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कर्नाटक चुनाव - बेंगलुरु की इतनी उपेक्षा क्यों? डबल इंजन फेल! 

कर्नाटक चुनाव - बेंगलुरु की इतनी उपेक्षा क्यों? डबल इंजन फेल! 

भारत के सिलिकॉन वैली बेंगलुरु में साल भर में सड़कों पर 321 दोपहिया चालकों की मौत कैसे हो गई? आख़िर विकास के दावे कहाँ हैं? जानिए, शहर के हालात क्या हैं।

यह कहानी है भारत के सिलिकॉन वैली कहे जाने वाले महानगर बेंगलुरु की। जिसे अब वहां के नागरिक ‘सिटी ऑफ थाउजेंड्स ऑफ पॉटहोल्स’ यानी हज़ारों गढ्ढों का शहर कहते हैं। पिछले साल बरसात में यह खूबसूरत शहर सारी दुनिया में चर्चा में रहा क्योंकि बारिश के कारण कई बड़ी कॉलोनियां और मल्टी स्टोरी बिल्डिंगें जलमग्न हो गईं। कारें सड़कों पर तैरने लगीं। इस घटना ने महानगर के नाम पर एक धब्बा सा लगा दिया। यहां के ‘डायनैमिक’ सांसद तेजस्वी सूर्या भी अपनी सरकार को डिफेंड नहीं कर पाये और उनकी भी किरकिरी हो गई। किसी तरह से उस बला से छुटकारा पाया गया। 

अब हालत यह है कि यहां ज्यादातर कारें, बसें और तिपहिया उछलते-कूदते सफर करते हैं। दोपहिया चलाने वालों की तो शामत है, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 321 दोपहिया चालकों की मौत शहर की सड़कों पर हुई। इनमें से बड़ी संख्या में लोग सड़कों में बने गढ्ढों के शिकार हुए। जब भी जनता शोर मचाती है तो निहायत ही घटिया तरीके से उसमें पैचवर्क कर दिया जाता है जिससे वाहन और भी ज्यादा उछलते हैं और उन्हें चलाने में दिक्कत आती है। बरसात के बाद तो इनमें पानी और कीचड़ भर जाता है जिससे पैदल चलने वालों को दिक्कत आती है।

बेंगलुरु में निर्माण के तमाम दावों के बावजूद सड़कें पहले जैसी हैं और इनफ्रास्ट्रक्चर का विकास नहीं के बराबर हो रहा है। यहाँ कई सारे फ्लाईओवर बन रहे थे और कइयों को बनाने की योजना थी लेकिन सारा काम धीमी गति से हो रहा है। एक फ्लाईओवर के बनने में पांच से छह साल लग जाना आम बात है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है वहाँ के मशहूर सोनी सिग्नल के पास खड़ा फ्लाईओवर का एक ढांचा जो कई वर्षों से बन रहा है। यह काफी महत्वपूर्ण है लेकिन इसका काम अधूरा है और इसे पूरा करने का कोई प्रयास होता नहीं दिख रहा है। पिछले साल इसी महीने कर्नाटक हाई कोर्ट ने वृहत बेंगलुरु महानगर पालिका को कई सालों से बन रहे एक फ्लाईओवर को समय के तीन साल बाद तक पूरा नहीं किये जाने पर फटकार लगाई। महानगर के दक्षिण-पूर्वी भाग में एजीपुरा में एक फ्लाईओवर का निर्माण नवंबर 2019 तक हो जाना चाहिए था लेकिन यह आज भी अधूरा पड़ा है। अब अदालत ने आदेश दिया है कि एजीपुरा-केन्द्रित सदन के बीच के कोरमंगला में इस फ्लाईओवर के निर्माण की पक्की तिथि बताएं। लेकिन बेशर्मी की हद यह रही कि इस फटकार के बाद भी उस फ्लाईओवर के निर्माण के लिए ठेकेदार का चयन काफी समय तक नहीं हो सका।

फ्लाईओवरों के निर्माण में जिस तरह की भयंकर देरी होती है उससे वहां के लोग फ्लाईओवरों के निर्माण के नाम से ही कांपने लग जाते हैं। उनका कहना होता है कि इससे अच्छा है कि ये बने ही नहीं क्योंकि इनका काम घिसट-घिसट कर चलता है और उससे कई गुना ज्यादा ट्रैफिक फंसता है। कई लोग तो खुलेआम महापालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार को दोषी ठहराते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार और वेल वर्स मीडिया के सीईओ राजीव रघुनाथ कहते हैं कि इतना ज्यादा रेवेन्यू देने वाले इस महानगर की यह उपेक्षा दुखद है। सरकारें यहां से टैक्स के रूप में काफी पैसा वसूलती हैं। लेकिन उन्होंने यहां कुछ भी नहीं किया। यह महानगर न केवल आईटी बल्कि अन्य तरह के सामानों का उत्पादन केन्द्र भी बन गया है। पर फिर भी यहां विकास के काम ठहर से गये हैं। महानगर में बुनियादी ढांचे की कमी साफ खटक रही है। यहां की महानगर पालिका अपना काम ठीक से नहीं कर पा रही है। कारण बताते हुए वह कहते हैं कि वहां अकर्मण्यता तो है ही, भ्रष्टाचार भी चरम पर है। कोई भी काम आसानी से नहीं होता। 

