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शाह ने तमिलनाडु में मेडिकल की पढ़ाई तमिल में कराने को क्यों कहा?

शाह ने तमिलनाडु में मेडिकल की पढ़ाई तमिल में कराने को क्यों कहा?

देश में संपर्क भाषा के रूप में हिंदी की पैरवी करने और हिंदी को अनिवार्य करने पर जोर देते रहने वाले गृह मंत्री अमित शाह ने अब तमिलनाडु में जाकर तमिल भाषा पर जोर क्यों दिया?

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दो दिन पहले ही कहा है कि तमिलनाडु में भी तमिल भाषा में मेडिकल की पढ़ाई होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए ताकि तमिल भाषा में स्कूली पढ़ाई पढ़ने वाले बच्चे भी बेहद आसानी से मेडिकल की पढ़ाई कर सकें, वे भी एमबीबीएस कर सकें। ये वही अमित शाह हैं जिन्होंने 7 अप्रैल को नई दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की बैठक में कहा था कि सभी पूर्वोत्तर राज्य 10वीं कक्षा तक के स्कूलों में हिंदी अनिवार्य करने पर सहमत हो गए हैं। इसके साथ ही गृह मंत्री ने कहा था कि जब अलग-अलग भाषा बोलने वाले लोग बात करें तो अंग्रेजी छोड़कर हिंदी में ही बात करें। बीजेपी भी लगातार हिंदी को अनिवार्य करने की बात कहती रही है।

अमित शाह के बयान पर उत्तर पूर्व से तो प्रतिक्रिया हुई ही थी, तमिलनाडु बीजेपी के नेता ने भी अपनी राय रखी थी। तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष अन्नामलाई ने कहा था कि तमिलनाडु बीजेपी हिंदी थोपे जाने को स्वीकार नहीं करेगी। उन्होंने यह भी कहा था कि 1965 में कांग्रेस ने एक क़ानून लाया कि हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए और 1986 में दूसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से एक बार फिर हिंदी थोपने का प्रयास किया गया।

अमित शाह इससे पहले भी पूरे देश की एक भाषा हिंदी होने की बात कह चुके हैं और तब इसे लेकर देश के कई राज्यों में काफी विरोध हुआ था। साल 2019 में अमित शाह ने एक ट्वीट में कहा था कि आज देश को एकता के दौर में बांधने का काम अगर कोई एक भाषा कर सकती है तो वह सबसे ज़्यादा बोले जाने वाली हिंदी भाषा ही है।

भाषा को लेकर उनके इस आग्रह पर विवाद होता रहा है और ख़ासकर दक्षिण के राज्यों में तो तीखी प्रतिक्रिया होती है। लेकिन, अब जब गृह मंत्री अमित शाह ने तमिलनाडु में तमिल भाषा में मेडिकल की पढ़ाई कराने की बात कही तो कुछ लोगों ने इसमें राजनीति देखी। कहा जा रहा है कि वह दक्षिण में भाषा को लेकर अपनी छवि सुधारना चाहते हैं और बीजेपी को तमिलनाडु में विस्तार कराना चाहते हैं। 

अमित शाह के बयान पर राजनीतिक प्रतिक्रिया भी आई। इसे इस रूप में देखा जा सकता है जिसमें तमिलनाडु के एक मंत्री ने केंद्रीय गृह मंत्री से अपील की है कि वे तमिल को केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए क़दम उठाएँ, सरकार द्वारा संचालित केंद्रीय विद्यालयों में इसे अनिवार्य बनाएँ और संस्कृत के समान विकासात्मक आधार पर रखने के लिए फंड आवंटित करें।

तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री के. पोनमुडी की 12 नवंबर को अमित शाह से की गई मांग में तमिल शिक्षकों के खाली पदों को भरने की आवश्यकता भी शामिल थी।

पोनमुडी का बयान शाह द्वारा तमिलनाडु सरकार को तमिल में तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के लिए कहने के घंटों बाद आया है। तमिलनाडु के मंत्री ने कहा कि इस तरह की पहल 12 साल पहले राज्य में डीएमके द्वारा लागू की गई थी। उन्होंने कहा कि तमिल में इंजीनियरिंग और कंप्यूटर विज्ञान पाठ्यक्रम चलाने के उपाय चल रहे हैं।

चिकित्सा शिक्षा पर उन्होंने कहा कि सरकार अब तमिल में एमबीबीएस पाठ्यक्रम शुरू करने में लगी हुई है और इस संबंध में तीन प्रोफेसरों की एक समिति बनाई गई थी।

पिछले महीने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि हाल में हिंदी को थोपे जाने का प्रयास अव्यवहारिक है और यह विभाजन को बढ़ावा देने वाला होगा। उनका यह बयान उस संदर्भ में आया था जिसमें केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने के लिए कथित तौर पर एक संसदीय समिति ने सिफारिश की है। इस सिफारिश को स्टालिन ने हिंदी थोपे जाने के प्रयास के तौर पर देखा है।

स्टालिन ने प्रधानमंत्री मोदी को लिखे ख़त में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली समिति का ज़िक्र किया था। उन्होंने कहा था, 'केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली समिति ने अपना प्रस्ताव दिया है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह सिफारिश की गई है कि आईआईटी, आईआईएम, एम्स और केंद्रीय विश्वविद्यालयों जैसे केंद्र सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षा का अनिवार्य माध्यम हिंदी होना चाहिए और हिंदी को अंग्रेजी की जगह लेनी चाहिए।'

 - Satya Hindi

स्टालिन ने ख़त में कहा था, 'मुझे आगे यह बताया गया है कि आगे यह सिफारिश की गई है कि युवा कुछ नौकरियों के लिए केवल तभी पात्र होंगे जब उन्होंने हिंदी का अध्ययन किया हो, और भर्ती परीक्षाओं में अनिवार्य प्रश्नपत्रों में से एक के रूप में अंग्रेजी को हटा दिया गया है। ये सभी संघीय सिद्धांतों के खिलाफ हैं। यह सिर्फ़ हमारा संविधान और हमारे राष्ट्र के बहुभाषी ताने-बाने को नुक़सान पहुंचाएगा।'

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