अमित शाह ने कहा है और संबित पात्रा ने ट्वीट किया है - “सत्ता के लिए उद्धव ठाकरे शरद पवार के चरणों में जाकर बैठ गए थे। लेकिन आज शिवसेना असली बनकर धनुष बाण के साथ फिर से भाजपा के साथ आ गई है। सत्ता के लिए हमने सिद्धांतों की बलि नहीं चढ़ाई, हमें सत्ता का लोभ नहीं है। हमारे मन में महाराष्ट्र का हित सर्वोपरि है।”आइए, इसे तथ्यों की कसौटी पर कसते हैं -
विधानसभा चुनाव के मतों की गिनती 24 अक्तूबर 2019 को हुई। भाजपा को 105 सीटें मिलीं और शिव सेना को 56। दोनों पिछली बार के 122 और 63 से कम थीं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 42 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 41 के मुकाबले दोनों दलों को क्रम से 44 और 54 सीटें मिलीं। यानी दोनों की सीटें बढ़ीं। इस नतीजे बाद शिवसेना ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार बनाने का निर्णय किया जबकि तब वे विधानसभा के सदस्य नहीं थे और उन्हें सदस्य बनने से रोकने के मार्ग में रोड़े अटकाए जा सकते थे, अटकाए गए। चुनाव में स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने, हार जाने, कम सीटें पानें और सहयोगी दल के साथ छोड़ देने के बावजूद क्या हुआ आप जानते हैं। याद रखिये राज्य में राष्ट्रपति शासन भी भी लगा था।
जोड़-तोड़ या तोड़-फोड़ कर सरकार बनाने के लिए भाजपा को 40 विधायकों की आवश्यकता थी। हालांकि 23 विधायक निर्दलीय भी हैं। ऐसे मामलों में दल बदल कानून भी है और इस पर फैसला विधानसभा अध्यक्ष को लेना था। पर पंच परमेश्वर के देश में जज को इनाम मिलने के बाद से फैसलों पर शक रहता ही है। हालांकि वह अलग मामला है। लेकिन उसे निपटाया तो जाना ही चाहिए। मतलब, न्याय तो हो ही, न्याय हुआ, ऐसा लगना भी चाहिए।
इन तमाम परिस्थितियों में हुआ यह था कि एक शनिवार सुबह-सुबह राज्यपाल ने भाजपा के (पूर्व मुख्यमंत्री) देवेन्द्र फडनवीस और एनसीपी के अजीत पवार को क्रम से मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। अमित शाह कह रहे हैं कि यह सत्ता के लोभ के बिना हुआ तो मैं मान लेता हूं। पर आगे के तथ्य सुनिये। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर दोनों नेताओं को बधाई दी थी। यह ट्वीट 23 नवंबर 2019 को सुबह 8:16 पर किया गया था(सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है)। शपथ लेने के बाद मीडिया से फडनवीस ने कहा था, मुझ पर भरोसा करने के लिए मैं प्रधानमंत्री का शुक्रिया अदा करता हूं। जनता ने स्पष्ट जनादेश दिया था। शिवसेना ने जनादेश को खारिज कर दिया। राज्य को मजबूत सरकार चाहिये (ये फडनवीस साब की निजी राय थी या केंद्र सरकार की या भाजपा की या जनता की या राज्यपाल की या नरेन्द्र मोदी की या प्रधानमंत्री की या संघ की या शिवसेना की मैं नहीं जानता) और हम उन्हे ऐसी सरकार देने के लिए दृढ़ निश्चय हैं। राष्ट्रपति शासन अब खत्म होना चाहिए। मान लीजिये यह भी सत्ता के लोभ के बिना है।
यहां गौर करने वाली बात है कि जनादेश शिवसेना के साथ मिलकर मजबूत सरकार बनाने का था और शिवसेना ने भाजपा को दगा दे दिया और इस दगाबाजी में पूरी शिवसेना साथ थी। तब नहीं टूटी और शिंदे तब अलग नहीं हुए थे। या तब फडनवीस का साथ नहीं दिया था। फिर भी राष्ट्रपति शासन तो हट ही गया। यह सब शनिवार-इतवार को कार्य समय के बाद और पहले कैसे हुआ वह सब भी मुद्दा है लेकिन क्या-क्या याद दिलाऊं।
तथ्य यह भी है कि भाजपा और अजीत पवार या फडनवीस और छोटे पवार की मजबूत सरकार तीन दिन में ही गिर गई। फडनवीस ने राज्यपाल को इस्तीफा सौंप दिया या राज्यपाल को एक बार फिर राजनीतिक नौटंकी में शामिल होना पड़ा। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया था कि विधानसभा में फ्लोर टेस्ट करवाकर बहुमत साबित किया जाए।
संभव है, सत्ता का लोभ अजीत पवार को रहा हो। 23 नवंबर 2019 के शपथग्रहण के बाद 25 नवंबर को खबर आई थी, एसीबी ने अजीत पवार के खिलाफ भ्रष्टाचार के नौ मामले खत्म किये। पवार पर 70,000 करोड़ रुपए के सिंचाई घोटाले में शामिल होने का आरोप था। परिस्थितियां बताती हैं कि गठजोड़ क्यों और कैसे हुआ होगा और सत्ता का लालच किसे था। कौन सफल रहा कौन बेवकूफ बना। एसीबी ने तब भी कहा था कि मामले वापस लेने का उनके मुख्यमंत्री बनने से संबंध नहीं है।
जब भ्रष्टाचार कोई मुद्दा ही नहीं रहा, जनादेश की ऐसी-तैसी हो ही चुकी थी तब शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे को कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना ने नेता चुना और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने। अब अमित शाह ने जो कहा है उससे लगता है कि उद्धव मुख्यमंत्री बनने के लिए व्याकुल थे पर उन्होंने तो विधानसभा का चुनाव ही नहीं लड़ा था।
तथ्य यह भी है कि उद्धव ठाकरे की इस सरकार से शिवसेना के एकनाथ शिंदे अपने समर्थकों के साथ अलग हो गए और इस अलग गुट के साथ मिलकर भाजपा ने सरकार बनाई है और अपने विधायक कई गुना ज्यादा होने के बावजूद अपने मुख्यमंत्री को उपमुख्यमंत्री बनवा दिया या बनना मंजूर किया ताकि सरकार बने। इस तरह, साफ है कि शिंदे को सरकार से अलग होने का लाभ मिला। किन्ही कारणों से (इसमें सत्ता का लालच न होना शामिल है) शिंदे कम विधायकों के बावजूद मुख्यमंत्री बने और उन्हें बनाया गया। अब चुनाव आयोग ने शिन्दे गुट को असली शिवसेना मान लिया है और चुनाव चिन्ह भी उसे ही दे दिया है।
इन सब तथ्यों के बाद महाराष्ट्र में सरकार होने का अपना महत्व है। सबसे ज्यादा कमाने वाला राज्य है और कमाने की अकूत संभावनाएं। धारावी के पुनर्विकास की मेगा परियोजना 2019 में करीब 30,000 करोड़ रुपये में संयुक्त अरब अमीरात की एक कंपनी ने जीती थी उसे कुछ शर्तें बदलकर शिंदे /फडनवीस की सरकार ने 5600 करोड़ रुपए में अड़ानीको दे दिया है। इसमें कारण जो रहे हों राशि का अंतर कम नहीं है। और बात सिर्फ पैसे की नहीं है। बात ये है कि अब देश की राजनीति ऐसी है और ऐसे ही चलेगी ।