 वर्षों तक 10% से अधिक आर्थिक विकास दर से आगे बढ़ने की आकांक्षा करनी चाहिए।”

वहाँ ज़ेप्टो के सीईओ आदित पर्चा ने कहा,

"भारत में उपभोक्ता स्टार्ट-अप्स की आलोचना करना आसान है। खासतौर से जब आप उनकी तुलना चीन और अमेरिका से कर रहे हों। अगर ज़ेप्टो की बात करें तो इसके ज़रिए आज भारत में लगभग 1.5 लाख लोग आजीविका कमा रहे हैं। एक ऐसी कंपनी जो सिर्फ़ साढ़े तीन साल पहले अस्तित्व में आई। सरकार को हर साल हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा का टैक्स दे रही है।”

इन्फ़ोसिस के पूर्व सीएफ़ओ मोहनदास पई मोदी सरकार के काफ़ी प्रशंसक माने जाते रहे हैं। लेकिन इस मसले पर उन्होंने भी पीयूष गोयल की तीखी आलोचना की।

उन्होंने कहा,

‘पीयूष गोयल को बताना चाहिए कि एक मंत्री के रूप में उन्होंने भारत में डीप टेक स्टार्ट-अप्स बढ़ाने के लिए क्या किया? चिप डिजाइन, आईओटी, रोबोटिक्स, ईवी चार्जिंग, बीएमएस में भारत में बहुत सारे छोटे डीप टेक स्टार्ट-अप्स हैं, जो तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन पूँजी कहां है? भारतीय स्टार्ट-अप को 2014 से 2024 के बीच 160 बिलियन डॉलर मिले जबकि चीन को 845 बिलियन डॉलर मिले।”

उद्यमियों के ये बयान मोदी सरकार को उद्योग हितैषी बताने वाले विज्ञापनों की कलई खोल रहे हैं। वैसे, पीयूष गोयल पर किसी ने यह आरोप नहीं लगाया कि वे भारत को नीचा दिखा रहे हैं जैसा कि राहुल गाँधी के साथ किया गया था। बजट-सत्र में चीन से पिछड़ने को लेकर राहुल ने तब सरकार को चेताया था। उन्होंने कहा था,

“सच्चाई स्वीकार कीजिए। चाइननीज मोटर्स, चाइनीज़ बैटरीज़ के बल पर हम चीन से लड़ रहे हैं। एआई में भारत से पिछड़ गया है।”

इस बयान पर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया जतायी थी। सांसद और पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता साबित पात्रा ने कहा था,

“मैं उन्हें 'राहुल जिनपिंग' कहकर संबोधित करना चाहता हूँ। उन्होंने चीन का नाम 34 बार लिया। वह प्रार्थना कर रहे होंगे कि अगले जन्म में चीनी बनें।”

यानी बीजेपी राहुल की भारत के प्रति निष्ठा पर ही सवाल उठा रही थी। लेकिन अब पीयूष गोयल भी वही बात कर रहे हैं जो राहुल ने कही थी। ज़ाहिर है कि कांग्रेस को हमलावर होने का मौक़ा मिला है। पार्टी ने कहा है-

"पीयूष गोयल खुद स्टार्ट-अप पर मोदी सरकार की पोल खोल रहे हैं। वो बता रहे हैं कि भारत स्टार्ट-अप के नाम पर सिर्फ़ फूड डिलीवरी एप बना रहा है, जिसमें बेरोजगार कम दिहाड़ी पर अमीरों को खाना पहुंचाने का काम कर रहे हैं।”

स्टार्ट-अप इंडिया अभियान की शुरुआत 2016 में हुई थी। तब देश में पाँच सौ मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप थे। 15 जनवरी, 2025 तक इनकी कुल संख्या 1,59,157 हो गयी है। अप्रैल 2025 तक भारत में कुल यूनिकॉर्न स्टार्ट-अप 118 हैं, जबकि चीन में यूनिकॉर्न की संख्या 409 है। यूनिकॉर्न उन निजी स्टार्ट-अप को कहते हैं जिनकी वैल्यूएशन एक अरब डॉलर से ज़्यादा होती है।

पीयूष गोयल के बयान से चीन और भारत की विकास यात्रा की तुलना शुरू हो गयी है जो 1970 में लगभग बराबर ही थे। तब भारत की प्रति व्यक्ति आय 110 डॉलर और चीन की 112 डॉलर थी। लेकिन आज चीन की जीडीपी 18 ट्रिलियन डॉलर की हो चुकी है जबकि भारत की जीडीपी 3.5 ट्रिलियन डॉलर है। चीन की सालाना प्रति व्यक्ति आय 12500 डॉलर और भारत की महज़ 2500 डॉलर है। 

