देश ने 100 करोड़ वैक्सीन का उत्सव देखा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे देश की उपलब्धि बताकर और बीजेपी ने ‘मोदी का धन्यवाद’ कहकर अपनी पीठ थपथपाने की कोशिश दिखलायी है। मगर, यही उपलब्धि सरकार की पोल भी खोल रही है। वैक्सीन ले चुके लोगों का वैश्विक औसत 36.77% है, जबकि भारत में यह औसत मात्र 22.28% है। 14 फ़ीसदी से ज़्यादा का यह नकारात्मक अंतर भारत को 100 करोड़ वैक्सीन के लक्ष्य पाने पर उत्सव मनाने की इजाज़त क़तई नहीं देता।
यह संतोष की बात है कि हमने 100 करोड़ वैक्सीन की डोज देने का मुकाम हासिल कर दिखाया। मगर, इस उपलब्धि तक पहुँचने से पहले हमने बहुत बुरे दिन देखे हैं। बड़ी क़ीमत देश ने चुकाई है। लाखों लोगों की मौत देश ने देखा है। गंगा लाशों को संभाल न सकी। यहाँ तक कि धरती ने भी लाशों का बोझ सहन करने से मना कर दिया। हवा ने बता दिया कि कोरोना की महामारी में भारत ऑक्सीजन तक का प्रबंधन नहीं कर पाया। बगैर योजना के लॉकडाउन, लोगों का सड़क पर अपने-अपने घरों की ओर लौटना और रास्ते में दम तोड़ना, करोड़ों लोगों की बेरोज़गारी और तमाम तरह की दिक्कतें लोगों ने झेलीं।
100 करोड़ वैक्सीन का श्रेय लेने सत्ताधारी दल और उसके नेता बहुत जल्द सामने आ गये लेकिन महामारी में दुनिया के स्तर पर नंबर दो का पोजिशन ले चुकने के बाद उसकी ज़िम्मेदारी को झटकने का काम सत्ताधारी पार्टी बीजेपी ने बख़ूबी किया। देश के विपक्ष ने सरकार को समय-समय पर आईना दिखाया लेकिन सरकार उसे अपनी तसवीर मानने से ही इनकार करती रही। सवाल यह है कि 100 करोड़ वैक्सीन का लक्ष्य पूरा होने में उस विपक्ष का कोई योगदान नहीं जिसने लगातार सवाल उठाए-
- वैक्सीन की खरीद का ऑर्डर देने में सरकार ने देरी क्यों की?
- निजी कंपनियों से वैक्सीन की खरीद की ज़िम्मेदारी प्रदेशों पर क्यों छोड़ी गयी?
- वैक्सीन के अलग-अलग दाम क्यों तय हुए?
- जब देश को वैक्सीन की ज़रूरत थी तब वैक्सीन विदेश को निर्यात क्यों की गई?
- ऑक्सीजन का निर्यात भी चौंकाने वाली घटना थी जिसके बाद देश में ज़रूरत के वक़्त ऑक्सीजन की कमी रही। ऐसी स्थिति क्यों बनी?
जब सरकार कह रही थी कि देश में वैक्सीन की कमी नहीं है और प्रदेश की सरकारें लगातार शिकायत कर रही थीं कि उनके यहां पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन नहीं हैं या एक-दो दिन का ही स्टॉक बचा हुआ है तब भी यह नहीं माना गया कि वैक्सीन की कोई कमी हुई।
सवाल यह है कि अगर तब वैक्सीन थी तो क्या उन वैक्सीन को इंजेक्ट करने वाले नहीं थे कि 100 करोड़ वैक्सीन का लक्ष्य पूरा करने में 10 महीने लग गये? निश्चित रूप से तब या तो केंद्र सरकार झूठ बोल रही थी या फिर प्रदेश की सरकारें जहाँ देने के लिए वैक्सीन की डोज कम पड़ रही थी।
दोनों डोज में पाकिस्तान भी यूपी से आगे
उत्तर प्रदेश सबसे उल्लेखनीय राज्य है जिसे देश में वैक्सीन की सिंगल या डबल डोज देने वाला सबसे पहले नंबर का प्रदेश बताया जा रहा है। यहाँ 9.5 करोड़ लोग कम से कम एक वैक्सीन ले चुके हैं। मगर, दोनों वैक्सीन लेने वालों की तादाद देखें तो उत्तर प्रदेश देश में सबसे पीछे है। यहां महज 12.44 प्रतिशत लोगों ने ही दोनों डोज लिए हैं। पाकिस्तान में भी दोनों डोज ले चुके लोगों की संख्या उत्तर प्रदेश से ज़्यादा है। पाकिस्तान में 16.81% लोगों ने वैक्सीन की डोज पूरी कर ली है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर एक दिन में 30 लाख से ज़्यादा लोगों को वैक्सीन देने का करिश्मा कर दिखाने वाला बिहार दूसरा सबसे फिसड्डी प्रदेश है। यह यूपी से थोड़ा बेहतर है। यहाँ 13.33% लोगों ने वैक्सीन की दोनों खुराक ली है। झारखण्ड का नाम बिहार के साथ-साथ है जहां ऐसे लोगों की तादाद 13.49 फीसदी है।
अगर वैश्विक स्तर पर वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके आँकड़ों के औसत से तुलना करें तो इससे नीचे रहने वाले भारत के प्रदेशों में यूपी, बिहार और झारखण्ड के अलावा पश्चिम बंगाल (19.58%), तमिलनाडु (19.73%), असम (20.41%), पंजाब (19.73%), मणिपुर (20%) और मेघालय (18.3%) प्रदेश हैं। इनकी कुल संख्या 9 है।
भारत में पूरी तरह वैक्सिनेटेड प्रदेश जो वैश्विक औसत से बेहतर रहे उनमें शामिल हैं- हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, गोवा, मिज़ोरम, नगालैंड, सिक्किम, अंडमान निकोबार द्वीपसमूह, लद्दाख और लक्षद्वीप। ये सभी या तो छोटे प्रदेश हैं या फिर केंद्र शासित प्रदेश। भारत के ज़्यादातर बड़े राज्य कोरोना महामारी में पिछड़ गये। इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है?