भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए जातीय चक्रव्यूह रचने की योजना बनाई है। उसने इसे अंज़ाम देने के लिए छह महारथियों को मैदान में उतार दिया है। पार्टी ने वी सतीश, चंद्रशेखर, अविनाश राय खन्ना, अर्जुन राम मेघवाल, गजेंद्र सिंह शेखावत और सतीश पूनिया को जातियों की ज़मीनी सच्चाई का अध्ययन करने की ज़िम्मेदारी सौंपी है। उनसे यह भी कहा गया है कि वे सभी जातियों के अंदरूनी समीकरण और पार्टी से उनकी नाराज़गी की वज़हों का तफ़सील से अध्ययन करें और उन्हें एक मंच पर लाने की कोशिश करें। उनकी ग्राउंड रिपोर्टोे के आधार पर ही पार्टी चुनाव रणनीति बनाएगी और उम्मीदवारों का चयन करेगी।
राजस्थान की प्रभावशाली जातियों में जाट, गुर्जर, मीणा, राजपूत और ब्राह्मण प्रमुख हैं। जाटों की संख्या लगभग 15 प्रतिशत है। वे जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर, नागौर, झुंझनू, भरतपुर, धौलपुर, अजमेर, पाली और हनुमानगढ़ में बड़ी तादाद में हैं। गुर्जरों की तादाद 10 प्रतिशत है और आबादी में मीणाओं की भागीदारी तक़रीबन छह फ़ीसद है। इसके अलावा राजपूतों की संख्या पांच प्रतिशत से ज़्यादा और ब्राह्मण लगभग 12 फ़ीसद हैं। इनमें से अधिकतर जातियां पारंपरिक रूप से कांग्रेस के साथ रही हैं। पर पिछले विधानसभा चुनावोें में भाजपा इसमें सेंध लगाने में कामयाब रही। भाजपा को लगभग 45 प्रतिशत वोट मिले थे और इसने 162 सीटें जीत ली थी। पार्टी की सारी कोशिश इन वोटरों को छिटकने से रोकने की है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की कार्यशैली, कुछ जातियों की कथित उपेक्षा, नौकरियों में आरक्षण का मुद्दा और एससी एसटी क़ानून में संशोधन ऐसे कारण हैं, जिनसे अगड़ी जातियां पार्टी से नाराज़ हैं। सत्ताधारी दल की रणनीति यह होगी कि किसी तरह इन जातियों को फिर से पटाया जाए और ऐसी इंजीनियरिंग रची जाए कि इनका समर्थन बरक़रार रहे। पार्टी उत्तर प्रदेश में इस तरह की सोशल इंजीनयरिंग कर चुकी है और उसे उसमें ज़बरदस्त कामयाबी मिली थी।
पिता जसवंत सिंह की उपेक्षा से आहत मानवेंद्र ने पार्टी छोड़ दी
जसवंत-मानवेंद्र पहुँचाएंगे नुक़सान
मारवाड़ इलाक़े के जालौर, बाड़मेर, पाली, सिरोही और जैसलमेर ज़िलों में फैले राजपूत लगभग 20 विधानसभा सीटों पर नतीज़े प्रभावित करने की स्थिति में हैं। राजपूत मोटे तौर पर भाजपा के साथ रहे हैं। उन्होंने पिछले चुनाव मे भी पार्टी का साथ दिया था। पर वे फ़िल्म 'पद्मावत' में अपनी जाति के कथित अपमान को रोक पाने में सरकार की नाक़ामी से गुस्से में हैं। उन्हें यह भी लगता है कि उनकी उपेक्षा की गई है और सत्ता में उन्हें सही हिस्सेदारी नहीं मिली है। इसे भांपते हुए पूर्व विदेश और वित्त मंत्री जसवंत सिंह के बेटे और शिव के विधायक मानवेंद्र सिंह ने पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया। उन्होंने कांग्रेस में जाने के संकेत भी दे दिए हैं। वह पिछले लोकसभा चुनाव में अपने पिता की उपेक्षा से आहत थे। उन्होंने अपने इस्तीफ़े को ‘राजपूत स्वाभिमान’ से जोड़ते हुए कहा है कि समुदाय के लोगों का अपमान हुआ है। वे सत्ताधारी पार्टी को नुक़सान पंहुचा सकते हैं क्योंकि इस जाति के लोगों पर बाप-बेटे की पकड़ बरक़रार है।
आरक्षण के लिए धरना देते जाट समुदाय के लोग
