गुलाम नबी आज़ाद के कांग्रेस छोड़ने के बाद जम्मू-कश्मीर कांग्रेस में भगदड़ मच गई है। हर रोज बड़े पैमाने पर नेता पार्टी छोड़कर गुलाम नबी आज़ाद के साथ आ रहे हैं। इससे कांग्रेस हैरान है। खासकर पार्टी के वो नेता सदमे में हैं जो आज़ाद को ज़मीनी नेता ही नहीं मानते।
जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस छोड़कर आज़ाद के साथ आने वाले नेताओं की लगी कतार आज़ाद को लेकर पहले से बनी राय बदलने को मजबूर कर रही है। जम्मू-कश्मीर की सियासत पर नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि नई पार्टी के एलान के बाद कांग्रेस के बचे हुए नेता भी आज़ाद के खेमे में आ सकते हैं।
अभी और झटके लगेंगे?
कांग्रेस से नाता तोड़ने के बाद गुलाम नबी आज़ाद कांग्रेस को झटके पर झटके दे रहे हैं। मंगलवार को कांग्रेस को उस वक्त और बड़ा झटका लगा जब राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री तारा चंद समेत जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के 64 नेताओं ने गुलाम नबी आज़ाद के समर्थन में पार्टी से इस्तीफे का एलान कर दिया।
तारा चंद के अलावा, पूर्व मंत्री माजिद वानी, डॉ. मनोहर लाल शर्मा, चौधरी घरू राम और पूर्व विधायक ठाकुर बलवान सिंह, पूर्व महासचिव विनोद मिश्रा कांग्रेस छोड़ने वाले कुछ हाई प्रोफाइल नाम हैं। इस सामूहिक इस्तीफे से कांग्रेस राज्य में बुरी तरह बिखर गई है। निकट भविष्य में इस बिखराव में और इज़ाफा होने की आशंका है। आज़ाद ने खुद इसके संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा, "सभी ने मेरे लिए इस्तीफा दिया है। सभी मेरे साथ हैं। कांग्रेस को अभी और कई झटके लगेंगे।”
बता दें कि कांग्रेस छोड़ने के बाद आज़ाद ने जम्मू-कश्मीर से राष्ट्रीय स्तर की पार्टी शुरू करने का एलान किया। उनके इस एलान के बाद जम्मू-कश्मीर के कई पूर्व मंत्री और विधायकों सहित एक दर्जन से ज्यादा प्रमुख कांग्रेस नेता, पंचायती राज संस्थान (पीआरआई) के सैकड़ों सदस्यों के अलावा, नगर निगम के नगरसेवक और जिला और ब्लॉक स्तर के नेताओं ने पहले ही आज़ाद की पार्टी में शामिल होने के लिए कांग्रेस छोड़ दी है।
सोनिया-राहुल पर तल्ख टिप्पणियां
कांग्रेस छोड़ने के बाद गुलाम नबी आज़ाद लगातार सोनिया और राहुल पर तल्ख टिप्पणी कर रहे हैं। कांग्रेस के कई प्रवक्ताओं ने आज़ाद पर बीजेपी से सांठगांठ के आरोप लगाए थे। इनके जवाब में आज़ाद ने बीजेपी प्रवक्ताओं को भी आईना दिखाया था। हालांकि पार्टी छोड़ते वक्त आज़ाद ने सिर्फ राहुल गांधी को कांग्रेस की बदहाली के लिए जिम्मेदार ठहराया था। लेकिन पार्टी छोड़ने के बाद वो सोनिया गांधी को भी नहीं बख्श रहे हैं। आज़ाद के तल्ख लहजे और तीखे तेवरों को देखते हुए लगता है कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर से कांग्रेस का सफाया करने की ठान ली है। कांग्रेस छोड़ते वक्त आज़ाद ने राहुल गांधी पर पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं का अपमान करने का आरोप लगाया था।
लगता है आज़ाद जम्मू-कश्मीर से कांग्रेस का सफाया कर के अपने इस कथित अपमान का बदला लेना चाहते हैं।
क्या कांग्रेस ने आज़ाद को हल्के में लिया?
