सोशल मीडिया पर 'आलोचना' के लिए जेल के आदेश के लिए तीखी आलोचनाओं का सामना कर रही नीतीश सरकार अब संभलती दिख रही है। राज्य की पुलिस ने आज सफ़ाई जारी की और कहा कि सिर्फ़ रचनात्मक आलोचना स्वीकार्य रहेगी और अफवाह फैलाना और अपमानजनक भाषा के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी।
दरअसल, सरकार ने एक आदेश निकाला है कि इसके ख़िलाफ़ ग़लत लिखने पर यानी आपत्तिजनक लिखने पर जेल हो सकती है। आदेश में सरकारी पदाधिकारियों, मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और सरकार के किसी भी विभाग के प्रमुख के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया और इंटरनेट पर आपत्तिजनक, मानहानि करने वाले या ग़लत और भ्रामक टिप्पणी करने वालों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करने को कहा गया है। इसी पर बवाल हुआ और फिर सफ़ाई आई है।
राज्य की पुलिस ने सफ़ाई में लोकतंत्र की दुहाई देते हुए कहा है कि रचनात्मक आलोचना ज़रूर की जानी चाहिए। अतिरिक्त महानिदेशक जितेंद्र कुमार ने कहा, 'लोकतंत्र के लिए आलोचना ठीक है। लेकिन आलोचना रचनात्मक होनी चाहिए और इस्तेमाल की जाने वाली भाषा शालीनता के मानदंडों के अंदर होनी चाहिए।' उन्होंने यह भी कहा कि यह सलाह अफवाहों और तथ्यात्मक रूप से ग़लत जानकारी को ध्यान में रखते हुए जारी की गई थी और इसमें सोशल मीडिया पर अपमानजनक भाषा का उपयोग भी शामिल था। उन्होंने साफ़ किया कि ये आईटी अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध हैं।
पुलिस की तरफ़ से यह सफ़ाई तब आई जब विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने नीतीश सरकार के इस आदेश को लेकर तीखा हमला किया। उन्होंने नीतीश कुमार को 'भ्रष्टाचार के भीष्म पितामह' बुलाते हुए चुनौती दी कि इस आदेश के तहत अब मुझे गिरफ़्तार करें।
नीतीश सरकार का यह आदेश वैसा ही है जैसा केरल में भी पिनराई विजयन सरकार ने निकाला था। हालाँकि, विजयन सरकार तो अध्यादेश ही ले आई थी। लेकिन जब इस तरह के प्रावधान के लिए उसकी आलोचना की गई तो वह पलट गई।
केरल की विजयन सरकार की तरह ही अब बिहार की नीतीश सरकार की भी आलोचना की जाने लगी है और सरकार डैमेज कंट्रोल में जुटी है।
राज्य की आर्थिक अपराध शाखा ने सरकार के सभी प्रधान सचिवों को पत्र लिखा है। इसमें सरकारी पदाधिकारियों, मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और सरकार के किसी भी विभाग के प्रमुख के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया और इंटरनेट पर आपत्तिजनक, मानहानि करने वाले या ग़लत और भ्रामक टिप्पणी करने वालों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करने को कहा गया है। बता दें कि राज्य में आर्थिक अपराध शाखा ही साइबर अपराध शाखा की नोडल एजेंसी है।
सरकार के इस आदेश के सामने आने के बाद विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने उनपर निशाना साधा। उन्होंने एक के बाद एक कई ट्वीट किए और नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का आरोप लगाया और उन्हें गिरफ़्तार करने की चुनौती दी।
बाद में उन्होंने एक अन्य ट्वीट में नीतीश कुमार पर हिटलर के पदचिन्हों पर चलने का आरोप लगाया। तेजस्वी ने इसमें आरोप लगाया कि नीतीश सरकार में लोग धरना नहीं दे सकते, सरकार के ख़िलाफ़ लिखने पर जेल होगी, आम आदमी विपक्ष के नेता से नहीं मिल सकता है।
बता दें कि नीतीश अपनी सभी सार्वजनिक सभाओं में सोशल मीडिया पोस्ट को अपनी सरकार के ख़िलाफ़ ग़लत, भ्रामक और झूठी सूचनाओं से भरा बताते रहे हैं।
नीतीश कुमार पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी के अंसतोषजनक प्रदर्शन के कारणों में सोशल मीडिया को भी ज़िम्मेदार मानते रहे हैं। उन्होंने पहले भी कहा था कि सोशल मीडिया ने लोगों के बीच उनके सरकार के प्रति एक नाकारात्मक छवि पेश की थी।
राज्य की आर्थिक अपराध शाखा के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक यानी एडीजी नैयर हसनैन ख़ान ने सरकार के सभी प्रधान सचिवों को पत्र में लिखा, 'यह पता चला है कि कुछ व्यक्ति और संगठन सोशल मीडिया पर सरकार, सम्मानित मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और सरकारी अधिकारियों के ख़िलाफ़ अपमानजनक और आपत्तिजनक टिप्पणी कर रहे हैं।'
बता दें कि ऐसा ही मामला केरल में भी आया था। केरल की एलडीएफ़ सरकार तो इस पर अध्यादेश तक ले आई थी। हालाँकि बाद में उसे अपना फ़ैसला पलटना पड़ा। एलडीएफ़ सरकार द्वारा 'आपत्तिजनक' सोशल मीडिया पोस्ट्स को लेकर लाए गए अध्यादेश पर सरकार के भीतर ही मतभेद सामने आने के बाद इसे रोक लिया गया था।
मुख्यमंत्री विजयन ने कहा था कि इसे अमल में नहीं लाया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा था कि सरकार को समर्थन देने वाले और लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए खड़े होने वाले लोगों ने इसे लेकर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा कि विधानसभा में इसे लेकर चर्चा की जाएगी और सारे राजनीतिक दलों की बात सुनने के बाद ही इस संबंध में आगे कोई क़दम उठाया जाएगा।
उस अध्यादेश को लेकर एलडीएफ़ सरकार में शामिल दल सीपीएम ने भी नाराजगी जताई थी। बीजेपी और कांग्रेस जैसी दूसरी विपक्षी पार्टियाँ तो आलोचना कर ही रही थीं।