नूपुर के बयान की आँच मोदी तक आई, तब हुई कार्रवाई

10:43 am Jun 06, 2022 | नीरेंद्र नागर

बीजेपी ने पैगंबर मुहम्मद के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक बयान देनेवाली अपनी प्रवक्ता नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ कार्रवाई करके एक ऐसा 'संदेश' दिया है जो पार्टी के सदस्य और समर्थक पचा नहीं पा रहे और उनका आक्रोश सोशल मीडिया पर झलक रहा है।

संदेश यह है कि भाजपा या मोदी सरकार को देश के 20 करोड़ मुसलमानों के ग़ुस्से की कोई परवाह नहीं है (क्योंकि वह उनके वोटों के बग़ैर भी जीत सकती है) लेकिन पश्चिम एशिया के तेल-समृद्ध मुस्लिम देशों की नाराज़गी से उसकी और मोदी सरकार की सेहत पर बहुत ज़्यादा फ़र्क़ पड़ता है।

आपको याद होगा कि पैगंबर मोहम्मद पर नूपुर शर्मा का बयान 26 मई को आया था लेकिन उसके बाद दस दिनों तक पार्टी की तरफ़ से कोई कार्रवाई नहीं हुई, कोई निंदात्मक बयान तक नहीं आया। पार्टी की चुप्पी को सहमति समझते हुए उसके दिल्ली मीडिया सेल के प्रभारी नवीन कुमार जिंदल ने 1 जून को और भी आपत्तिजनक ट्वीट कर दिया। उनके ख़िलाफ़ भी कोई क़दम नहीं उठाया गया 4 जून तक।

संक्षेप में मुद्दा यही है कि अगर बीजेपी को नूपुर शर्मा या नवीन जिंदल का कहा या लिखा अपनी विचारधारा के विपरीत लग रहा था (जैसा कि अब वह कह रही है) तो उसने इतने दिन इंतज़ार क्यों किया। क्यों नहीं 27 या 28 मई को ही नूपुर शर्मा को सस्पेंड कर दिया? इसी तरह नवीन जिंदल को ट्वीट करने के चार दिन बाद दल से क्यों निकाला गया?

बीजेपी की तरफ़ से यह कार्रवाई तब हुई जब पश्चिम एशिया में इन दोनों के बयानों पर तीखी प्रतिक्रिया शुरू हो गई।

कुछ देशों के मंत्रियों और धार्मिक नेताओं ने इसकी निंदा की और वहाँ के स्टोर्स से भारतीय उत्पादों को हटाया जाने लगा क्योंकि लोग भारतीय उत्पादों के बहिष्कार की माँग कर रहे थे। मामला तब और बिगड़ा जब नूपुर शर्मा को मोदी का क़रीबी सहायक बताया जाने लगा और मुद्दे पर चर्चा के साथ मोदी जी का नाम और फ़ोटो भी जोड़ा जाने लगा।

यानी बात अब केवल नूपुर शर्मा या नवीन कुमार जिंदल तक सीमित नहीं रह गई थी। वह मोदी की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी आघात कर रही थी। ऐसा संदेश जा रहा था मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार भी इन बयानों के साथ है। नूपुर और नवीन दोनों सत्तारूढ़ दल के ही सदस्य और नेता थे और उनके ख़िलाफ़ तक तक कोई ऐक्शन भी नहीं लिया गया था, इसलिए ऐसा संदेश जाना बहुत स्वाभाविक था।

गुजरात दंगा

दूसरे, गुजरात दंगों के कारण मोदी पर मुस्लिम-विरोधी होने को जो बिल्ला 2002 में लगा था, उसके दाग़ आज भी पूरी तरह धुले नहीं हैं। ऐसे में सरकार और बीजेपी के पास इसके सिवाय कोई चारा नहीं था कि पार्टी इन दोनों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करती और मोदी की छवि तक पहुँच रही आँच से उनका बचाव करती।

हम सब जानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को लेकर कितने सजग हैं। वे विश्व के महत्वपूर्ण नेताओं में अपनी गिनती करवाना चाहते हैं और यह तभी हो सकता है जब उनकी छवि निष्कलंक और बेदाग़ हो।

आज की तारीख़ में कोई भी अंतरराष्ट्रीय नेता विश्व पटल पर प्रशंसा और स्वीकृति नहीं पा सकता अगर उसके लिबास पर सांप्रदायिकता या संकीर्णतावाद के दाग-धब्बे हों। डॉनल्ड ट्रंप का हाल हम देख ही चुके हैं जो दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश का राष्ट्रपति होने के बावजूद अपनी नस्लवादी और संकीर्णतावादी छवि के कारण दुनिया में प्रतिष्ठा नहीं पा सके।

हिंदुत्व समर्थकों की पीड़ा 

लेकिन मोदी की छवि को अरब देशों की नाराज़गी की आँच से बचाने के चक्कर में अनजाने ही मोदी की एक और छवि ध्वस्त हो गई। यह वह छवि थी जो मोदी ने अपने 8 साल के शासन में ख़ुद ही तैयार की थी, एक ऐसे मोदी की जो दुनिया में किसी से भी नहीं डरता, किसी के आगे नहीं झुकता, दुनिया का हर नेता जिसे अपना दोस्त मानता है, बराबरी के लेवल पर बात करता है। अब वही मोदी कुछ छोटे-छोटे देशों, वह भी मुस्लिम देशों के दबाव में आ गए, यह बात हिंदुत्व समर्थकों को कितनी तकलीफ़ दे रही होगी, इसका अंदाज़ा कोई भी लगा सकता है। 

अगर बीजेपी ने नूपुर शर्मा या नवीन जिंदल के ख़िलाफ़ तुरंत कार्रवाई कर दी होती तो बात इतनी न बिगड़ती। भाजपा/हिंदुत्व समर्थक तब भी नाराज़ होते लेकिन माना यह जाता कि बीजेपी समावेशी नीति की तरफ़ चल रही है। उसे संघ प्रमुख भागवत की हाल की टिप्पणी से जोड़कर देखा जाता जिसमें उन्होंने भारतीय मुसलमानों के बारे में कुछ सद्भावनापूर्ण बातें कही थीं। कहा यह जाता कि हमने अपने मुसलमान भाइयों की भावनाओं को ख़्याल करते हुए यह क़दम उठाया है। बीजेपी विरोधी भी एक बार के लिए पार्टी के इस क़दम की तारीफ़ करने पर बाध्य होते।

लेकिन वैसा हुआ नहीं। दस दिनों तक पार्टी चुपचाप सबकुछ देखती रही। फिर क़दम एकाएक तब उठा जब पश्चिम एशिया में भारत की निंदा हुई, भारतीय हितों पर आघात पहुँचने लगा और सबसे ज़्यादा, मोदी की छवि कलंकित होने लगी। यही बात है जो भाजपा और हिंदुत्व समर्थकों को खल रही है। उन्हें लग रहा है कि हम हिंदू संख्या में ज़्यादा होते हुए भी नफ़रत के इस मैच में मुसलमानों से हार गए।

वे भारतीय मुसलमानों से तो नाराज़ हैं ही जो अपने दम पर यह मैच खेलने के बजाय बाहर से मुस्लिम देशों का समर्थन ले आए। लेकिन वे और भी नाराज़ हैं अपनी टीम यानी बीजेपी और उसके कैप्टन मोदी से जिन्होंने बाहरी प्रभाव के दबाव में आकर मैच का फ़ैसला होने से पहले ही हार स्वीकार कर ली।