विधानसभा में महज दो सीटों से स्पष्ट बहुमत पाने से चूकी मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को बीजेपी के एक विधायक ने ‘सेफ़’ कर दिया है। बीजेपी विधायक के ‘कदम’ ने कमलनाथ सरकार को इस कदर राहत दी है कि यदि सरकार का सहयोग करने वाले दल बसपा-सपा के तीन और अन्य तीन निर्दलीय विधायक ‘गच्चा’ दे जायें तो भी सदन में बहुमत साबित करने के लिए आवश्यक नंबर गेम में कमलनाथ सरकार को किसी भी तरह की मुश्किल पेश नहीं आयेगी और वह अपने मौजूदा बल पर आसानी से बहुमत साबित कर देगी।
लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से कमलनाथ सरकार के भविष्य को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के सामने यह सवाल है कि ‘कमलनाथ सरकार कब तक चल पायेगी’
बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने तो एग्ज़िट पोल के बाद और चुनाव नतीजे आने के पहले से ही कमलनाथ सरकार की घेराबंदी तेज़ कर दी थी। विजयवर्गीय ने कहा था, ‘चुनावों के नतीजे आने के बाद यह सरकार अगले 23 दिनों में गिर जायेगी।’ उधर भार्गव ने लोकसभा के रिजल्ट के पूर्व राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र लिखकर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की माँग कर डाली थी। भार्गव ने मध्य प्रदेश से जुड़े मुद्दों का हवाला ख़त में दिया था, लेकिन मीडिया से बातचीत में कहा था - ‘एग्ज़िट पोल के नतीजे साफ़ संकेत दे रहे हैं कि विधानसभा में बीजेपी से कुछ ही सीटें ज़्यादा पाने वाली ‘अल्पमत की सरकार’ मध्य प्रदेश की जनता का विश्वास खोती नज़र आ रही है। ऐसे में सरकार को विधानसभा के फ्लोर पर बहुमत साबित करने के लिए तैयार रहना चाहिये।’
मध्य प्रदेश में लोकसभा की कुल 29 में से 28 सीटें कांग्रेस हार गई। इसके बाद से बीजेपी ने दबाव की राजनीति तेज़ की हुई है। कमलनाथ ने भी कई बार कहा है, ‘उनकी सरकार को किसी तरह का ख़तरा नहीं है। विधानसभा के पहले सत्र में तीन बार सदन के फ्लोर पर सरकार ने बहुमत साबित किया। अब भी जब ऐसी नौबत आयेगी सरकार नंबर गेम में आसानी से प्रतिपक्ष को परास्त कर देगी।’
एक नंबर की ही दरकार थी कांग्रेस को
कमलनाथ सरकार को सदन में अपने दम पर बहुमत साबित करने के लिए मात्र एक नंबर की दरकार थी। कुल 230 सदस्यों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में बहुमत का आँकड़ा 116 है। विधानसभा चुनाव में 114 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस को बसपा के दो, सपा के एक और चार निर्दलीय विधायकों ने समर्थन दे रखा है। कुल 121 विधायकों के साथ कांग्रेस ने सरकार बनायी थी। कमलनाथ ने एक निर्दलीय विधायक प्रदीप जायसवाल को मंत्री बनाया हुआ है। इस तरह से सरकार बचाने के लिए महज एक नंबर की दरकार कांग्रेस को बनी हुई थी। नंबर गेम के मद्देनजर बचे हुए तीन निर्दलीय विधायक और सपा-बसपा के तीन विधायक मंत्री बनने के लिए जुगत में जुटे हैं।
बीजेपी विधायक ने कुछ इस तरह दी ‘राहत’
झाबुआ सीट से बीजेपी के विधायक गुमान सिंह डामोर रतलाम-झाबुआ सीट पर लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं। मंगलवार देर शाम उन्होंने विधायक पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। मध्य प्रदेश विधानसभा के प्रमुख सचिव अवधेश प्रताप सिंह ने ‘सत्य हिन्दी’ को पुष्टि की कि डामोर का त्यागपत्र विधानसभा सचिवालय को मिल गया है। सिंह ने कहा आज ईद का अवकाश होने की वजह से अब गुरुवार को झाबुआ सीट को रिक्त घोषित करने संबंधी कार्रवाई सचिवालय पूरी करेगा।
डामोर के इस्तीफ़े को विधिवत मंजूरी मिलने के बाद मध्य प्रदेश विधानसभा में निर्वाचित विधायकों का आँकड़ा 229 हो जायेगा। ऐसे में 229 के मान से बहुमत का नंबर 115 हो जायेगा। मंत्री प्रदीप जायसवाल (निर्दलीय विधायक) को मिलाकर कांग्रेस के पास यह नंबर है।
सदन के फ्लोर पर बहुमत साबित करने के लिए कमलनाथ सरकार को बसपा-सपा के तीन और तीन अन्य निर्दलीय विधायकों के ‘रहमो-करम’ से फ़िलहाल मुक्ति मिल जाएगी। हालाँकि - कमलनाथ, उनकी सरकार को समर्थन दे रहे बसपा-सपा और निर्दलीय विधायकों को नाराज़ करने के मूड में नहीं हैं।
