प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार और झारखंड यात्रा में विपक्ष का एक नया चेहरा सामने आया। विपक्ष या ग़ैर भाजपाई दलों ने प्रधानमंत्री का सांकेतिक विरोध भी नहीं किया। बिहार में विपक्ष के नेता राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के तेजस्वी यादव मंच पर प्रधानमंत्री के साथ मौजूद रहे, लेकिन उन मुद्दों को नहीं उठाया जिनसे प्रधानमंत्री मोदी मुश्किल में पड़ सकते थे।
इसे प्रधानमंत्री के प्रति विपक्ष के रूख में बदलाव कहा जाय या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक प्रबंधन? ख़ुद नीतीश ने अपनी पुरानी माँगों को किनारे रख दिया।
मोदी बड़ी शान से पटना में बिहार विधानसभा के शताब्दी समारोह में शामिल होकर दिल्ली लौट आए। झारखंड के देवघर में भी हवाई अड्डे के लोकार्पण कार्यक्रम में उनका कोई विरोध सामने नहीं आया। हालाँकि झारखंड में भाजपा विरोधी झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस की सरकार है।
विशेष राज्य पर सरकार और विपक्ष चुप?
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की माँग बहुत पुरानी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और आरजेडी दोनों ही इसे अपने एजेंडे में सबसे ऊपर रखते हैं।
प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले आरजेडी के प्रमुख नेता उपेन्द्र कुशवाहा और प्रवक्ता शक्ति यादव ने माँग की थी कि प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की घोषणा की जाय। लेकिन प्रधानमंत्री के सामने इस माँग को उठाया भी नहीं गया।
प्रधानमंत्री ने बिहार के लिए किसी बड़ी योजना की घोषणा भी नहीं की जबकि झारखंड के लिए उन्होंने 16 हज़ार 8 सौ करोड़ की नयी योजनाओं की घोषणा कर डाली।
ज़ाहिर है कि भाजपा की नज़र झारखंड पर है, जहाँ उसकी सरकार रह चुकी है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के कई आरोपों की जाँच केंद्रीय एजेंसियाँ कर रही हैं।
क्या जातीय जनगणना भी मुद्दा नहीं?
बिहार में जातीय जनगणना भी एक प्रमुख मुद्दा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस मुद्दे पर राज्य की सभी पार्टियों का समर्थन प्राप्त है। फिर भी इस माँग को नहीं उठाया गया। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व जातीय जनगणना के पक्ष में नहीं है। पार्टी की बिहार इकाई अनमने ढंग से इसका समर्थन करती है। कोरोना के कारण देश में जनगणना टल गयी थी। अब 2023 में इसकी तैयारी चल रही है।
इस माँग पर सभी पार्टियों की ख़ामोशी भी आश्चर्यजनक है। दोनों ही माँगों पर जेडीयू ने भी सतर्कता बरतना शुरू कर दी है।
भाजपा और आरजेडी में नंबर युद्ध
प्रधानमंत्री के सामने पक्ष और विपक्ष दोनों भले ही चुप रहे, लेकिन 2024 के लोकसभा और 2025 के विधानसभा चुनावों के लिए अभी से राजनीतिक पैंतरेबाज़ी शुरू हो चुकी है। बड़ी पार्टियाँ छोटी पार्टियों को ख़त्म करने के खेल में जुट गयी हैं। कुछ महीने पहले भाजपा ने अपने सहयोगी दल विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को तोड़कर अपने साथ मिला लिया जिससे भाजपा विधायकों की संख्या 77 हो गयी।
उसके बाद आरजेडी ने ओवैसी की पार्टी के पाँच में से चार विधायकों को तोड़ लिया जिससे आरजेडी के विधायकों की संख्या 80 हो गयी। नीतीश कुमार के पाला बदल कर आरजेडी के साथ सरकार बनाने की चर्चा भी चलती रहती है।
भाजपा का एक धड़ा नीतीश को केंद्र में एडज़स्ट करके बिहार में अपनी सरकार बनाने की कोशिश भी लगातार करता रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश के मामले में भाजपा फूँक-फूँक कर क़दम रखना चाहती है। प्रधानमंत्री की इस यात्रा से ज़ाहिर है कि कोई भी पार्टी उनसे सीधे पंगा लेने के लिए तैयार नहीं है।
ऑपरेशन शिव सेना और बिहार
राजनीतिक विश्लेषक ये भी मानते हैं कि भाजपा ने जिस तरह से अजेय माने जाने वाले उद्धव ठाकरे के क़िले को भेद डाला उससे बिहार की राजनीतिक पार्टियाँ भी सकते में हैं। ठाकरे जैसा दबदबे वाला कोई नेता बिहार में नहीं है। इसलिए जेडीयू और आरजेडी दोनों ही अपना गढ़ बचाने में लगी हैं। महाराष्ट्र की घटना से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी साफ़ संकेत मिल गया है कि मोदी से टकराना भारी पड़ सकता है।