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योगी मंत्रिमंडल के गठन में क्यों हो रही है देरी ? 

योगी मंत्रिमंडल के गठन में क्यों हो रही है देरी ? 

उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने के बाद भी योगी सरकार के गठन में इतना वक्त क्यों लग रहा है। क्या बीजेपी को सहयोगी दलों को मनाने में मुश्किलें आ रही हैं। 

उत्तर प्रदेश में चुनावी नतीजे आने के 15 दिनों के बाद भी नयी सरकार का गठन नहीं हो सका है। पर्याप्त बहुमत पाने और सब कुछ मन मुताबिक होने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में यूपी सरकार के गठन को लेकर बैठकों का दौर जारी है।

मुख्यमंत्री का नाम भी तय है और मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले अधिकांश नाम भी पर आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर बीजेपी कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। पार्टी बीते साल सरकार और संगठन के तालमेल को लेकर उठे सवालों और बैठकों के दौर के दोहराव से भी बचना चाहती है। इन्ही सबको देखते हुए यूपी में सरकार के गठन का इंतजार सामान्य से कुछ ज्यादा ही लंबा खिंच गया है।

मुख्यमंत्री के नाम पर पहले से एक राय 

बीजेपी ने यूपी विधानसभा का चुनाव योगी आदित्यनाथ के चेहरे को सामने रख कर लड़ा। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने योगी के नाम पर ही जनता से वोट मांगे। खुद योगी आदित्यनाथ गोरखपुर, अपने गृह क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लड़े और भारी मतों से जीते भी। नतीजे आने के साथ ही यह तय हो गया था कि अगले मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ योगी आदित्यनाथ को ही दिलायी जाएगी और वही अब अगले पांच साल तक सरकार के मुखिया होंगे। भारी भरकम जीत से योगी का कद न केवल यूपी में बल्कि देश भर में बढ़ा है और बीजेपी के लिए वो मोदी के बाद दूसरे सबसे बड़े आकर्षण के तौर पर उभरे हैं।

उपमुख्यमंत्रियों पर कशमकश

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने में जहां कोई संदेङ नहीं है वहीं सरकार में उप मुख्यमंत्रियों को लेकर जरुर बीजेपी के भीतर उहापोह की स्थिति है। बीजेपी नेतृत्व का एक हिस्सा जहां किसी को भी उप मुख्यमंत्री न बनाए जाने की हिमायत कर रहा है वहीं बड़े हिस्से का मानना है कि जातीय संतुलन बिठाने के लिए कम से कम तीन उप मुख्यमंत्री बनाए जाने चाहिए।

गौरतलब है कि राज्यों में उप मुख्यमंत्री के पद की कोई संवैधानिक व्यवस्था नहीं है बल्कि उसके अधिकार किसी कैबिनेट मंत्री के बराबर ही होते हैं। फिलहाल यूपी में उप मुख्यमंत्री के लिए जिन नामों को लेकर सुगबुगाहट हो रही है उनमें पुराने नामों में केशव प्रसाद मौर्य शामिल हैं तो ब्राह्म्णों के प्रतिनिधि के तौर पर ब्रजेश पाठक और दलित व महिला कोटे से बेबीरानी मौर्य का नाम सबसे उपर है। हालांकि एक कवायद पूर्व नौकरशाह अरविंद शर्मा को लेकर भी चल रही है। इतना तय है कि पहले की सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे दिनेश शर्मा को संगठन में भेजा जा सकता है।

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केशव मौर्य को लेकर है असमंजस की स्थिति 

