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महाराष्ट्र की घटना से क्यों खड़े हैं नीतीश के कान? 

महाराष्ट्र की घटना से क्यों खड़े हैं नीतीश के कान? 

क्या बिहार में बीजेपी जदयू गठबंधन डगमगा रहा है। क्या महाराष्ट्र की सियासत के जैसा घटनाक्रम बिहार में भी हो सकता है। 

सोमवार को बिहार की दो खबरों ने सनसनी पैदा कर दी जिससे एक बार फिर साबित हुआ कि जदयू फिलहाल बिहार में भाजपा से लड़ते-मिलते रहेगा हालांकि बिहार से बाहर वह जुदा राह पर चलेगा। यह चर्चा जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर गर्मायी थी।

जदयू से औपचारिक रूप से अब तक अलग नहीं हुए इसके पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह हैदराबाद में चल रही भाजपा कार्यकारिणी की  बैठक के दौरान भाजपा के मंच पर गये। वहां उनका स्वागत हुआ। इसके बाद महज इस फोटो के आधार पर हर जगह यह अफवाह खबर बन गयी कि आरसीपी भाजपा में शामिल हो गये।

खैर, चूंकि आरसीपी कह चुके हैं कि वे तो खुद रामचंद्र हैं, उन्हें हनुमान बनने की क्या जरूरत है। इसलिए अभी उनके भाजपा में शामिल होने में, अगर वे वाकई वहां जाने का फैसला कर चुके हैं तो, वक्त लगेगा। स्वर्गीय रामविलास के सुपुत्र चिराग पासवान ’मोदी का हनुमान’ होने का दावा करते थे और उनकी पार्टी का क्या हुआ सबको मालूम है।

मगर जिस तरह आरसीपी अपने ’सर्वमान्य’ नेता नीतीश कुमार से दूरी बनाकर चल रहे हैं और जिस तरह उन्हें जदयू में दरकिनार किया जा चुका है, उससे ऐसा लगता है कि आरसीपी भाजपा के दरवाजे लग चुके हैं, बस फेरे लेना बाकी है। वैसे भी भाजपा से उनकी वैचारिक नजदीकी सबको पता है।

बहरहाल, आरसीपी के भाजपा में शामिल होने की अफवाही खबर पर अब तक उनका बयान नहीं आया है लेकिन पूर्व उप मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा सुशील कुमार मोदी ने ट्वीट कर बताया कि ’’यह समाचार पूरी तरह भ्रामक है कि आरसीपी सिंह भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हुए थे। सरकारी कार्यक्रम में हैदराबाद आए होंगे और एयरपोर्ट पर मौजूद भाजपा कार्यकर्ताओं ने स्वागत कर दिया।’’ 

बहुत से लोग कह रहे है कि सुशील मोदी को यह बात पसंद नहीं कि आरसीपी भाजपा में आएं और इसीलिए उन्होंने फौरन यह कह दिया कि एयरपोर्ट पर स्वागत हुआ। मगर जो तस्वीर आयी उसमें राष्ट्रीय कार्यकारिणी का बैकग्राउंड देखा जा सकता है। अब यह इत्तेफाक भी महज इत्तेफाक ही होगा, यह मानना आसान नहीं है।

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नगालैंड का चुनाव 

दूसरी खबर यह आयी कि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कथित रूप से आरसीपी से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले ललन सिंह ने बयान दिया कि उनका दल नगालैंड में अकेले चुनाव लड़ेगा। अब कुछ जगहों पर यह बात नगालैंड के बिना चल गयी तो बिहार के लोगों को हैरत हुई कि यहां अभी कौन सा चुनाव हो रहा है और बिहार से बाहर लोगों को लगा कि अब बिहार में एनडीए का टूटना तय है।

