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शरद पवार से छगन भुजबल क्यों मिलने पहुंचे, क्या राजनीतिक वजह थी

शरद पवार से छगन भुजबल क्यों मिलने पहुंचे, क्या राजनीतिक वजह थी

महाराष्ट्र में सोमवार का दिन जबरदस्त राजनीतिक गतिविधियों का दिन था। लेकिन इसमें छगन भुजबल की शरद पवार से मुलाकात राडनीतिक चर्चा के केंद्र में है। मीडिया को बताया गया कि भुजबल मराठा कोटे के सिलसिले में पवार से मिलने गए थे। लेकिन महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के लिए चंद महीने बचे हुए हैं, उसके मद्देनजर इस मुलाकात को सिर्फ मराठा कोटे के नजरिए से देखना गलत होगा। इन दोनों दिग्गज नेताओं के बीच जरूर कोई राजनीतिक खिचड़ी पक रही है। जानिएः

महाराष्ट्र के वरिष्ठ मंत्री छगन भुजबल ने सोमवार को मुंबई में एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के प्रमुख शरद पवार से उनके आवास पर मुलाकात की। इससे महाराष्ट्र के सत्ता गलियारों में हलचल मच गई। इस मुलाकात के बाद भुजबल ने कहा- “आरक्षण को लेकर मराठों और ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के बीच बढ़ती दुश्मनी के बाद महाराष्ट्र में स्थिति खराब होती जा रही है। तेज ध्रुवीकरण महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य के सामाजिक ताने-बाने के लिए हानिकारक है। शरद पवार जैसे वरिष्ठ और अनुभवी नेता को आगे आना चाहिए और शांति बहाल करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए... मराठा बनाम ओबीसी विवाद राज्य को अस्थिर कर देगा। यह महाराष्ट्र के हित में खतरनाक है।”

हालांकि इन्हीं भुजबल ने एक दिन पहले भुजबल ने पवार के गृह क्षेत्र बारामती में एक रैली में उन पर निशाना भी साधा था। भुजबल ने रैली में अप्रत्यक्ष रूप से शरद पवार पर आरोप लगाया था कि “शाम 5 बजे बारामती से एक फोन कॉल के बाद विपक्षी नेता सर्वदलीय बैठक (9 जुलाई को) से दूर रहे। शरद पवार जैसे वरिष्ठ नेता को बैठक में आना चाहिए था और हमें अपना इनपुट देना चाहिए था। भुजबल ने कहा, बैठक का बहिष्कार करने और फिर सलाह देने से कोई फायदा नहीं होता है।

भुजबल एक दिन पहले शरद पवार के खिलाफ इतना तीखा बोल रहे हैं और एक दिन बाद उनसे खुद जाकर मिल रहे हैं। इसी घटनाक्रम ने राजनीतिक विश्लेषकों को सोचने पर मजबूर किया। कहा जा रहा है कि सोमवार की बैठक भुजबल की तरफ से डैमेज कंट्रोल का एक कदम था। जैसे ही भुजबल को एहसास हुआ, उन्हें इतना ज्यादा मुंह नहीं खोलना चाहिए था। इससे एनसीपी अजीत पवार की पार्टी में भी कई लोग नाराज हो गए।

इस मुलाकात का एक और विश्लेषण भी है। सूत्रों के अनुसार, राजनीतिक रूप से चतुर माने जाने वाले भुजबल ने पवार से हस्तक्षेप करने के लिए कहकर दो मकसद हासिल करने की कोशिश की। एक, उन्होंने संकेत देने की कोशिश की है कि मराठा-ओबीसी मामले में विपक्ष की तरह सरकार भी चिंतित है। दूसरा, उन्होंने बहुत महीन संकेत दिया है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, जो राज्य के प्रमुख मराठा चेहरों में से एक हैं, समस्या को हल करने में विफल रहे हैं।

इस साल की शुरुआत में, भुजबल की वजह से कोटा विवाद पर महायुति के मतभेद सामने आये थे। उन्होंने खुलासा किया कि ओबीसी श्रेणी के तहत मराठा आरक्षण के लिए राज्य सरकार के स्टैंड के विरोध में उन्होंने नवंबर 2023 में सरकार से इस्तीफा दे दिया था। उस समय, माना जाता था कि उनके इस कदम को भाजपा का समर्थन प्राप्त था क्योंकि वह यह चाहती थी कि ओबीसी नाराज न हों, जबकि सीएम शिंदे ने मराठों को खुश करने के प्रयासों का नेतृत्व किया था।

हाल के महीनों में, भुजबल कई मुद्दों पर महायुति के साथ असहमत दिखे, जिससे अटकलें लग रही हैं कि वह पाला बदल सकते हैं। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान एनडीए की "400 पार" की पिच ने इसकी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया और वह तब शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे के समर्थन में सामने आए जब भाजपा ने उन्हें मुंबई होर्डिंग गिरने के लिए दोषी ठहराया, जिसमें नौ लोगों की मौत हो गई। उन्होंने राज्य के स्कूलों में मनुस्मृति को शामिल करने के सरकारी प्रस्ताव का भी विरोध किया। फिर नासिक लोकसभा का टिकट नहीं मिलने और राज्यसभा सीट उनके बजाय अजीत पवार की पत्नी सुनेत्रा को देने पर उनकी नाराजगी की खबरें आईं।

महायुति के नेता सोमवार को भुजबल और शरद पवार की मुलाकात के बारे में ज्यादा कुछ देखने से इनकार कर दिया। राज्य भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा कि “भुजबल और पवार की मुलाकात राजनीतिक नहीं है। अगर अलग-अलग पार्टियों के दो नेता किसी मुद्दे पर चर्चा के लिए मिलते हैं तो इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। यह मान लेना कि भुजबल खुद को महायुति से दूर कर रहे हैं या प्रतिद्वंद्वियों के करीब जा रहे हैं, कुछ विपक्षी नेताओं की एक बेबुनियाद कल्पना है।”

शिव सेना के संजय शिरसाट ने भी दोनों की बैठक को अधिक तवज्जो नहीं देते हुए कहा कि इसमें ''राज्य के कुछ मामलों पर दो नेताओं की चर्चा'' के अलावा और कुछ नहीं था। चार बार मुख्यमंत्री रहे, पवार के पास समुदायों के बीच संघर्षों से निपटने का अनुभव है और जिनसे महायुति सीख सकती है। 1992 में मंडल आयोग की रिपोर्ट के कार्यान्वयन से लेकर धनगर और वंजारी समुदायों के बीच विवादों को सुलझाने तक, पवार की सलाह से ये मुद्दे सुलझाए गए।

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