एनआरसी के अंतिम सूची से कोई ख़ुश है क्या? क्या एनआरसी की माँग करने वाले लोग संतुष्ट हैं? बांग्लादेशियों के असम में घुसने के विरोध से ही अस्तित्व में आई असम गण परिषद क्यों नाराज़ है? छात्र से लेकर संगठनों के नेता, बीजेपी की सहयोगी पार्टी और सरकार के मंत्री तक खफा हैं। दरअसल, एक दिन पहले जो एनआरसी की अंतिम सूची जारी हुई है उससे न तो इसके समर्थक ख़ुश हैं और न ही इसका विरोध करने वाले। आख़िर क्यों?
एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर पर अजीबोगरीब स्थिति बन गई है। एनआरसी का समर्थन करने वाले इसलिए नाराज़ हैं कि पहले जहाँ सरकारें कहती रही थीं कि दो करोड़ लोग अवैध रूप से घुस आए हैं वहीं अब एनआरसी की सूची से सिर्फ़ 19 लाख लोगों को बाहर रखा गया है। उनकी नाराज़गी यह भी है कि इन 19 लाख लोगों में बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो वास्तविक रूप से भारतीय नागरिक हैं और एनआरसी की 'ग़लत प्रक्रिया' के कारण सूची में नहीं आ पाए हैं। अब ऐसे ही लोग इसे फिर से वेरिफ़ाई करने की माँग को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं।
बता दें कि एक दिन पहले ही एनआरसी की अंतिम सूची जारी हुई है और इसमें 19,06,657 लोगों को शामिल नहीं किया गया है। एनआरसी ने पाया है कि कुल 3,11,21,004 लोग ही अंतिम सूची में शामिल होने के पात्र हैं।
जब से एनआरसी की प्रक्रिया शुरू हुई है तब से यह पूरा मामला विवादों में रहा है। ये विवाद अलग-अलग रूप में आते रहे हैं।
पहले सवाल उठे कि बांग्लादेश से आए लाखों लोग शरणार्थी बन जाएँगे, उनका क्या होगा? लेकिन अब एनआरसी प्रक्रिया पर ही सवाल उठे हैं कि अवैध तरीक़े से बांग्लादेशी लोगों ने एनआरसी में नाम जुड़ा लिए और बड़ी संख्या में वास्तविक भारतीय नागरिक इससे बाहर रह गए।
असम पब्लिक वर्क्स यानी एपीडब्ल्यू के अध्यक्ष अभिजीत शर्मा सुप्रीम कोर्ट में उन मुख्य याचिकाकर्ताओं में से एक हैं जिनके कारण एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू की गई है। ‘नेटवर्क 18’ के अनुसार शर्मा कहते हैं, ‘संख्या अपेक्षित नहीं है। हमने सोचा था कि यह अधिक होगी। इसके अलावा, ऐसे बहुत से मामले सामने आ रहे हैं जहाँ वास्तविक भारतीय एनआरसी सूची से बाहर होने का दावा करते हैं। भारी ख़र्च और राज्य सरकार के हज़ारों कर्मचारियों की कड़ी मेहनत के बावजूद, प्राधिकरण एक बिना ग़लती के एनआरसी तैयार नहीं कर सका। असम के लोग आज ठगा हुआ महसूस करते हैं।’
उन्होंने कहा, ‘अधिकारियों को प्रक्रिया में ख़र्च किए गए हर एक पैसे का हिसाब देना होगा। हम तीसरे पक्ष की विशेषज्ञ समिति द्वारा प्रक्रिया में उपयोग किए जाने वाले सॉफ़्टवेयर और तकनीकी प्लेटफ़ार्मों का निरीक्षण करने के लिए भी सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे। जब तक पूरी तरह सही एनआरसी तैयार नहीं किया जाता है तब तक पूरी प्रक्रिया एक मज़ाक बनकर रह जाएगी।’
सरकारी आँकड़े से मेल क्यों नहीं?
राज्य का सबसे बड़ा छात्र समूह ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन यानी आसू ने कहा कि एनआरसी से बाहर रहे लोगों की संख्या राज्य में अवैध घुसपैठियों के सरकार के पिछले अनुमानों से मेल नहीं खाती है। ‘नेटवर्क 18’ के अनुसार, आसू के मुख्य सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्जी ने कहा, ‘समय-समय पर सरकार ने ख़ुद ही स्वीकार किया है कि दो करोड़ बांग्लादेशी भारत में दाखिल हुए हैं और संभवतः इसमें से सबसे ज़्यादा असम में। लेकिन एनआरसी सूची से बाहर किए गए लोगों की संख्या इसके आसपास भी नहीं है। हम दुखी हैं, लेकिन हमारा न्यायपालिका में विश्वास है और इसलिए, हम एनआरसी में ग़लतियों को सुधारने के लिए जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में जाएँगे।’
बीजेपी-कांग्रेस के थे क्या दावे?
