1952 में एक फ़िल्म आई थी- ‘बैजू बावरा’। बहुत मशहूर हुई थी। उस फ़िल्म का एक सीन था जिसमें बैजू ‘ओ दुनिया के रखवाले...’ गाता हुआ महल में प्रवेश करता है। सभी उसका गाना सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उसी वक़्त एक दरबारी यह कहते हुए दौड़ता हुआ आता है- ‘मेरा शागिर्द आ गया… मेरा शागिर्द आ गया’। बैजू का उससे कुछ लेना-देना नहीं था लेकिन वह चिल्ला-चिल्लाकर बैजू पर अपना ठप्पा लगा देता है।
मुझे लगता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने या तो वह फ़िल्म देखी होगी या फिर इत्तिफ़ाक़ है कि वह उस सीन को अक्सर रिक्रिएट करते नज़र आते हैं। अब दिल्ली में प्रदूषण के मामले पर उन्होंने जिस तरह से यह दावा किया है कि मेरी सरकार के आने के बाद प्रदूषण कम हो गया या फिर वह डेंगू के मामले में जिस तरह अपनी सरकार को श्रेय दे रहे हैं, लगता है कि उनकी भूमिका ठीक उस दरबारी जैसी ही है जो बैजू पर अपना ठप्पा लगाता नज़र आता है। उस दरबारी की तरह ही केजरीवाल इतने विश्वास के साथ श्रेय लेते हैं कि सभी विश्वास भी कर लेते हैं।
आजकल वैसे भी दूसरे देशों में जाकर अपनी मार्केटिंग के बल पर भक्तों को वशीभूत करने का दौर चल रहा है तो फिर केजरीवाल भी पीछे क्यों रहें। वह भी कोपेनहेगन, डेनमार्क में 9 अक्टूबर से लेकर 12 अक्टूबर को होने वाले सी-40 सम्मेलन में जा रहे हैं और उनका दावा भी है कि वह दिल्ली से प्रदूषण कम करने के लिए अपनी सरकार द्वारा की जा रही कोशिशों को साझा करेंगे। दिल्ली में 25 फ़ीसदी प्रदूषण कम करने के ‘अपने’ प्रयासों को भी सीएम केजरीवाल दुनिया भर से आए नेताओं और विशेषज्ञों के सामने दावों के साथ श्रेय लेते नज़र आएँगे।
आपको पता ही है कि दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए वह क्या तर्क दे रहे हैं। पहला तर्क तो यही है कि उनकी सरकार ने दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराई, जिससे प्रदूषण के मुख्य कारण जनरेटर से निकलने वाले धुएँ से दिल्ली को निजात मिली। वहीं ईस्टर्न और वेस्टर्न परिफेरियल हाईवे के बनने से भी दिल्ली में बढ़ रहे प्रदूषण पर लगाम लगी। दिल्ली में होने वाले इंडस्ट्रीयल प्रदूषण पर भी लगाम लगाई गई। दो थर्मल प्लांटों को बंद करवा दिया गया। दिल्ली में पेड़ लगाने के लिए लोगों को जागरूक किया गया। इसके साथ ही सबसे ज़्यादा प्रदूषण वाले दिनों में ऑड-ईवन नियम लागू कर दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण पर पूरी तरह से लगाम लगाने का प्रयास किया गया। दिल्ली की सड़कों की सफ़ाई मशीनों से कराई गई जिससे धूल उड़नी बंद हुई।
दिल्ली में प्रदूषण कम करने वाले सारे कामों का श्रेय केजरीवाल अपने कंधों पर ले रहे हैं और यह दावा कर रहे हैं कि हमने दिल्ली में प्रदूषण कम करा दिया है। वह तो कहते हैं कि सारी दुनिया में ऑड-ईवन का डंका बज रहा है।
अब ज़रा एक-एक दावे को गहराई से देखें तो लगता है कि केजरीवाल की हालत बैजू-बावरा के दरबारी से अलग नहीं है। सबसे पहले बात करते हैं दिल्ली में 24 घंटे बिजली सप्लाई की और जेनरेटरों के ग़ायब होने की। केजरीवाल जिस हालात का ज़िक्र करते हैं, वह 2002 में थी। शीला दीक्षित की सरकार ने बिजली के बिलों पर भले ही काबू नहीं पाया हो लेकिन बिजली के निजीकरण के बाद बिजली के हालात में ज़रूर सुधार कराया। 2010 तक दिल्ली में बिजली के हालात पूरी तरह काबू में आ गए थे और सच तो यह है कि जेनरेटरों और इनवर्टर तभी से ग़ायब होना शुरू हो गए थे। दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने बिजली के सेक्टर में सब्सिडी देने के अलावा कुछ और उल्लेखनीय नहीं किया।
हालाँकि वह यह कहकर सत्ता में आए थे कि बिजली कंपनियों की चोरी रोककर बिजली के रेट कम कराएँगे लेकिन उन्होंने सरकारी खजाने से सब्सिडी देकर एक तरह से जनता की जेब से ही बिलों का भुगतान किया है। उनका यह दावा पूरी तरह ग़लत है कि बिजली की सप्लाई में सुधार से प्रदूषण कम हुआ है। वह दिल्ली में कोयले से चलने वाले दो पावर हाउस को बंद कराने की बात करते हैं तो आईपी बिजली घर तो 6-7 साल पहले ही बंद हो गया था। राजघाट पावर हाउस बंद हुए भी दो-तीन साल हो चुके हैं।
केजरीवाल के दावों में कितना दम?
इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि अगर केजरीवाल के दावों में दम है तो फिर इस साल जनवरी-फ़रवरी तक दिल्ली की हवा इतनी ज़हरीली क्यों थी? अगर उनके जेनरेटरों का धुआँ पाँच सालों में कम हुआ है तो फिर उसका असर तो लगातार दिखना चाहिए था। सिर्फ़ इसी साल ही वह असर क्यों दिखाई दिया है? जहाँ तक ऑड-ईवन का सवाल है तो ऑड-ईवन भी 2016 में दो बार हुआ था। उसका असर 2019 में दिखाई दे रहा है, यह दावा करना तो दूसरों को बेवकूफ समझना ही है। ऑड-ईवन का असर अब साढ़े तीन साल बाद हो रहा है। यह कैसा फ़ॉर्मूला है, केजरीवाल ही जानें।
सोचना होगा कि आख़िर इस साल क्या हुआ जिससे प्रदूषण कम हो गया। दरअसल हरियाणा, यूपी, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर और पंजाब के ट्रक दिल्ली को अपना रास्ता बनाकर गुज़रते रहे हैं। यह सिलसिला बरसों से जारी है।
रोज़ाना क़रीब 70 हज़ार ट्रक दिल्ली की हवा को ज़हरीली बना रहे थे। सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी की लगातार कोशिशों के बाद बरसों से लटक रहे ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफेरियल रोड बन सके और चालू भी हो सके।
इसके लिए सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का संकल्प भी साफ़ दिखाई देता है। दिल्ली सरकार ने तो एनएच-24 को मेरठ तक चौड़ा करने की केंद्र की योजना में पैसा देने से ही इनकार कर दिया था, जबकि एनएच-24 के कम हुए प्रदूषण का भी वह श्रेय ले रहे हैं। इन ट्रकों के दिल्ली में घुसने से रुकने पर दिल्ली की आबोहवा बदली है। यह इसी साल हुआ है और इसी साल प्रदूषण कम हुआ है। इसके अलावा दिल्ली में प्रवेश करने वाले वाहनों से पर्यावरण टैक्स वसूल करने के एनजीटी के आदेश से भी वाहनों के प्रवेश पर अंकुश लगा है। अब अगर इसका श्रेय केजरीवाल लेना चाहते हैं या इस तथ्य को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं तो फिर कोई भी कैसे विश्वास कर सकता है। दिल्ली की सड़कों की सफ़ाई का काम तीनों नगर निगमों ने किया है। हालाँकि यह सब भी एनजीटी के आदेशों पर ही हुआ लेकिन इसका श्रेय केजरीवाल के खाते में कैसे जा सकता है? केजरीवाल तो सफ़ाई करने वाले कर्मचारियों की सैलरी देने के लिए भी एमसीडी की मदद नहीं कर सके। दिल्ली की हरियाली बढ़ाने के लिए केजरीवाल ने कौन-सा अभियान चलाया, यह भी किसी को याद नहीं है।
पहले से बचाव की तैयारी क्यों?
दिल्ली में औद्योगिक प्रदूषण कम करने के लिए क्या किया गया, यह भी कोई नहीं जानता। हाँ, नगर निगम ने एनजीटी की सख्ती के बाद निर्माण स्थलों को ढकने जैसे क़दम ज़रूर उठाए। अब अगर केजरीवाल उसका भी श्रेय लेना चाहते हैं तो सच्चाई सभी को पता है।
केजरीवाल ने प्रदूषण कम करने का श्रेय लिया लेकिन अख़बारों में बड़े-बड़े विज्ञापनों से जनता को आगाह कर दिया कि अब अगर प्रदूषण बढ़ता है तो पराली के कारण बढ़ेगा यानी फिर मुझे प्रदूषण बढ़ने का दोष मत देना। अब प्रदूषण बढ़ेगा तो फिर उसका सीधा दोष पंजाब-हरियाणा पर डाल दिया जाएगा।
मगर, कोपनहेगन में कौन जानेगा कि केजरीवाल कितना सच बोल रहे हैं। वहाँ वह ख़ुद अपनी पीठ थपथपाएँगे और अपने आपको और अपनी सरकार को प्रदूषण कम करने का सर्टिफ़िकेट भी दे देंगे। बैजू बावरा में उस दरबारी पर सभी ने विश्वास कर लिया था जबकि फ़िल्म देखने वाले जानते थे कि वह झूठा श्रेय ले रहा है। क्या दिल्ली की जनता को भी सब दिखता है?