सुगबुगाहट है कि विधानसभा के पावस (वर्षाकालीन) सत्र के पहले कमलनाथ अपनी कैबिनेट का विस्तार कर सकते हैं। संभावित विस्तार में कांग्रेस के कुछ रूठे हुए विधायकों के अलावा बसपा-सपा और निर्दलीय विधायकों में से कुछ को मंत्रिमंडल में जगह देकर नंबर गेम में सरकार को मज़बूती देने की कोशिश की जा सकती है।
बता दें कि अधिकतम 35 मंत्री कमलनाथ बना सकते हैं। फ़िलहाल मुख्यमंत्री समेत 29 सदस्य मंत्रिमंडल में हैं। यानी मंत्री के छह पद रिक्त हैं, जिन्हें भरे जाने की संभावनाएँ हैं। मंत्री और राज्यमंत्री का दर्जा वाले पदाधिकारियों की नियुक्तियों का सिलसिला भी निगम-मंडलों में विधानसभा सत्र के पहले शुरू होने के संकेत हैं।
बीजेपी को संभालना होगा अपना ‘घर’
कहावत है जिनके अपने घर ‘शीशों’ के होते हैं वे दूसरे के ‘घरों’ पर ‘पत्थर’ नहीं मारते। विधानसभा में बीजेपी विधायकों का नंबर 109 था। एक विधायक के इस्तीफ़े के बाद अब यह 108 हो जायेगा। झाबुआ की रिक्त सीट पर अगले छह महीनों में चुनाव होगा। यानी कमलनाथ सरकार को गिराने का खेल यदि बीजेपी खेलने का प्रयास करती है तो यह खेल आसान नहीं होगा। बीजेपी के अपने विधायकों में कई ऐसे विधायक बेचैन हैं जो कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में आये थे। ऐसे विधायकों में संजय पाठक और नारायण त्रिपाठी प्रमुख हैं। बीजेपी के गुट की राजनीति में वे ख़ुद को पूरी तरह से ढाल नहीं पाये हैं। त्रिपाठी की तो सतना से दूसरी बार निर्वाचित बीजेपी सांसद गणेश सिंह से खुली राजनीतिक अदावत चल रही है। शिवराज सरकार में मंत्री बनाये गये संजय पाठक भी बहुत ख़ुश नहीं बताये जा रहे हैं। कांग्रेस दोनों ही विधायकों के साथ अन्य उन असंतुष्टों पर भी ‘डोरे’ डाले हुए है जो बीजेपी में ‘नाखुश’ हैं। यानी बीजेपी को कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने के प्रयासों के पहले अपने घर में ‘टूट-फूट’ की संभावनाओं को रोकने की महती ज़िम्मेदारी का निर्वहन भी करना है।
कांग्रेस लगा चुकी है विधायकों की ख़रीद-फरोख्त के आरोप
लोकसभा चुनाव के बाद और इसके पहले भी कांग्रेस ने उसके विधायकों को लालच देने के आरोप बीजेपी पर मढ़े हैं। कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कई अवसरों पर यह बात कही है। कमलनाथ सरकार के एक मंत्री ने हाल ही में कहा था, ‘बीजेपी से हाथ मिलाने के लिए कांग्रेस विधायकों को 50 करोड़ रुपये के साथ मंत्री पद का लालच तक दिया गया है।’ बसपा-सपा और निर्दलीय विधायकों के अलावा कांग्रेस के कई उन वरिष्ठ विधायकों ने भी पार्टी को घुड़की दे रखी है जिन्हें मंत्री नहीं बनाया गया है। मंत्री पद के दावेदार ऐसे विधायकों में दिग्विजय सिंह के बेहद निकटस्थ विधायकों में शुमार केपी सिंह, बिसाहूलाल सिंह और ऐंदलसिंह कसाना के नाम सबसे ऊपर हैं। केपी सिंह तो कमलनाथ की मौजूदगी में हुई लोकसभा हार से जुड़ी समीक्षा बैठक में दो टूक कह चुके हैं, ‘बीजेपी से बुलावा है - वे यदि जाएँगे तो पार्टी को बताकर जाएँगे।’ बैठक में बिसाहूलाल और ऐंदल सिंह ने भी केपी सिंह की बात का खुलेआम समर्थन कर कमलनाथ की परेशानी बढ़ा दी थी।
बीजेपी के लिए झाबुआ अब नहीं होगी आसान
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के प्रमुख अभियंता पद से रिटायर हुए गुमान सिंह डामोर ने विधानसभा चुनाव में झाबुआ सीट को कांतिलाल भूरिया के पुत्र और कांग्रेस प्रत्याशी डॉक्टर विक्रांत भूरिया को हराकर यह सीट बीजेपी के लिए जीती थी। लोकसभा के चुनाव में उन्होंने कांतिलाल भूरिया को हराया। कांग्रेस उम्मीवार कांतिलाल 90 हज़ार से कुछ ज़्यादा वोटों से सीट को हारे, लेकिन झाबुआ विधानसभा सीट पर उन्हें 7600 वोटों की बढ़त मिली। ऐसा माना जा रहा है कि झाबुआ सीट पर जब भी उप-चुनाव होगा कांग्रेस की ओर से प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया ही होंगे। भूरिया और कांग्रेस के अलावा बीजेपी को सरकार से भी निपटना होगा - जो बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा।