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गुजरात में आम आदमी पार्टी की दस्तक

गुजरात में आम आदमी पार्टी की दस्तक

गुजरात में इस बार आम आदमी पार्टी जोर-शोर से चुनाव लड़ने जा रही है। लेकिन क्या वह बीजेपी को चुनौती दे पाएगी?

पंजाब के चुनावी नतीजों से उत्साहित अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी इस समय दो राज्यों के विधान सभा चुनावों पर अपना ध्यान गड़ाये हुए है। इनमें प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का गृह राज्य गुजरात है। यहां के चुनाव को लेकर अरविंद केजरीवाल और उनके शिष्य बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं। उनमें से अपनी पार्टी को जीतता बता रहे हैं तो कुछ उसे कांग्रेस को हटाकर उसकी जगह मुख्य विपक्ष की भूमिका निभाते हुए दिखा रहे हैं।

अपने इसी मकसद को पूरा करने के लिए अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने अपना सबसे बड़ा चारा भी फेंक दिया है जो है मुफ्त की बिजली और मुफ्त का पानी। इसके अलावा पार्टी ने बेरोजगारों के लिए 4,000 रुपये का बेरोजगारी भत्ता देने का भी वादा किया है। भ्रष्टाचार को मिटाने का केजरीवाल का शाश्वत दावा यहां भी बरकरार है। 

लेकिन यहां अपने पैर जमाना उतना आसान भी नहीं है। आम आदमी पार्टी का संगठन यहां काफी कमज़ोर है और भाजपा तो भाजपा, पस्त पड़े हुए कांग्रेस की तुलना में भी बहुत छोटा दिखता है। अरविंद केजरीवाल भले ही लंबे-चौड़े दावे कर रहे हों लेकिन यहां घूमने और लोगों से बातें करने के बाद एक बात साफ हो जाती है कि पार्टी को अभी अपनी जड़ें जमाने में बहुत समय लगेगा। उसके पास कोई ऐसा नेता नहीं है जो पार्टी का परचम लहरा सके। 

लेकिन यही बात अब कांग्रेस पर भी लागू होती है। उसके सबसे कद्दावर और रणनीति बनाने में सबसे कुशल नेता अहमद पटेल अब इस दुनिया में नहीं हैं। गुजरात की राजनीति की नब्ज समझने वाले अहमद पटेल के जाने से पार्टी को बहुत क्षति पहुंची है। एक और बड़े कांग्रेसी नेता जिन्होंने अपनी पार्टी के लिए गांव-गांव जाकर जबर्दस्त प्रचार किया था, वह भी इस बार अपने घर बैठे हुए हैं। वह हैं पड़ोसी राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलौत जिन्होंने पिछले चुनाव में गांव-गांव घूमकर पार्टी के लिए प्रभावी प्रचार किया था और भाजपा को जबर्दस्त चुनौती दी थी।

लेकिन वहां अब कोई ऐसा नेता नहीं दिखता जो पार्टी के लिए जी-जान से प्रचार कर रहा हो या फिर उसे जिताने के लिए रणनीति बना रहा हो। पार्टी पस्त दिख रही है। उसके नेता तो हुंकार भरते दिख रहे हैं लेकिन कार्यकर्ताओं में कोई उत्साह नहीं दिखता। कई एमएलए तो अपनी सीट बचाने के लिए भागदौड़ कर रहे हैं। 

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इससे पहले गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष का पद लगभग नौ महीने खाली पड़ा रहा और फिर दिसंबर में ओबीसी समाज के बड़े नेता और पूर्व सांसद जगदीश ठाकोर को अध्यक्ष बनाया गया जबकि सुखराम रथवा को विधान सभा में विपक्ष के अध्यक्ष का पद दिया गया है। पार्टी की शिथिलता का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है? अब चुनाव में थोड़ा ही वक्त बाकी है और पार्टी अभी भी चुनावी मोड में नहीं दिखती है जिससे साफ साबित हो रहा है कि वह भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में अभी नहीं है। पार्टी की सक्रियता बहुत कम ही दिखती है।

गांधीनगर से लेकर नर्मदा जिले के गरूड़ेश्वर तक हमारी टीम को कहीं कांग्रेस के पोस्टर तक नहीं दिख रहे थे। इसके विपरीत आम आदमी के कुछ पोस्टर कुछ जगहों पर दिख जायेंगे। पार्टी ने अब तक 41 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है।

कांग्रेस के समर्थक पार्टी से अपेक्षा कर रहे हैं कि वह कोई धमाकेदार कदम उठाये जिससे कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़े और चुनाव के लिए माहौल तैयार हो। 