सरकार से ख़फ़ा हैं जाट
मारवाड़ के अधिकतर ज़िलों में राजपूत और जाट साथ साथ बसते हैं। इनकी मौज़ूदगी जैसलमेर, बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, झुंझनू, चुरू, सीकर, भरतपुर, धौलपुर, अज़मेर और पाली में अधिक है। वे सूबे की जनसंख्या के लगभग 15 फ़ीसद हैं। लगभग 60 विधानसभा क्षेत्रों में उनकी अच्छी मौजूदगी है। वे तक़रीबन 84 सीटों के नतीज़ा प्रभावित करने की स्थिति में हैं। वे पारंपरिक रूप से कांग्रेस के साथ थे और उस पार्टी में उनके सबसे बड़े नेता बलराम जाखड़ हुआ करते थे।पर धीरे-धीरे कांग्रेस की पकड़ ढीली हुई और पिछले विधानसभा चुनाव में जाटों ने भाजपा का साथ दिया। लेकिन गुर्जरों और मीणाओं की देखादेखी उन्होंने भी सरकारी नौकरियोँ में आरक्षण की मांग की और बड़ा आंदोलन चलाया। उन्हें अब तक इसमें कामयाबी नहीं मिली है और वे सत्ताधारी दल से ख़फ़ा हैं।
किरोड़ी सिंह बैंसला
गुर्जरों का गुस्सा
एक और प्रभावशाली जाति गुर्जर भी पार्टी से दूर हो सकती है। सूबे में गुर्जरों की संख्या 10 फ़ीसद है। वे पूर्व और दक्षिण राजस्थान में प्रभावशाली स्थिति में हैं। वे टोंक, धौलपुर, करौली, दौसा, सवाई माधोपुर, कोटा, बूंदी और झालवाड़ के तक़रीबन 25 विधानसभा सीटों पर अपना असर छोड़ सकते हैं। वे पहले कांग्रेस के साथ थे और राजेश पायलट उनके बड़े नेता थे। पिछले चुनाव के समय आरक्षण के मुद्दे ने उन्हें भाजपा के नज़दीक ला खड़ा किया था। साल 2008 में किरोड़ी सिंह बैंसला ने गुर्जर समेत पांच जातियों के लिए आरक्षण की मांग की और एक बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया। वह गुर्जरों के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे और पिछली बार उन्होंने भाजपा का साथ दिया था। पर बैंसला राज्य सरकार से इस क़दर नाराज़ हैं कि उन्होंने भरतपुर सबडिवीज़न में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिन्धिया की ‘गौरव यात्रा’ को रोकने का एलान कर दिया था। ख़ैर, अटल बिहारी वाजपेयी के निधन की वजह से यात्रा का वह चरण रोक दिया गया और मुख्यमंत्री फ़ज़ीहत से बच गईं। कांग्रेस के सचिन पायलट गुर्जर ही हैं। वह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल के नज़दीक माने जाते हैं और प्रभावशाली युवा नेताओं में राज्य में सबसे आगे हैं। वह भाजपा को बड़ी चुनौती दे सकते हैं।
किरोड़ी लाल मीणा
आरक्षण पर चुप है सरकार
लगभग छह प्रतिशत आबादी वाले मीणा ज़्यादातर इलाक़ों में गुर्जरों के साथ रहते हैं। इन दोनों का राजनीतिक टकराव चलता रहता है और एक दूसरे के ख़िलाफ़ रहते हैं। सत्ताधारी दल किसी तरह किरोड़ी लाल मीणा को अपने साथ जोड़ पाई। पर मीणा अपने समुदाय के लिए नौकरियों मे आरक्षण चाहते हैं। वह इस मांग से जुड़े आंदोलन के बल पर ही बड़े नेता बने और इसे छोड़ अपनी राजनीतिक ख़ुदकुशी नहीं करेंगे। सारा पेच यहीं फंसा हुआ है। मीणा ही नहीं, गुर्जरों, जाटों और यहां तक कि ब्राह्मणों तक को आरक्षण चाहिए। पर राज्य सरकार इस पचड़े में फंसना नहीं चाहती। लिहाज़ा, भाजपा किसी जाति को आरक्षण का भरोसा नहीं दे सकती। इसका एक कारण यह है कि वह 50 फ़ीसद से ज़्यादा आरक्षण नही दे सकती। दूसरी बात, एक जाति को आरक्षण देने से दूसरी जाति नाराज़ हो जाएगी।
घनश्याम तिवाड़ी