भूपेंद्र सिंह को उत्तर प्रदेश में बीजेपी का नया अध्यक्ष बनाया गया है। भूपेंद्र सिंह उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में पंचायती राज मंत्री हैं और उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य हैं।
प्रदेश अध्यक्ष पद के संभावित दावेदारों में उत्तर प्रदेश बीजेपी के कई ब्राह्मण नेताओं के साथ ही पिछड़ा वर्ग और दलित समुदाय से आने वाले नेताओं के नाम चर्चा में रहे थे। कई दिनों से इस बात की संभावना जोरों पर थी कि बीजेपी जल्द ही राज्य में अपने नए सेनापति के नाम का एलान कर देगी।
मार्च में राज्य के चुनाव नतीजे आने के बाद से ही पार्टी हाईकमान नए अध्यक्ष की तलाश में जुटा था। प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया जा चुका था और उनके स्थान पर किस नेता को इस पद पर बैठाया जाए, इसके लिए पिछले 4 महीनों में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने लंबी सियासी कसरत की थी। स्वतंत्र देव सिंह का कार्यकाल भी जुलाई में पूरा हो चुका था।
कौन हैं भूपेंद्र सिंह?
भूपेंद्र सिंह ओबीसी समुदाय की ताकतवर जाट बिरादरी से आते हैं। भूपेंद्र सिंह मुरादाबाद के गांव महेंद्री सिकंदरपुर के रहने वाले हैं। वह 1989 में बीजेपी में शामिल हुए थे और उसके बाद उन्होंने जिले से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई पदों पर काम किया।
भूपेंद्र सिंह को अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे एक बड़ी वजह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोक दल के गठबंधन का मुकाबला करना भी है। ऐसा माना जा रहा था कि किसान आंदोलन के कारण पार्टी से कुछ हद तक दूर हुए जाट मतदाताओं को अपने साथ लाने के लिए बीजेपी जाट समुदाय से आने वाले किसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष जैसी बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है और अंत में यही हुआ।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश से नया अध्यक्ष चुनने के पीछे बड़ी वजह यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्वी उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सांसद हैं जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से आते हैं। एक और बड़े नेता और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी पूर्वी उत्तर प्रदेश के कौशांबी से आते हैं। ऐसे में सियासी और क्षेत्रीय समीकरण साधने के लिए बीजेपी हाईकमान ने पश्चिम को तरजीह दी है।
बीजेपी को उत्तर प्रदेश में 2014, 2017, 2019 और 2022 के चुनाव में जबरदस्त सफलता मिली थी। अब उसकी नजर 2024 के लोकसभा चुनाव पर है, जहां वह पिछली बार के अपने प्रदर्शन को सुधारना चाहती है।
2019 के लोकसभा चुनाव में सपा, बसपा और रालोद के गठबंधन की वजह से बीजेपी की सीटें कम हो गई थी। 2014 के चुनाव में उत्तर प्रदेश में उसे अपने दम पर 71 सीटें मिली थी जबकि 2019 में यह आंकड़ा 62 हो गया था। उसकी सहयोगी अपना दल को 2 सीटों पर जीत मिली थी। हाल ही में हुए आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में दोनों सीटें जीतकर बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों के लिए मजबूती से कदम आगे बढ़ाए हैं।
इस बार बसपा सपा और रालोद के साथ नहीं है। सपा के सहयोगी दल भी नाराजगी दिखा रहे हैं। ऐसे में देखना होगा कि क्या जाट नेता के चयन से बीजेपी को पश्चिमी या फिर पूरे उत्तर प्रदेश में कोई फायदा मिलता है।
जाट फैक्टर
2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी और संघ परिवार के सामने यह चिंता बनी हुई थी कि किसान राजनीति में भी प्रभावशाली जाट समुदाय की नाराजगी को कैसे दूर किया जाए। क्योंकि किसान आंदोलन के दौरान हुई पुलिस कार्रवाई और अन्य वजहों से जाट नेताओं की नाराजगी सामने आई थी। ऐसे में पहले उप राष्ट्रपति के चुनाव में जाट समुदाय से आने वाले जगदीप धनखड़ पर और अब उत्तर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष जैसे बड़े पद पर इसी समुदाय के भूपेंद्र सिंह पर पार्टी ने भरोसा जताया है।
किसान राजनीति में भी जाट समुदाय के नेताओं का ही दबदबा है। यह दबदबा किसान आंदोलन के दौरान साफ दिखाई दिया था। किसान आंदोलन की कमान बड़े जाट नेताओं के हाथ में ही थी।
लेकिन यह समझना जरूरी होगा कि जाट समुदाय का असर किन राज्यों में है और कितना है।
जाटों की बड़ी ताकत इनके पास जमीन होना है। इस वजह से इन्हें जमींदार कहा जाता है। ये मूल रूप से खेती-किसानी से जुड़े हैं और इस समुदाय के युवा देश की रक्षा के लिए बड़ी संख्या में भारत की सरहदों पर भी तैनात हैं। चौधरी साहब के रूप में हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के बाहरी इलाकों में इनका सम्मान किया जाता है। चौधरी साहब का मतलब ऐसे शख्स से है जिसका गांव और अपने इलाके में दबदबा है।
किस राज्य में कितनी ताकत?