2016 में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा को एक लिखित प्रश्न के जवाब में बताया था कि उपलब्ध इनपुट के अनुसार, भारत में क़रीब 2 करोड़अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं। रिजिजू ने कहा था कि वैध दस्तावेज़ों के बिना बांग्लादेशी नागरिकों के देश में प्रवेश करने की ख़बरें हैं। इससे पहले यूपीए सरकार के दौरान तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने 14 जुलाई 2004 को संसद में एक बयान दिया था, जिसमें कहा गया था कि देश के विभिन्न हिस्सों में 1.2 करोड़ से अधिक अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं। जायसवाल ने कहा था कि 31 दिसंबर 2001 तक कुल अनुमानित अवैध प्रवासियों में से 50 लाख सिर्फ़ असम में मौजूद थे।
बीजेपी की सहयोगी एजीपी असहाय
शनिवार को एनआरसी की अंतिम सूची के प्रकाशन के बाद सरकार में शामिल और सत्तारूढ़ पार्टी की सहयोगी असम गण परिषद यानी एजीपी भी असहाय जान पड़ती है।
असम के कृषि मंत्री और एजीपी अध्यक्ष अतुल बोरा ने कहा, ‘यह एनआरसी अस्वीकार्य है। घुसपैठ विरोधी आंदोलन से ही अस्तित्व में आई एजीपी का मानना है कि असम में अवैध विदेशी लोगों की संख्या एनआरसी सूची से बाहर किए गए लोगों की तुलना में काफ़ी ज़्यादा है। इसके अलावा, सूची से बाहर रखे गए लोगों में भी कई वास्तविक भारतीय नागरिक हैं। हम 100 प्रतिशत बांग्लादेशी-मुक्त एनआरसी चाहते थे और यह ऐसा नहीं है।’
बीजेपी नेता का ही गड़बड़ी का आरोप
बीजेपी की सहयोगी पार्टी ही नहीं असम में बीजेपी के नेता भी इस सूची से नाराज़ हैं। उन्होंने तो लोगों द्वारा ‘गड़बड़ी’ किए जाने का आरोप लगाया। 'नेटवर्क 18' के अनुसार राज्य के वित्त मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि सही एनआरसी तभी संभव है जब पूरी एनआरसी सूची का ठीक से सत्यापन हो। सरमा ने कहा, ‘1971 से पहले शरणार्थी के रूप में बांग्लादेश से पलायन करने वाले कई भारतीय नागरिकों के नाम एनआरसी में शामिल नहीं किए गए हैं क्योंकि अधिकारियों ने शरणार्थी प्रमाण पत्र स्वीकार करने से इनकार कर दिया। कई नामों को इसलिए शामिल किया गया क्योंकि कई लोगों द्वारा कथित रूप से विरासत के कागज़ात के साथ हेरफेर की गई।’
'घड़ियाली आँसू बहा रही सरकार'
सुप्रीम कोर्ट के वकील उपमन्यु हजारिका की अगुवाई वाली घुसपैठ विरोधी संस्था प्रभजन विरोधी मंच (पीवीएम) ने सत्तारूढ़ सरकार पर दोष मढ़ा है कि वह घड़ियाली आँसू बहा रही है। इसने एनआरसी के मामले में राज्य सरकार पर ‘बहुत कम और बहुत देर से’ कार्रवाई करने का आरोप लगाया। पहले मसौदे के जारी होने के बाद जिन्होंने सबसे पहले एनआरसी सूची के फिर से सत्यापन की माँग की थी, पीवीएम उनमें से एक था।
हजारिका ने कहा, ‘सरकार नागरिकता (संशोधन) विधेयक (सीएबी) लाकर और हिंदू बांग्लादेशियों को नागरिकता प्रदान करके एनआरसी में उनको शामिल करने के लिए अपने विलक्षण जुनून के साथ व्यस्त थी। लेकिन अब जब सीएबी के साथ-साथ कुछ भी करने का समय नहीं है तो सरकार अंतिम एनआरसी पर अपनी नाराज़गी व्यक्त करके घड़ियाली आँसू बहा रही है।’ प्रभजन विरोधी मंच ने कहा कि सरकार को अपनी अक्षमता को ढँकने के लिए नौटंकी करने के बजाय स्थानीय लोगों के लिए प्राकृतिक संसाधनों, ज़मीन, नौकरी और अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए तत्परता से कार्य करना चाहिए।
असम में बांग्लादेशियों के आकर बसने का विवाद काफ़ी पहले से है। लेकिन एनआरसी पर जिस तरह का विवाद इसके शुरू होने से पहले था वैसा ही विवाद इसकी प्रक्रिया शुरू होने के बाद भी बनी रही है। वैसी ही स्थिति इसके अपडेशन के बाद भी है। ऐसे में तो लगता है कि यह विवाद सदियों तक ऐसे ही खींचता चला जाएगा। लेकिन सवाल उठता है कि जब बीजेपी ने एनआरसी मामले में नए सिरे से हाथ डाला तो क्या उसे इसका अंदाज़ा नहीं रहा होगा?