ज्ञानवापी विवाद मामले में हिंदू पक्ष को पूजा की अनुमति दी जाएगी या नहीं, इसका फ़ैसला वाराणसी की स्थानीय अदालत में ही होगा। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह फ़ैसला दिया है। इसने अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें मस्जिद परिसर के अंदर पूजा करने के अधिकार की मांग वाली 5 हिंदू महिलाओं के मुकदमे की सुनवाई को चुनौती दी गई थी।
इस तरह कोर्ट ने वाराणसी कोर्ट के 12 सितंबर, 2022 के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें भी मुक़दमे को बरकरार रखा गया था। 2021 में पांच महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के भीतर देवी-देवताओं की पूजा करने के अपने अधिकार को लागू करने के लिए वाराणसी जिला अदालत में एक मुकदमा दायर किया था। अदालत ने इस मुकदमे को बरकरार रखा। तब मस्जिद कमेटी ने अक्टूबर 2022 में अदालत के आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
मस्जिद समिति ने सुप्रीम कोर्ट का भी रुख किया था, जिसमें तर्क दिया गया था कि वादियों द्वारा दायर मुकदमे में मस्जिद के धार्मिक चरित्र को बदलने का प्रयास किया गया था। शीर्ष अदालत ने दीवानी मुकदमे में शामिल मुद्दों की जटिलता का ज़िक्र करते हुए मामले को जिला न्यायाधीश को स्थानांतरित कर दिया और कहा कि यह केवल तभी हस्तक्षेप करेगा जब जिला न्यायाधीश ने मामले के प्रारंभिक पहलुओं पर निर्णय लिया हो।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार अपने आदेश में वाराणसी के जिला न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेश ने कहा था कि वादी का मुकदमा पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, वक्फ अधिनियम 1995 और यूपी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम, 1983 द्वारा वर्जित नहीं है जैसा कि अंजुमन मस्जिद समिति द्वारा दावा किया जा रहा था। अंजुमन मस्जिद समिति ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है।
बता दें कि हिंदू महिला उपासक ने काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित मस्जिद परिसर की बाहरी दीवार पर मां श्रृंगार गौरी की पूजा करने के अधिकार की मांग करते हुए वाराणसी कोर्ट के समक्ष एक मुकदमा दायर किया है।
उन्होंने दावा किया है कि वर्तमान मस्जिद परिसर कभी एक हिंदू मंदिर था और इसे मुगल शासक औरंगजेब द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था और उसके बाद वर्तमान मस्जिद का ढांचा वहां बनाया गया था।
अंजुमन समिति ने यह कहते हुए उस मुकदमे को चुनौती दी थी कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के तहत हिंदू धर्मावलंबियों के मुक़दमे प्रतिबंधित हैं। हालाँकि, सूट पर आपत्ति को खारिज करते हुए वाराणसी कोर्ट ने अपने 12 सितंबर के आदेश में विशेष रूप से यह माना कि चूंकि हिंदू उपासकों का दावा है कि 15 अगस्त, 1947 के बाद भी मस्जिद परिसर के अंदर उनके द्वारा हिंदू देवी-देवताओं की पूजा की जा रही थी इसलिए यह पूजा स्थल अधिनियम के तहत प्रदान की गई अंतिम तिथि 1991 का अधिनियम इस पर लागू नहीं होता है।