अग्निपथ योजना का हिंसक विरोध देश भर में जारी है। गृहमंत्री चुप हैं। प्रधानमंत्री भी चुप हैं। अब तक प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की बैठक तक बुलाने की जरूरत नहीं समझी गयी है। यह बात इसलिए चौंकाती है क्योंकि हिंसा की आग देश के 13 राज्यों में पहुंच चुकी है। इनमें बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखण्ड, जम्मू, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, ओडिशा, बंगाल शामिल हैं।
हिंसा रोकने के लिए क्या पहल की गयी है? एक पहल रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने की है कि अग्निपथ योजना में उम्र की सीमा को दो साल बढ़ा दिया गया है ताकि कोरोना काल में जिन अभ्यर्थियों को अवसर नहीं मिला, उनके साथ नाइंसाफी ना हो। क्या यह पहल काफी है? अगर वास्तव में हिंसा की यह एकमात्र वजह होती तो हिंसा रुक गयी होती। मगर, ऐसा नहीं है।
स्थायी भर्ती अनिश्चित होने से नाराज़ हैं अभ्यर्थी
युवाओं में नाराज़गी का कारण है कि लंबे समय से जिस भर्ती का इंतज़ार वे कर रहे थे उस भर्ती को ही स्थायी से बदल कर अस्थायी कर दिया गया। सबको एक बार फिर चार साल बाद जांच प्रक्रिया से गुजरना होगा और उनमें से तीन चौथाई जवानों का छंटना तय है।
हिंसा के लिए बेरोजगार नौजवानों को दोष दे रहे लोगों का कहना है कि अगर उन्हें यह भर्ती नहीं पसंद है तो वे इससे दूर रहें। क्या भर्ती प्रक्रिया से दूर रहने से नाराज़गी खत्म हो जाती है? नाराज़गी तो तब खत्म होगी जब भर्ती प्रक्रिया में नौजवानों को शामिल कराया जाएगा।
नियमित भर्ती के बदले है अग्निपथ योजना?
अगर अग्निपथ योजना नियमित भर्ती से अलग कोई योजना होती तो चार साल की नौकरी वाला यह स्कीम जिसमें एक चौथाई नियमित भी होंगे, बेरोजगारों के लिए एक उपहार की तरह होता। वैसी स्थिति में नौजवान विरोध क्यों करते? यह उनकी मर्जी होती कि वे अग्निवीर बनना पसंद करेंगे या नहीं। मगर, अब स्थिति यह है कि 10वीं-12वीं पास छात्रों के लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं है। इसलिए विकल्पहीनता की स्थिति ही युवाओं मे नाराज़गी को सुलगा रही है।
अग्निपथ योजना के समर्थक लगातार यह बता रहे हैं कि चार साल की इस योजना से निकलने वाले युवा कितने प्रशिक्षित होंगे और उनके पास मोटी पूंजी होगी जिससे वे दूसरा करियर शुरू कर सकते हैं, अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं। मगर, वे यह नहीं बता रहे हैं कि अगर यही जवान चार साल के बजाए 20 साल नौकरी पर होते तो क्या उनका नुकसान हो जाता?
बिहार में अधिक विरोध की वजह क्या राजनीति है?
उत्तराखण्ड, यूपी जैसे राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने कहा है कि वे अपने-अपने प्रदेशों की पुलिस बल में अग्निवीरों को प्राथमिकता देंगे। इसके बावजूद इन प्रदेशों के नौजवान ‘नासमझ’ बने हुए हैं। कारण स्पष्ट है कि मौखिक आश्वासन से रोज़गार नहीं मिला करते। एक प्रश्न और उठता है कि इन मुख्यमंत्रियों को भरोसा देने की जरूरत क्यों पैदा हुई? केवल और केवल इसलिए कि अग्निपथ योजना से युवाओं में भरोसा पैदा नहीं हो रहा है। तो, इस बात को मान क्यों नहीं लेती सरकार? जब इसे मानेगी सरकार तभी तो वह भरोसा दिलाने आगे आएगी!