जिस तरह कांग्रेस के तमाम नेता आज़ाद के पीछे खड़े हो रहे हैं उससे ये आशंका पैदा हो गई है कि आने वाले चुनाव में कहीं कांग्रेस का जम्मू-कश्मीर से हमेशा के लिए सफाया न हो जाए। कांग्रेस में आज़ाद को ज़मीनी नेता नहीं माना जाता था। कहा जाता था कि अपने गृहराज्य जम्मू-कश्मीर में उनकी पकड़ नहीं है। लेकिन सच्चाई यह है कि 20 साल पहले 2002 में उन्हीं के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस ने 22 सीटें जीती थी और पीडीपी के साथ गठबंधन करके सत्ता में आई थी। उसके बाद कांग्रेस 2008 में उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ी।
चुनाव के बाद कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की गठबंधन की सरकार बनी थी। कांग्रेस छोड़ने के बाद आज़ाद को जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के नेताओं का जिस तरह व्यापक समर्थन मिल रहा है उससे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी हैरान हैं। उनका यह दावा हवा होता दिख रहा है कि जम्मू-कश्मीर में आज़ाद का कोई जनाधार नहीं है। अगर जनाधार नहीं है तो फिर एक हफ्ते में ही इतने सारे नेताओं ने कांग्रेस छोड़कर आज़ाद का दामन क्यों थाम लिया है, जबकि अभी उनकी पार्टी बनी भी नहीं है और न ही उसका कोई नाम तय हुआ है? यह सवाल अब कांग्रेस को परेशान कर रहा है।
ममता और पवार की राह पर आज़ाद
यूं तो आज़ादी के बाद कांग्रेस छोड़कर जाने वाले नेताओं ने करीब 60 पार्टियां बनाई हैं। लेकिन इनमें से कुछ को ही कामयाबी मिली। ज्यादातर नेता और उनकी पार्टियां गुमनामी के अंधेरे में खो गईं। कई राज्यों में बागी नेताओं ने कांग्रेस को खत्म करके अपनी पार्टी खड़ी की है। इस मामले में सबसे पहले नाम ममता बनर्जी का आता है। ममता बनर्जी ने 90 के दशक में कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस बनाई थी। आज पश्चिम बंगाल में कांग्रेस शून्य पर है। जबकि ममता बनर्जी लगातार तीसरी बार भारी बहुमत से चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बनी हैं। इसी तरह 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़ने वाले शरद पवार ने महाराष्ट्र में खुद को साबित किया है।
महाराष्ट्र में शरद पवार की पार्टी कांग्रेस से बड़ी हो गई है। आंध्र प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में दुर्भाग्यपूर्ण मौत के बाद कांग्रेस ने उनके बेटे जगन मोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री नहीं बनाया था। इससे नाराज होकर जगन मोहन रेड्डी ने कांग्रेस छोड़कर वाईएसआर कांग्रेस बनाई और आज वह भारी बहुमत से सत्ता में हैं। कांग्रेस का आंध्र प्रदेश से सफाया हो गया है।
आज़ाद के तेवरों और उन्हें मिल रहे समर्थन को देखकर लगता है कि जम्मू-कश्मीर भी उन राज्यों में शामिल होने जा रहा है जहां कांग्रेस के बागी नेताओं ने कांग्रेस का सफाया कर दिया है।
तल्खी कम करने की कोशिश
पिछले शुक्रवार को जब गुलाम नबी आज़ाद ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया था। तब कांग्रेस मुख्यालय में जश्न का माहौल था। दस जनपथ के करीबी नेता आज़ाद के कांग्रेस छोड़ने से काफी खुश नजर आ रहे थे। उन्हें लगता था कि आज़ाद से कांग्रेस का पिंड छूट गया है। लेकिन आज़ाद के लगातार तीखे होते जा रहे हमलों और जम्मू-कश्मीर में उन्हें मिल रहे समर्थन से कांग्रेस आलाकमान हक्का-बक्का है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और आज़ाद के साथ G-23 ग्रुप में शामिल रहे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और राज्यसभा के उप नेता रहे आनंद शर्मा ने मंगलवार को आज़ाद से मुलाकात करके गुजारिश की है कि वह सोनिया-राहुल पर हमले करना बंद करें। जब वह कांग्रेस छोड़ ही चुके हैं तो ऐसों हमलों का क्या मतलब है। इन तीनों नेताओं ने मुलाकात को शिष्टाचार के नाते हुई मुलाकात बताया है लेकिन यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर आज़ाद राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी बनाने की पहल करते हैं तो ये उनके साथ जा सकते हैं।
तीनों ही नेता कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ जब-तब मुंह खोलते रहते हैं। तीनों ही आलाकमान से नाराज भी चल रहे हैं।
सीधे टकराव पर आमादा हैं आज़ाद
कांग्रेस नेता आज़ाद पर पीएम मोदी और बीजेपी के इशारे पर काम करने का आरोप लगा रहे हैं। आज़ाद कांग्रेस से सीधी टक्कर लेते हुए दिख रहे हैं। इससे इन आरोपों में कहीं न कहीं दम तो लगता है। वहीं ये भी हो सकता है कि आज़ाद सोनिया और राहुल के रवैये से कुछ ज्यादा ही आहत हुए हैं। शायद यही वजह है कि अब उन्होंने कांग्रेस के साथ-साथ इन्हें भी सबक सिखाने की ठान ली है। गौरतलब है कि कांग्रेस ने 4 सितंबर को दिल्ली में महंगाई और बेरोजगारी को लेकर केंद्र की मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ हल्ला बोल रैली रखी है।
आज़ाद ने भी इसी दिन जम्मू में अपनी पहली रैली रख दी है। इसी रैली में वह अपनी नई पार्टी का एलान कर सकते हैं। आज़ाद ने कांग्रेस की रैली वाले दिन ही अपनी रैली रखकर कांग्रेस से अपनी सीधी टक्कर दिखाने की कोशिश की है।
कांग्रेस छोड़ने के बाद से ही आज़ाद लगातार मीडिया की सुर्खियों में बने हुए हैं। लिहाजा उनकी पहली रैली को मीडिया में कांग्रेस की रैली के समानांतर तवज्जो मिलेगी। कांग्रेसी नेता इसीलिए आज़ाद को बीजेपी की कठपुतली बता रहे हैं।
कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने पिछले आठ साल में पार्टी छोड़कर जाने वाले हर नेता पर पहले से ही बीजेपी से सांठगांठ के आरोप लगाए हैं लेकिन उनके उठाए सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश नहीं की।
आज़ाद के पार्टी छोड़ने के बाद भी पार्टी उसी ढर्रे पर कायम है। उन कमियों को दूर करने पर उसकी कोई तवज्जो नहीं है जिनकी वजह से दशकों तक वफादार रहे नेता पार्टी छोड़ने पर मजबूर हुए हैं। गुलाम नबी की तरफ से लग रहे झटके पर झटकों के बीच कांग्रेस में अध्यक्ष पद का चुनाव एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। वहीं आज़ाद के सामने भी जम्मू-कश्मीर में खुद को शरद पवार, ममता बनर्जी और जगन मोहन रेड्डी की तरह साबित करने की बड़ी चुनौती है।