सिनेमा तमाम कलाओं का संगम है, स्वयं एक कला है और पूँजी आधारित होने के कारण घाटे-मुनाफ़े के गणित से ग्रस्त भी है।
सिनेमा के बारे में यह बहस भी शाश्वत है कि क्या फिल्मों का काम सिर्फ मनोरंजन करना है या सकारात्मक कहानियों के ज़रिये समाज को प्रेरित करते हुए समाज में किसी तरह का आदर्श और नैतिकता स्थापित करना। अच्छा सिनेमा सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करता बल्कि कहीं न कहीं दर्शक को बेहतर मनुष्य, संवेदनशील और सतर्क नागरिक बनने की प्रेरणा भी देता है। अच्छी कहानियाँ, अच्छा निर्देशन, अच्छा अभिनय किसी फिल्म की सफलता के आवश्यक तत्व माने जाते हैं। लेकिन सिनेमा का इतिहास बताता है कि कारोबार का गणित यह सब उलटपुलट देता है। ख़राब कहानियों और ख़राब निर्देशन, ख़राब अभिनय के बावजूद फिल्में खूब कमाई कर लेती हैं। यह सिलसिला जारी है। हिंदी फिल्मों पर लचर कहानियों का इल्ज़ाम बरसों से लग रहा है लेकिन फिल्में कमाई भी कर रही हैं।
पटरी से उतरने का आरोप झेल रहे हमारे हिंदी सिनेमा के लिए एक बड़ी राहत यह रही कि 2023 फ़िल्मों की धमाकेदार कमाई का साल रहा। फिल्म उद्योग के कारोबार का हिसाब रखने वाले आँकड़ों के मुताबिक़ इस साल परदे पर पहुँची फिल्मों से लगभग 11,730 करोड़ रुपयों की रिकॉर्डतोड़ कमाई हुई। कोविड के दौर में फिल्म इंडस्ट्री को लगे तगड़े झटके की भरपाई के साथ-साथ इस साल फिल्में कमाई के मामले में ऐसी धुरंधर साबित हुईं कि तीन-चार सौ करोड़ की बात छोटी पड़ गई। यह साल पांच सौ करोड़ और उससे ऊपर की कमाई करने वाली फिल्मों के लिए याद किया जाएगा। इसका श्रेय सबसे ज्यादा शाहरुख खान को जाएगा जिनकी फिल्म ‘पठान’ ने साल की शुरुआत में ही झंडा गाड़ कर शाहरुख की बादशाहत वापसी का ऐलान कर दिया था।
‘पठान’ की ब्लॉकबस्टर कामयाबी से पहले के कुछ साल शाहरुख खान के लिए बहुत ख़राब बीते थे। उनकी फिल्में लगातार पिट रही थीं और निजी जिंदगी के मोर्चे पर विवादों की वजह से देश में उनकी छवि पर भी सवाल उठ रहे थे। बेटे पर कथित तौर पर नशीले पदार्थों के इस्तेमाल से जुड़े संगीन आरोप लगे थे जिन्हें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने ऐसा उछाला था कि देश के मध्यवर्ग का एक बड़ा हिस्सा शाहरुख खान को देशद्रोही मानते हुए न्याय के नाम पर उनके ख़ून का प्यासा हो चुका था और उनकी फिल्मों के बहिष्कार की आवाज़ें तेज़ हो रही थीं। फिल्मों के विश्लेषक मान रहे थे कि शाहरुख खान अब बतौर अभिनेता और स्टार चुक गये हैं। ऐसे में शाहरुख ने ‘पठान’ से एक्शन हीरो के किरदार में अपने आलोचकों और ट्रोल ब्रिगेड को करारा जवाब दिया। ‘पठान’ के गानों, दीपिका पादुकोण की बिकिनी के रंग को मुद्दा बनाकर फिल्म के बहिष्कार का नारा देने वाली मंडली के मंसूबे धरे रह गये और फिल्म ने हज़ार करोड़ का आँकड़ा पार कर लिया।
‘जवान’ तो ‘पठान’ से भी बड़ी हिट साबित हुई। साल की सबसे बड़ी हिट। ‘जवान’ ने घनघोर फॉर्मूला फिल्म होते हुए भी किसानों की आत्महत्या, क़र्ज़ माफ़ी, ख़राब स्वास्थ्य सेवाओं, गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौतों की सच्ची घटनाओं को कहानी में ढालने की हिम्मत दिखाई और दर्शकों से सीधे अपील की कि चुनावों में वोट देते समय उम्मीदवारों से कड़े सवाल पूछें। वर्तमान राजनीतिक माहौल के बीच व्यावसायिक सिनेमा के मौजूदा ढाँचे में यह एक साहसिक प्रयास था! फिल्म की जबरदस्त कामयाबी से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दर्शकों को फिल्म के निर्देशक और शाहरुख खान का यह फॉर्मूला पसंद आया।
अमिताभ बच्चन के एंग्री यंग मैन वाले दौर में मसाला सिनेमा समस्याओं के इस तरह के फिल्मी समाधान पेश करता रहा है और फिल्में खूब हिट भी होती रही हैं। ‘जवान’ ने एक लंबे अरसे बाद वही हासिल किया, कमाई के मामले में काफी बड़े पैमाने पर।
फिल्मों के कारोबारी पंडित ‘डंकी’ फिल्म के साथ शाहरुख खान से हज़ार करोड़ वाली हैट्रिक की उम्मीद लगाये बैठे थे लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। राज कुमार हीरानी और शाहरुख खान मिल कर वह जादू नहीं जगा पाए जो हीरानी की पिछली फिल्मों में दिखा था। फिर भी फिल्म ने सम्मानजनक कमाई की है। शाहरुख के लिए यह साल बहुत अच्छा साबित हुआ है। तीन फिल्मों में से दो ब्लॉकबस्टर रहीं। यह दिलचस्प संयोग है कि तीनों फिल्मों में शाहरुख खान का किरदार फ़ौजी का है।
जिन शाहरुख की देशभक्ति को संदेह से देखा जा रहा था, वह नये राष्ट्रवादी हीरो बन कर उभरे इस साल। सलमान खान की ‘टाइगर 3’ की कामयाबी में भी शाहरुख की मौजूदगी मददगार रही।
पचास पार के नायकों के लिए बहुत अच्छा रहा साल। शाहरुख और सलमान तो कामयाब हुए ही, अक्षय कुमार की ‘ओएमजी2’ ने भी अच्छा कारोबार किया। हाशिये पर चले गये सनी देओल की भी जबरदस्त वापसी हुई इस साल ‘ग़दर 2’ के साथ। लगभग 700 करोड़ की कमाई वाली ‘गदर 2’ की कामयाबी का फार्मूला पुराना ही था- पाकिस्तान विरोध, हिंदू-मुसलमान, उग्र राष्ट्रवाद । ‘केरल स्टोरी’ की कामयाबी कहीं न कहीं ‘कश्मीर फाइल्स’ की तरह ही हमारे वर्तमान समाज के एक बड़े हिस्से की मुस्लिम ग्रंथि की तरफ इशारा करती है।
रणबीर कपूर की फिल्म ‘एनिमल’ जबरदस्त कामयाबी के बावजूद विचलित करने वाली फिल्म है। ‘एनिमल’ ने ‘जवान’ और ‘पठान’ के बाद सबसे ज्यादा कमाई की। रणबीर कपूर के अभिनय की प्रशंसा भी बहुत हुई है लेकिन फिल्म का ज़हरीला मर्दवाद और हिंसा उतने ही विचलित करने वाले है। ‘एनिमल’ समाज के लिए ख़तरनाक सिनेमा है। ‘एनिमल’ के साथ रिलीज़ हुई ‘सैम बहादुर’ विकी कौशल के अभिनय का एक और सुंदर रूप सामने लाती है। विकी कौशल बहुत सक्षम अभिनेता हैं । ‘डंकी’ में छोटी सी भूमिका में सब पर भारी पड़े हैं। इस साल उनकी फिल्म ‘ज़रा हटके ज़रा बच के’ बॉक्स ऑफ़िस पर सफल रही और ‘द ग्रेट इंडियन फ़ैमिली’ ने सांप्रदायिक सद्भाव के सुंदर संदेश की वजह से तारीफ बटोरी।
लेकिन क्या बॉक्स ऑफ़िस सफलता ही सब कुछ है? मनोज बाजपेयी अपने काम से इसे निरंतर नकारते आये हैं। इस साल दो फिल्मों - ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ और ‘जोराम’ - में मनोज बाजपेयी का कमाल का अभिनय उन्हें समकालीन अभिनेताओं की एक अलग ही श्रेणी में स्थापित करता है। विधु विनोद चोपड़ा के निर्देशन में इस साल आई ‘बारहवीं फ़ेल’ सकारात्मक और प्रेरक सिनेमा का उत्कृष्ट उदाहरण है।
दर्शक सिर्फ भव्यता के लिए सिनेमाहॉल न आए, अच्छी, सीधी-सादी कहानियों को भी ज्यादा दर्शक मिलने चाहिए। जो सिनेमा जीवन को गढ़ता है, उसे बढ़ावा देना समाज की भी जिम्मेदारी है। नया साल अच्छी फिल्मों के लिए ज्यादा उम्मीद जगाए और ज्यादा जगह बनाए, यह प्रयास होना चाहिए।