बिहार का नाम जोर-शोर से लिया जा रहा है। यहां सबसे ज्यादा हिंसा हो रही है। न सिर्फ ट्रेनें फूंकी गयी हैं बल्कि बीजेपी के दफ्तरों को भी फूंका गया है। जेडीयू ने अग्निपथ योजना की समीक्षा करने की सलाह अपने सहयोगी पार्टी बीजेपी को दी है। अब बीजेपी को लग रहा है कि बिहार में हिंसा भड़काने के पीछे कहीं जेडीयू तो नहीं? इसे जातीय गोलबंदी के तौर पर बताने की कोशिश हो रही है।
यह संभव है। सेना की भर्ती में शामिल होने वालों में पिछड़े-दलितों की अच्छी-खासी तादाद होती है। उनकी नाराज़गी या दुख से वे राजनीतिक पार्टियां भी नाराज़ या दुखी होंगी जिनके दम पर उनकी सियासत चलती है। यह कोई नयी बात नहीं है।
हिंसा रोकने की बात हो
केंद्र में सरकार चला रही बीजेपी को इधर-उधर के मुद्दों पर बात करने के बजाए इस बात पर फोकस करना चाहिए कि हिंसा कैसे रोकी जाए? इसके लिए हिंसा के कारणों को दूर करना होगा। हिंसा की वजह अगर नियुक्ति प्रक्रिया है तो उस पर पुनर्विचार करना होगा। मगर, यह सब करने से पहले आंदोलनकारियों से बातचीत तो करनी होगी। जब बीजेपी अपने सहयोगी दल जेडीयू से बातचीत नहीं कर पा रही है तो विपक्षी दलों से सलाहृ-मशविरा तो दूर की कौड़ी लगती है। समस्या की जड़ यही है।
बिहार में राजनीतिक कारणों से हिंसा अधिक हो रही हो सकती है लेकिन यूपी में इसकी क्या वजह है? यहां योगी आदित्यनाथ की सरकार है। पिछले जुमे को हिंसा होने पर जिस तत्परता से योगी सरकार ने बुल्डोजर का इस्तेमाल किया था क्या आज वह उन 264 लोगों के खिलाफ बुल्डोजर का इस्तेमाल कर सकती है जिन्हें अब तक गिरफ्तार किया जा चुका है?
यूपी जैसे प्रदेश में थाने जलाए जाने के बावजूद अफसर कह रहे हैं कि प्रदेश में मामूली हिंसा की घटनाएं हुई हैं। ऐसे रुख से क्या यूपी में हिंसा कम हो जाएगी? ऐसा कतई नहीं हो सकेगा।
क्यों राष्ट्रव्यापी हुआ विरोध?
आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, जम्मू जैसे इलाकों में अग्निपथ योजना का विरोध क्या दर्शाता है?-विरोध राष्ट्रव्यापी है। निश्चित रूप से इस विरोध का कारण भी राष्ट्रव्यापी ही होगा। अग्निपथ योजना से देश को लाभ होगा- इतना कह देने मात्र से देश लाभान्वित नहीं हो जाता है। सरकार को यह स्पष्ट करना होगा कि इस योजना से सेना में नौकरियां नहीं घटेंगी और सैनिकों में सबको बराबरी का बर्ताव मिलेगा।
देश उद्वेलित है। नौजवान बेचैन हैं। गुस्सा स़डक पर है। इस गुस्से की लपटें तेजी से फैल रही हैं। ऐसे में देश के प्रधानमंत्री को सामने आना चाहिए। डेढ़ साल में 10 लाख रोजगार देने की घोषणा करने वाले पीएम नरेंद्र मोदी को यह स्पष्ट करना होगा कि सेना में भर्ती उसी घोषणा का हिस्सा है। यह नौकरी देने वाली योजना है। नौकरी देकर छीनने वाली नहीं है। क्या हर महत्वपूर्ण मौके पर चुप रहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या गुस्साए नौजवानों से बातचीत की पहल करेंगे?