वह कहते हैं कि यहां पर पालिका की हालत ऐसी है कि कचरा निपटान भी सही ढंग से नहीं होता जिस कारण महानगर में जगह-जगह सफाई की कमी साफ़ दिखती है।

यह राय वहाँ गहने वाले ज़्यादातर लोगों की है। एक फार्मा कंपनी में मैनेजर का काम करने वाले एक सज्जन कहते हैं, हमारा महानगर भारत में सबसे ज्यादा रोड टैक्स वसूलता है क्योंकि पूरे भारत में सबसे ज्यादा रोड टैक्स यहां ही है। फिर भी सड़कों की हालत देखिये जरा। गाड़ी चलाते समय समझ में नहीं आता कि कैसे गढ्ढों से गाड़ी को बचाया जाये। यह बात कैब ड्राइवर अमित भी कहते हैं जो उत्तर प्रदेश से आकर पन्द्रह साल पहले यहां बसे हैं। वह कहते हैं कि यहां की सड़कें हर साल बिगड़ती जा रही हैं और उन्हें ढंग से संवारने की ज़रूरत है लेकिन यथार्थ में कोई भी काम ढंग से नहीं हो रहा है।

नाम न छापने की शर्त पर एक महिला सीनियर मैनेजर कहती हैं कि इस महानगर को किसी सख्त ऐडमिनिस्ट्रेटर की ज़रूरत है जो हाथ पकड़कर काम करवाये। सड़कें पतली हैं और उनकी हालत ख़राब है। ट्रैफिक मैनेजमेंट भी बेकार सा है लेकिन पुलिस वाले भी क्या कर सकते हैं जब सड़कें ही बुरी हालत में हों। हमें अपने ऑफिस समय पर पहुंचने के लिए सुबह साढ़े आठ बजे ही निकल जाना होता है। हालत यह है कि महानगर से एयरपोर्ट जाने के लिए आपको घर से कम से कम चार घंटे पहले निकलना होगा क्योंकि दो घंटे रास्ता तय करने में लगेंगे ही। लोग यह भी सवाल पूछते हैं कि इतनी दूर एयरपोर्ट बनाने की क्या मंशा थी। 

राजीव रघुनाथ कहते हैं कि इस महानगर की समस्या सड़क या यातायात ही नहीं है, यहां पर पानी का बहुत संकट है। इस साल मॉनसून बढ़िया रहा और बारिश अच्छी हो गई इसलिए नदियां, झील और ग्राउंड वाटर लेवल सभी संभले रहे। वरना अब तक स्थिति बिगड़ चुकी होती। पानी का यह हाल है कि महानगर के ज्यादातर हिस्सों में टैंकरों से पानी पहुंचाया जाता है। लेकिन अब तक इस बारे में कोई ठोस कदम उठाया नहीं गया है। 

यहां की समस्याओं के हल में सबसे बड़ी बाधा यह है कि बेंगलुरु पिछले एक दशक से कुछ समय पहले से ही प्रवासियों का शहर बन गया है। यहां तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल के अलावा बिहार-यूपी से भी आकर बड़ी संख्या में लोग बस गये हैं। ये लोग शहर को कोई नुक़सान नहीं पहुंचा रहे हैं लेकिन वे यहां की कमियों के बारे में आवाज़ नहीं उठा रहे। इसके अलावा यहां लगभग सभी प्रोफेशनल हैं, उनके पास वक्त नहीं है। यहां के मूल निवासी धनी हैं और वेल सेटल्ड हैं इसलिए वे इन मुद्दों के बारे में कम ही सोचते हैं। हां, जब वे उठ खड़े होते हैं तो फिर मामला सुलझता है। राजीव कहते हैं कि अगर जनता उठेगी तभी तो समस्याएं सुलझेंगी। चुनाव आ रहे हैं तो शायद कुछ बदलाव देखने में आए।

भाजपा की डबल इंजन वाली सरकार यहां थमी पड़ी दिखती है। चुनाव के बाद किसकी सरकार होगी, यह कहना मुश्किल है। लेकिन जनता में इस बात की चिंता भी है कि अगर कोई और पार्टी आई तो विकास के सारे काम धीमे पड़ जायेंगे क्योंकि चल रहे प्रोजेक्ट को रोक कर फिर से रीटेंडरिंग होगी जैसा उस बार महाराष्ट्र में हुआ था। भ्रष्टाचार राजनीतिक दलों के जीवन का हिस्सा बन गया है। एक महानगर जो दुनिया में अपने गुणों से नाम बिखेर रहा है, सिर्फ सड़कों और ट्रैफिक के कारण चमक खो रहा है।

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