राजस्थान में जाट सबसे बड़ी आबादी वाला समुदाय है यहां जाटों की आबादी 10 फीसद से ज्यादा है और 200 विधानसभा सीटों में से 80 से 90 सीटों पर इनका असर है। राजस्थान में अगले साल विधानसभा के चुनाव भी होने हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय की आबादी 18 फीसद है। यहां से निकलकर चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने। बड़े किसान नेताओं में महेंद्र सिंह टिकैत पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही थे। किसान आंदोलन में भी महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे राकेश और नरेश टिकैत ने कमान संभाली थी।
हरियाणा को तो जाटों का गढ़ कहा जाता है और यहां अधिकतर मुख्यमंत्री जाट बिरादरी से ही रहे हैं। लेकिन पिछले दो विधानसभा चुनाव में हरियाणा में बीजेपी ने गैर जाट मुख्यमंत्री का दांव खेला। इसे लेकर जाट समुदाय की नाराजगी खुलकर भी सामने आई। हरियाणा में जाटों की आबादी 25 फीसद है।
पंजाब में सिख जाटों की आबादी 22 से 25 फीसदी है। अधिकतर मुख्यमंत्री वहां जाट समुदाय से ही रहे हैं।
दिल्ली में द्वारका से लेकर पालम, महरौली,नजफगढ़, बिजवासन, मुंडका, नांगलोई, नरेला, बवाना, मुनिरका आदि इलाकों में जाटों के गांव हैं। पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा जाट बिरादरी से थे और अब उनके बेटे प्रवेश वर्मा जाट चेहरे के तौर पर बीजेपी के सांसद हैं। राजधानी में जाट 6 फीसद के आसपास हैं।
केशव प्रसाद मौर्य
कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष के पद के लिए उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का नाम तेजी से चला था। इसकी वजह यह थी कि मौर्य ने संगठन सरकार से बड़ा है, लिखकर ट्वीट किया था। उसके बाद से यह माना जा रहा था कि केशव प्रसाद मौर्य को नया अध्यक्ष बनाया जा सकता है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
हालांकि विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी केशव प्रसाद मौर्य को बीजेपी ने उप मुख्यमंत्री बनाया और साथ ही विधान परिषद में नेता सदन जैसा अहम पद भी दिया। लेकिन ऐसा लगता है कि मौर्य प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में थे लेकिन पार्टी हाईकमान ने उनके नाम पर मुहर नहीं लगाई।
मौर्य उत्तर प्रदेश में बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं और उनके अध्यक्ष रहते हुए ही 2017 में बीजेपी को प्रचंड जीत मिली थी।
तब इस बात की प्रबल संभावना थी कि मौर्य को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल सकती है लेकिन लंबे मंथन के बाद बीजेपी हाईकमान ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी दी थी और मौर्य को उप मुख्यमंत्री बनाया गया था।