जब किसी एक धर्म या जाति में ही शादी-ब्याह, संपत्ति के बँटवारे के नियम-क़ायदे और रीति-रिवाज़ जब एक जैसे नहीं हैं तो पूरे देश में अलग-अलग धर्म और भाषाओं के लोगों में एकरूपता लाना क्या आसान है? क्या यह संभव भी है? कम से कम मिज़ोरम सरकार को तो ऐसा नहीं लगता है।
मिज़ोरम ने समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी का विरोध किया है। इसने मंगलवार को इसके विरोध में प्रस्ताव पास करते हुए दावा किया कि समान नागरिक संहिता को लागू करने से देश का विघटन हो जाएगा। मिज़ोरम के गृहमंत्री लालचामलियाना ने देश में यूसीसी को लागू करने के किसी भी क़दम का विरोध करते हुए विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश किया। राज्य में मिजो नेशनल फ्रंट सरकार के गृह मंत्री द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव को सदन ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। 30 जनवरी को मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा की अध्यक्षता में मिज़ो नेशनल फ्रंट यानी एमएनएफ़ विधायक दल की बैठक में यह प्रस्ताव लाने का संकल्प लिया गया था।
गृहमंत्री ने कहा कि यूसीसी अल्पसंख्यकों की धार्मिक और सामाजिक प्रथाओं, संस्कृतियों और परंपराओं को समाप्त कर देगा। लालचामलियाना ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि अगर यूसीसी को अधिनियमित किया जाता है तो 'देश को विघटित कर देगा क्योंकि यह धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं, प्रथागत क़ानूनों, धार्मिक अल्पसंख्यकों की संस्कृतियों और परंपराओं को समाप्त करने का प्रयास है।'
तो सवाल है कि मज़ोरम के गृहमंत्री ने जो आशंकाएँ जताई हैं उसमें कितनी सचाई है? दरअसल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी का एक बड़ा हिस्सा मुसलमानों के तलाक़ और बहुविवाह जैसे धार्मिक अधिकारों का विरोध करता रहा है। इसलिए वे समान नागरिक संहिता का समर्थन करते दिखायी देते हैं। लेकिन हिंदुओं के बीच जो अलग-अलग परंपराएँ हैं उसको लेकर उनकी सोच कभी सामने नहीं आती। समान नागरिक संहिता के अंतर्गत स्त्री- पुरुष समानता जैसे मुद्दे आएँगे या नहीं, इस सवाल पर भी ख़ामोशी दिखायी देती है। मंदिर में जो हिंदू स्त्री पूजक है वह मंदिर परिसर के बाहर घोर स्त्री विरोधी है तो इस पर संदेह भी पैदा होता है।
यूसीसी से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और मुसलमान सभी प्रभावित होंगे। क्योंकि सभी धर्मों में परिवार और संपत्ति के बँटवारे से जुड़े क़ानून अलग-अलग हैं। अकेले हिंदुओं में क़रीब एक दर्जन प्रथाएँ चल रही हैं। मुसलिमों में भी संपत्ति के बँटवारे के अलग-अलग नियम-क़ायदे हैं।
इसी तरह से दूसरे धर्मों में भी ऐसी भिन्नताएँ हैं। धर्मों को तो छोड़िए, ये भिन्नताएँ तो जातियों के अंदर भी मिल जाती हैं। और आदिवासियों के रीति-रिवाज का क्या होगा?
ऐसी भिन्नताओं के चलते ही आज़ादी के बाद से अब तक यूसीसी लाना संभव नहीं हो सका है। समान नागरिक संहिता के बड़े समर्थक पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे। लेकिन संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद और मौलिक अधिकार उप समिति के अध्यक्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल इसके प्रमुख विरोधी थे। इसके चलते संविधान में समान नागरिक संहिता को जगह नहीं मिली। वरिष्ठ पत्रकार शैलेश लिखते हैं कि डॉ. भीम राव आम्बेडकर ने यहाँ तक कहा कि कोई भी सरकार इसके प्रावधानों को इस तरह लागू नहीं कर सकती कि इसके चलते मुसलमानों को विद्रोह के लिए बाध्य कर दिया जाए। पटेल ने इसे मूल अधिकारों से बाहर रखने की वकालत की। आख़िरकार इसे राज्य के नीति निर्देशक खंड में शामिल किया गया और अनुच्छेद 44 में व्यवस्था की गई कि सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश करे।
1951 में जब हिंदू कोड बिल के ज़रिए हिंदुओं के लिए समान क़ानून बनाने की कोशिश की गई तो सरदार पटेल, सीतारमैया, अयंगर, मदन मोहन मालवीय और कैलाश नाथ काटजू जैसे सदस्यों ने विरोध किया।
नेहरू ने यह क़ानून बनाने से भी रोक दिया जिसके विरोध में डॉ. आम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया। बाद में 1956 में बड़ी मुश्किल से आधा-अधूरा हिंदू कोड बिल पास किया गया। लेकिन बाद में चलकर कुछ ऐसे क़ानून बने जो सभी धर्मों और संप्रदायों के लिए समान हैं और समान नागरिक संहिता के कुछ हिस्सों को पूरा करते हैं। इनमें सिविल मैरिज क़ानून, दहेज विरोधी क़ानून, घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा का क़ानून, बाल विवाह रोकथाम क़ानून, निराश्रित बच्चों को गोद लेने का क़ानून और बुजुर्गों के ख़र्च और सुरक्षा का क़ानून शामिल हैं।
बहरहाल, मिज़ोरम के गृहमंत्री ने भी कहा कि पहले समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए कई प्रयास किए गए, लेकिन इसकी विवादास्पद प्रकृति के कारण इस तरह के प्रयास सफल नहीं हुए।
दिसंबर 2022 में भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने यूसीसी को अधिनियमित करने के लिए संसद में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया। लालचामलियाना ने कहा, 'प्रस्तावित क़ानून संसद में लंबित है। प्रस्तावित क़ानून का उद्देश्य अल्पसंख्यकों की धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं, प्रथागत क़ानूनों, संस्कृतियों और परंपराओं को हाशिए पर या समाप्त करके देश में एक समान कोड लागू करना है।'
उन्होंने कहा, 'हालाँकि मिज़ोरम में अनुच्छेद 371 जी के तहत अपनी सामाजिक या धार्मिक प्रथाओं, प्रथागत क़ानूनों और प्रक्रियाओं की रक्षा के लिए एक विशेष प्रावधान है, यूसीसी का कार्यान्वयन समग्र रूप से भारत के लिए ठीक नहीं है।'