अजित खेमे वाली एनसीपी का सीटों पर बीजेपी से सौदा तय; शिंदे का क्या होगा?
बीजेपी क्या नयी सहयोगी अजित पवार वाली एनसीपी के लिए शिंदे खेमे को नाराज़ करना चाहेगी? यह सवाल इसलिए कि महाराष्ट्र में कुछ ऐसे घटनाक्रम चल रहे हैं जिसमें इस तरह के हालात बनते नज़र आ रहे हैं। रिपोर्ट है कि अजित पवार वाली एनसीपी ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी के साथ सीटों पर समझौता कर लिया है। अजित खेमे के सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि लोकसभा में वे 13-15 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने खुद ही एक दिन पहले यह कहा था कि उनकी एनसीपी 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। तो सवाल है कि अजित खेमे वाली एनसीपी के शामिल होने से पहले से ही नाराज़ चल रहे शिंदे खेमे के समर्थक इस फ़ैसले को कैसे लेंगे?
अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी को आवंटित किए जाने वाले कैबिनेट विभागों की संख्या में कटौती से शिंदे खेमे में नाराजगी बतायी जाती है। कहा जा रहा है कि बीजेपी के साथ एनसीपी के समझौते से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना खेमे में तनाव और बढ़ने की संभावना है।
पहले भी एकनाथ शिंदे खेमा अजित पवार खेमे को लेकर कड़ी नाराज़गी जता चुका था और इसने सरकार से अलग होने तक की चेतावनी दे दी थी। तब अजित पवार सरकार में शामिल नहीं हुए थे।
यह घटना उस वक़्त की थी जब इसी साल अप्रैल महीने में महाराष्ट्र की राजनीति में उथल पुथल मची हुई थी। इसका कारण विधानसभा में तत्कालीन विपक्ष के नेता अजित पवार थे। उन दिनों खबरें आ रही थीं कि अजित पवार पार्टी तोड़कर बीजेपी से हाथ मिलाने जा रहे हैं। हालाँकि तब अजित पवार ने उन ख़बरों का खंडन कर दिया था। उन्होंने कहा था कि वे कहीं नहीं जा रहे हैं।
तब अजित पवार द्वारा उन ख़बरों का खंडन किए जाने के बावजूद बीजेपी के साथ महाराष्ट्र की सरकार में शामिल शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) ने अजित पवार के पार्टी तोड़कर सरकार में संभावित रूप से शामिल किए जाने का विरोध किया था। शिंदे गुट का कहना था कि अजित पार्टी तोड़कर आएँ और बीजेपी या फिर शिंदे गुट की शिवसेना में शामिल हों, उनकी विचारधारा को स्वीकार करें, तभी उनको सरकार में शामिल किया जाएगा।
इस मसले पर शिवसेना के विधायक और प्रवक्ता संजय शिरसाट ने मीडिया से कहा था कि अजित पवार अगर एनसीपी छोड़कर बीजेपी या शिवसेना में शामिल होते हैं तो उनका स्वागत किया जाएगा, लेकिन अगर वे केवल पार्टी तोड़कर और कुछ विधायकों को साथ लेकर आते हैं और सरकार में शामिल होते हैं तो फिर शिवसेना सरकार से बाहर हो जाएगी।
शिरसाट ने तब कहा था, 'इस बारे में हमारी नीति स्पष्ट है। एनसीपी एक ऐसी पार्टी है जो धोखा देती है। हम सत्ता में भी एनसीपी के साथ नहीं रहेंगे।' उन्होंने कहा था, 'अगर भाजपा राकांपा को अपने साथ ले जाती है, तो महाराष्ट्र इसे पसंद नहीं करेगा। हमने (उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पूर्व अविभाजित शिवसेना से) बाहर निकलने का फैसला किया क्योंकि लोगों को हमारा कांग्रेस और राकांपा के साथ जाना पसंद नहीं था।' उन्होंने कहा था, 'अजित पवार को एनसीपी में खुली छूट नहीं है। इसलिए, अगर वह एनसीपी छोड़ते हैं, तो हम उनका स्वागत करेंगे। अगर वह एनसीपी के एक समूह के साथ आते हैं, तो हम सरकार में नहीं होंगे।'
अब जाहिर है इतनी कड़ी नाराज़गी तो इतनी आसानी से ख़त्म नहीं हुई होगी। इसी बीच अब नाराज़गी की नयी वजह भी सामने आ गयी है। अजित पवार खेमे के एक वरिष्ठ एनसीपी नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, '90 विधानसभा सीटों के बारे में बयान बहुत तार्किक है। लेकिन यह भी तय हो गया है कि एनसीपी 13-15 लोकसभा सीटों पर भी चुनाव लड़ेगी। इसमें चार सीटें शामिल होंगी जिनमें एनसीपी के मौजूदा सांसद हैं और औरंगाबाद जैसी सीटें भी शामिल हैं जहां विपक्ष ने 2019 में जीत हासिल की थी।'
रिपोर्ट के अनुसार नेता ने कहा कि अपनी स्थापना के बाद से पार्टी लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र में दोहरे अंक का आँकड़ा पार नहीं कर पाई है। उन्होंने कहा, 'यह सुनिश्चित किया जाएगा कि हम इस बार दोहरे अंक का आँकड़ा पार करें। शिंदे गुट के पास 13 सांसद हैं। वे तय करेंगे कि कितने लोग लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। लेकिन हमने स्पष्ट कर दिया है कि हम 13-15 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।'
90 सीटों के पीछे का तर्क समझाते हुए नेता ने कहा कि एनसीपी के पास फिलहाल 53 विधायक हैं। उन्होंने कहा, 'इसमें दो निर्दलीय विधायकों यानी देवेंद्र भुयार और संजय शिंदे को जोड़ा जाएगा जिससे संख्या 55 हो जाएगी।'
उन्होंने कहा, 'कांग्रेस ने महाराष्ट्र में 45 विधानसभा सीटें जीती हैं। ये सिर्फ कांग्रेस के वोट नहीं हैं। लेकिन एनसीपी ने भी उन्हें जीत दिलाने में मदद की है। स्वाभाविक रूप से, अगर हम उनके खिलाफ चुनाव लड़ते हैं तो हमारे पास उन सीटों को जीतने का बेहतर मौका है।'
एनसीपी की गणना के अनुसार, उसके पास कुल 90 विधानसभा सीटें जीतने की बेहतर संभावना है क्योंकि यह भाजपा और एनसीपी वोटों का 'जीतने वाला' संयोजन होगा। लेकिन सवाल है कि क्या शिंदे खेमा अब इस गणना या संयोजन को स्वीकार करेगा? वो भी तब जब पहले से ही उसकी नाराज़गी है?