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आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने गुजरात में अपने तीन सेनापतियों पर भरोसा किया है। वे हैं गोपाल इटालिया जो फिलहाल पार्टी के राज्य अध्यक्ष हैं, दूसरे हैं इसुदन गढ़वी और तीसरे हैं इंद्रनिल राजगुरू। इटालिया युवा हैं और अरविंद केजरीवाल की ही तरह ऐक्टिविस्ट हैं। वह ग्रामीण इलाकों में जाने जाते हैं जबकि गढ़वी पूर्व पत्रकार हैं और एक गुजराती चैनल के ऐंकर भी रहे हैं। इस वज़ह से राज्य के बड़े इलाकों में जाने भी जाते हैं। राजगुरू कांग्रेस के नेता रहे हैं और अब पार्टी छोड़कर आम आदमी पार्टी में आ गये हैं। उनकी सभाओं में पहले भी काफी लोग आते थे और अब भी आते हैं। इनमें इटालिया काफी आक्रामक ढंग से भाजपा को चुनौती देते नज़र आ रहे हैं। गुजरात के अखबारों में अमूमन हर दिन उनकी कोई न कोई खबर होती है। गोपाल इटालिया अपने विवादास्पद बयानों के लिए जाने जाते हैं और उन्होंने एक बार तो वहां के गृह मंत्री पर चप्पल ही फेंक डाला था। 

लेकिन इन नेताओं की अन्य बातों में जनता की खास दिलचस्पी नहीं दिखती। 

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नर्मदा जिले के गरूड़ेश्वर के एक होटल में काम कर रहे महेन्द्र भट्ट कहते हैं कि आम आदमी पार्टी की खासियत है कि वह मुफ्त में बिजली पानी देने के अलावा बेरोजगारी भत्ता की भी बात कर रही है। यह राज्य के आदिवासी इलाकों के अलावा अहमदाबाद जैसे शहर में भी अपना असर दिखा रहा है। राज्य में बिजली अब महंगी हो गई है और पिछली मई में इसमें 70 पैसे की बढ़ोतरी कर दी गई। पांच महीनों में यह चौथा मौका था कि बिजली की दरें बढ़ाई गई। इस साल महंगाई की मार से जूझते हुए लोअर मिडल और मिडल क्लास के लिए यह एक तकलीफदेह बात रही है। ऐसे में आम आदमी पार्टी का मुफ्त बिजली का लुभावना प्रस्ताव बड़ी तादाद में लोगों को अपनी ओर खींच रहा है। 

बेरोजगारी का मुद्दा

उधर, नर्मदा और बनासकांठा जिलों में आदिवासी जनसंख्या में बेरोजगारी बढ़ी है तो बेरोजगार अब पार्टी के बेरोजगारी भत्ता के वादे की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं और यह भाजपा के लिए चिंता का सबब हो सकता है। नर्मदा जिले के ही आदिवासी अरूण बसावा बेरोजगारी की चर्चा तो करते हैं लेकिन वह किसे वोट देंगे, इस प्रश्न पर चुप्पी साध लेते हैं। बिजली की बढ़ी हुई कीमतों के बारे में वह भी चर्चा करते हैं। यहां पर यह बताना जरूरी है कि गुजरात में लगभग दो दशक पहले तत्कालीन मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्य के सोलह आदिवासी जिलों में पक्की सड़कें बनवा दीं और बिजली की भी व्यवस्था भी करवा दी थी। यह उनके गुजरात मॉडल की सफल पब्लिसिटी का बहुत बड़ा आधार बना था। लेकिन अब गुजरात में उनका यह मॉडल धुंधला पड़ने लगा है। 

2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद गुजरात में वह राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई नहीं दी। इसका नतीजा यह रहा कि महज आठ वर्षों में दो-दो मुख्य मंत्री बदल गये और अब तीसरे मुख्य मंत्री भूपेन्द्र पटेल एक साल से कार्यभार संभाल रहे हैं।

लेकिन राज्य के बहुत से हिस्सों में घूमने से साफ पता चलता है कि नरेन्द्र मोदी के गुजरात मॉडल पर अब धूल जम गई है। 

आदिवासी इलाकों में सड़कें टूट गई हैं, सरकारी भवनों में मेटेंनेंस की कमी दिखती है। नरेन्द्र मोदी ने अपने समय में पूरी स्वतंत्रता से काम किया लेकिन उनके बाद के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री की ओर ही देखते रहे। नतीजा हुआ कि जन कल्याण के कार्यों में शिथिलता आई। 

आज भी गुजरात में बड़े-बड़े पोस्टर दिखाई पड़ते हैं जिनमें बाईं ओर बहुत बड़े हिस्से में नरेन्द्र मोदी की तस्वीर है जबकि दांई ओर कोने में उसके आधे आकार की तस्वीर भूपेन्द्र पटेल की है। यह तस्वीर वहां की राजनीतिक हालत बयां करती है। 

गुजरात में आम आदमी पार्टी की दस्तक से भाजपा भी सक्रिय हो गई है और अब नरेन्द्र मोदी एक बड़ा दौरा करके लौट गये हैं जिससे पार्टी के कार्यकर्ताओं में उत्साह की लहर दौड़ गई है। गुजरात में नरेन्द्र मोदी का कद बहुत बड़ा है और राज्य की जनता उनकी ओर आशा भरी निगाहों से आज भी देखती है। यह बात उन्हें अच्छी तरह से मालूम है और इसलिए चुनाव तक उनके दौरे होते रहेंगे। 

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