नगालैंड में अगले साल यानी 2023 में विधानसभा चुनाव होने वाला है। ध्यान रहे कि जदयू उत्तर पूर्व खासकर मणिपुर, अरुणाचल और नगालैंड में अपनी अलग उपस्थिति दर्ज कराने में लगा है। यहां उसके विधायक भी रहे हैं, उनके मदद से सरकार भी बनी है और भाजपा ने जदयू के विधायकों को तोड़कर अपने यहां शामिल भी किया है, जिसपर दोनों दलों के बीच तनाव भी हुआ था। 

जदयू की इसी सफलता के आधार पर उसके वरिष्ठ नेता आफाक अहमद खान को जदयू की ओर से पहले राज्यसभा में भेजा जाने वाला था लेकिन ऐन वक्त पर अनिल हेगड़े को वहां के लिए चुना गया और खान को बिहार विधान परिषद की सदस्यता मिली।

ललन सिंह ने कहा कि नगालैंड में भाजपा से गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ने की कोई बात नहीं हुई है और फिलहाल हमारी तैयारी अकेले और पूरी मजबूती से लड़ने की है।

उन्होंने याद दिलाया कि जदयू बिहार, अरुणाचल और मणिपुर में जदयू मान्यता प्राप्त पार्टी है। अगर चौथे राज्य में उसे मान्य प्राप्त होने का दर्जा मिल जाता है तो वह राष्ट्रीय पार्टी का स्तर प्राप्त कर लेगा। 

नगालैंड के पिछले चुनाव में जदयू को एक सीट मिली थी हालांकि वोट का प्रतिशत कुछ कम रहने के कारण उसे मान्यता प्राप्त पार्टी का दर्जा नहीं मिल सका था। तब उसे 5.6 प्रतिशत मत मिले थे।

चुनाव अलग लड़ने की अफवाही खबरों के बीच जब ललन सिंह से आरसीपी के भाजपा में जाने का सवाल किया गया तो उन्होंने इसे काल्पनिक प्रश्न कहकर टाल दिया। उन्होंने इतना जरूरत कहा कि आगे कुछ भी होगा तो ’हमारे नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार निर्णय लेंगे’।

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इससे पहले जदयू संसदीय बोर्ड के नेता उपेन्द्र कुशवाहा ने भाजपा से अपनी विचारधारा अलग होने के बारे में बयान देते हुए कहा था कि बिहार में नीतीश मतलब एनडीए और एनडीएम मतलब नीतीश हैं। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में नीतीश के बिना एनडीए की कल्पना बेकार है और इसपर किसी को कोई गलतफहमी है तो दूर कर ले।

बिहार में इस समय यह चर्चा क्यों छिड़ी है, यह सोचने की बात है। वास्तव में जदयू को यह अहसास है कि भाजपा नीतीश के बिना भी बिहार में एनडीए की कल्पना कर सकती है। हालांकि भाजपा के किसी सीनियर लीडर ने ऐसा बयान नहीं दिया है लेकिन जदयू को ऐसे ताने सुनने पड़ते हैं कि तीसरी नंबर की पार्टी के नेता नीतीश कुमार कब तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे और 77 सीट लेकर भाजपा कब तक उनकी पिछलग्गू बनी रहेगी।

कुशवाहा का बयान

वास्तव में उपेन्द्र कुशवाहा के इस बयान के पीछे महाराष्ट्र का घटनाक्रम भी है। उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा भी कि दोनों राज्य बिल्कुल अलग हैं। उन्होंने कहा, ’’बिहार मे हम एनडीए के अंग जरूर हैं लेकिन भाजपा और जदयू की विचारधारा अलग है और इसमें कभी हमलोग समझौता नहीं कर सकते।’’ उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा यहां महाराष्ट्र की तरह कुछ कर सके इसका सवाल पैदा नहीं होता। 

उपेन्द्र कुशवाहा ने आरजेडी से वैचारिक समानता और व्यावहारिक भिन्नता की बात कही। कुल मिलाकर बिहार में जदयू महाराष्ट्र जैसी किसी सत्तापलट को लेकर सतर्क है लेकिन भाजपा और जदयू में अंतिम अलगाव में वक्त लगेगा और तब तक दोनों लड़ते-मिलते रहेंगे। 

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