योगी की पिछली सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे केशव प्रसाद मौर्य विधानसभा का चुनाव सिराथू से हार गए हैं तो दूसरे दिनेश शर्मा ने चुनाव ही नहीं लड़ा। बीजेपी में पिछड़ों के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर स्थापित केशव प्रसाद मौर्य का उचित समायोजन सबसे बड़ी गुत्थी है जिसे सुलझाने में लंबा वक्त लगा और बैठकों के कई दौर चले। स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी के पार्टी छोड़ने के बाद केशव प्रसाद मौर्य का महत्व और भी बढ़ जाता है और उन्हें योगी कैबिनेट में स्थान देना बीजेपी की मजबूरी भी है।हालांकि पहले यह खबर भी चली थी कि केशव प्रसाद मौर्य को केंद्रीय मंत्रीमंडल में स्थान देकर उन्हें संतुष्ट किया जा सकता है या फिर संगठन की कमान उनको दी जा सकती है। माना जा रहा है कि केशव ने अपनी रुचि इनमें से किसी काम में नहीं दिखायी है और वो सरकार में ही रहेंगे।

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असरदार मंत्रिमंडल चाहते हैं योगी और बीजेपी

बीजेपी यूपी के मंत्रिमंडल के गठन के जरिए जनता में यह संदेश देना चाहती है कि उसके यहां योग्यता की कद्र है और असरदार लोगों को ही मंत्री बनाया जाता है। माना जा रहा है कि योगी के नए मंत्रिमंडल में बड़ी तादाद में विषय विशेषज्ञ, पूर्व काबिल नौकरशाह और तपे तपाए राजनेताओं का सामंजस्य होगा। इस बार बीजेपी के टिकट पर पूर्व नौकरशाह राजेश्वर सिंह और असीम अरुण चुनाव जीत कर आए हैं तो पीएमओ में काम कर चुके अरविंद शर्मा पहले से मौजूद हैं। योगी के नए मंत्रिमंडल में इनको जगह मिल सकती है।

बीजेपी की कोशिश पिछड़ों और दलितों को भी उचित प्रतनिधित्व देने की है जिनका बड़ी तादाद में वोट इसे विपरीत परिस्थितियों में भी मिला है। महिलाओं को वोटों की जीत में बड़ी भूमिका होने के चलते उन्हें भी उचित प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है।

कुछ पुराने चेहरे रहेंगे बरकरार 

सतीश महाना, जय प्रताप सिंह, आशुतोष टंडन, सूर्यप्रताप शाही, रमापति शास्त्री, जितिन प्रसाद, रवींद्र जायसवाल, गिरीश यादव, सुरेश पासी और नितिन अग्रवाल जैसे पुराने नाम तो हर हाल मे मंत्रिमंडल में बरकार रहेंगे। योगी मंत्रीमंडल के पूर्व में मंत्री रहे और सबसे वरिष्ठ विधायकों में से एक सुरेश खन्ना को इस बार विधानसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है। योगी मंत्रिमंडल के पुराने चेहरों में 11 लोग चुनाव हार गए हैं। जबकि चार दर्जन ने जीत दर्ज की है।

माना जा रहा है कि कम से कम आधे पुराने मंत्रियों को दोबारा स्थान मिल सकता है औऱ आधे नए व युवा चेहरे जगह पा सकते हैं। नए और युवा चेहरों में शलभमणि त्रिपाठी, पंकज सिंह, राजेश त्रिपाठी, केतकी सिंह और दयाशंकर सिंह का नाम प्रमुखता से सामने आ रहा है।

सहयोगियों के समायोजन की है दिक्कत 

इस बार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सहयोगी रहे दलों में अपना दल (एस) के 12 तो निषाद पार्टी के 11 विधायक जीत कर आए हैं। अब इन दोनों दलों की मांग कम से कम दो मंत्री पद की और बड़े विभागों की है। बीजेपी नेतृत्व की पूरी कोशिश इन दलों को एक-एक मंत्री पद देकर संतुष्ट करने की रही है।

निषाद पार्टी के अध्यक्ष डा. संजय निषाद कम से कम अपने लिए एक कैबिनेट तो एक राज्य मंत्री की मांग कर रहे हैं। अपना दल की मुखिया अनुप्रिया पटेल के पति आशीष पटेल भी इतने की ही मांग कर रहे हैं। माना जा रहा है कि संख्याबल को देखते हुए सहयोगियों के लिए दो कैबिनेट व दो राज्य मंत्री का पद छोड़ा जा सकता है।

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