चीन में लोकतंत्र नहीं है और कम्युनिस्ट पार्टी का एकल शासन है। लेकिन 1980 के बाद चीन ने बाज़ार का रुख़ किया। देंग शियाओ पिंग की नीतियों से निवेश और मैन्युफैक्चरिंग बढ़ी। कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव देंग शियाओ पिंग ने कहा कि यह मायने नहीं रखता कि ‘बिल्ली काली है या गोरी, जब तक वह चूहा पकड़ती है।’ यानी चीन ने पूँजीवादी तरीक़ों को स्वीकार कर लिया। लेकिन कोशिश की कि पूँजी कुछ घरानों में सीमित न हो और इसका लाभ व्यापक जनता को हो।

भारत में भी 1991 के आसपास सुधारों की प्रक्रिया शुरू हो गयी थी जब पीएम नरसिम्हाराव के वित्तमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने नई आर्थिक नीति का प्रस्ताव रखा था। इस नीति ने भारत में भी विशाल मध्यवर्ग पैदा किया। आर्थिक तरक़्क़ी का दौर शुरू किया। लेकिन धीरे-धीरे इसकी सीमा सामने आ गयी।

इनोवेशन यानी अनुसंधान और शोध में पिछड़ने का सीधा असर हुआ कि सेवा क्षेत्र में तो विकास हुआ, लेकिन मैन्यूफ़ैक्चरिंग में नहीं। दरअसल, अनुसंधान के लिए ज़रूरी है मुक्त चिंतन… पुराने विचारों पर खुलकर सवाल उठाने की आज़ादी। वैसे तो भारत में लोकतंत्र है और चीन में अधिनायकवाद लेकिन चीन में विचारों के क्षेत्र में किसी भी परंपरा या सोच पर लोग सवाल उठा सकते हैं। जबकि भारत ने बीते कई दशक हिंदू-मुस्लिम विवाद में गँवा दिये। यहाँ तक कि तर्क और विज्ञान को लेकर अभियान चलाने वाले नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, कलबुर्गी, गौरी लंकेश जैसे लेखक-पत्रकारों की जान भी ले ली गयी। जेएनयू जैसा विश्वविद्यालय देशद्रोहियों का अड्डा प्रचारित कर दिया गया जबकि वह देश का नंबर एक विश्वविद्यालय है और जिसकी वैश्विक प्रतिष्ठा है।

विज्ञान और अनुसंधान का हाल ये है कि हिमाचल प्रदेश में मंडी स्थित आईआईटी के निदेशक लक्ष्मीधर बेहरा ने पिछले दिनों कहा कि हिमाचल में भूकंप की वजह मांसाहार है और आईआईटी मद्रास के निदेशक वी.कामकोटि पिछले दिनों गोमूत्र पीकर बुख़ार उतारने के नुस्ख़े को सही ठहराने की वजह से चर्चा में थे। आलम ये है कि गंगाजल के प्रदूषण पर भी सवाल उठाना मुश्किल हो गया है। पिछले दिनों प्रयागराज में हुए महाकुम्भ के दौरान नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने कहा था कि गंगा जल नहाने तो छोड़िए, आचमन के योग्य भी नहीं है। इस पर तीखी प्रतिक्रिया जतायी गयी थी। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में कहा था कि कुंभ में गंदगी देखने वाले सुअर और गिद्ध हैं।

बीती रामनवमी के दिन कई प्रदेशों में निकले जुलूसों में हिंसा और गाली-गलौज दुनिया भर में सुर्खी बनी, जबकि चीन अपने एआई रीज़निंग मॉडल डीपसीक की वजह से चर्चा में है। चीन के एक स्टार्ट-अप ने जनवरी 2025 में सिर्फ़ 60 लाख डॉलर ख़र्च करके ये कमाल कर दिया, जबकि ओपन एआई, गूगल और माइक्रोसॉफ़्ट ने अरबों डॉलर ख़र्च करके अपना एआई मॉडल बनाया था।

साफ़ है कि बिना ज्ञान-विज्ञान के परिसर को मज़बूत किये अनुसंधान के क्षेत्र में तेज़ी नहीं लायी जा सकती जिस पर भारत में लगातार बमबारी हो रही है। हद तो ये है कि पिछले दिनों एनसीईआरटी की ओर से डार्विन के विकासवाद को भी कक्षा दस की किताबों से बाहर करने की कोशिश हुई थी जिस पर पूरी दुनिया का चिकित्सा विज्ञान टिका हुआ है। लेकिन दरअसल, डार्विन का विकासवाद बताता है कि धरती पर जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई और कैसे अरबों साल की प्रक्रिया के बाद आज का मनुष्य अस्तित्व में आया। ज़ाहिर है, ये सब पढ़कर बच्चे तमाम धार्मिक कथाओं को गप्प मान लेंगे। जिज्ञासा होगी तो वे सवाल पूछेंगे और पृथ्वी शेषनाग के फन से उठकर अंतरिक्ष में घूमने लगेगी। धार्मिक कथाओं के ज़रिए जनमत को गोलबंद करने वाली सरकारों को असल में यही डर है। वह भूल जाती है कि नफ़रत की किक से विकास की गाड़ी को स्टार्ट नहीं किया जा सकता।