श्रीलंका में दूसरे दिन भी यानी 11 जुलाई को राजनीतिक गतिरोध जारी रहा। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के आवासों पर कब्जा जमाए प्रदर्शनकारियों को यह पता ही नहीं है कि उनका अगला कदम क्या होगा। विपक्षी नेताओं को अभी इस बात पर सहमत होना बाकी है कि गोटाबाया राजपक्षे और रानिल विक्रमसिंघे की जगह कौन ले सकता है। विक्रमसिंघे की नजर कार्यवाहक राष्ट्रपति की कुर्सी पर है।
प्रदर्शनकारी अभी भी राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के आवास, उनके समुद्र के किनारे वाले दफ्तर और प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास पर जमे हुए हैं। प्रदर्शनकारियों ने शनिवार को दोनों नेताओं के पद छोड़ने की मांग करते हुए इन पर कब्जा कर लिया था। राजधानी कोलंबो में पिछले तीन महीनों में विरोध का यह सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण दिन था।
हालांकि प्रदर्शनकारी कह रहे हैं कि इस्तीफे की आधिकारिक घोषणा होने तक वे वहीं रहेंगे। लेकिन श्रीलंका की राजनीतिक अस्थिरता कैसे दूर होगी, इसका कोई रोडमैप किसी दल के पास नहीं है।
प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने शनिवार को कहा था कि नई सरकार बनने के बाद वह पद छोड़ देंगे। हालांकि उन्होंने इस्तीफा दे दिया है लेकिन यह भी कहा है कि नई सरकार गठित होने तक वो इस पद पर रहेंगे। उनके इस्तीफे के कुछ घंटों बाद संसद के अध्यक्ष ने कहा कि गोटाबाया राजपक्षे बुधवार को पद छोड़ देंगे। विक्रमसिंघे के कार्यालय ने भी सोमवार को कहा कि राजपक्षे ने बुधवार को इस्तीफा देने के अपने पहले के फैसले की पुष्टि की है।
राष्ट्रपति राजपक्षे शनिवार से गायब हैं। उनका स्थान अज्ञात है, लेकिन उनके कार्यालय ने रविवार को कहा कि राष्ट्रपति ने जनता को रसोई गैस की खेप के तत्काल वितरण का आदेश दिया। इस आदेश के जरिए यह बताने की कोशिश की गई कि राजपक्षे अभी भी काम पर हैं।
बहरहाल, राजपक्षे और रानिल पर दबाव बढ़ गया था क्योंकि आर्थिक मंदी ने आवश्यक वस्तुओं की कमी को जन्म दिया, जिससे लोगों को भोजन, ईंधन और अन्य आवश्यकताएं प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ा।
विपक्षी दल के नेता एक वैकल्पिक सर्वदलीय सरकार बनाने पर बातचीत कर रहे हैं लेकिन वे किसी नतीजे पर पहुंच नहीं पा रहे हैं। कोई सरकार ही बेलआउट कार्यक्रम के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ बात कर सकती है। श्रीलंका को भारत ने भी पूरी मदद का भरोसा दिया है।
विधायक उदय गम्मनपिला ने कहा कि मुख्य विपक्षी यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट और राजपक्षे के सत्तारूढ़ गठबंधन को हटाने वाले सांसदों ने चर्चा की है और एकसाथ काम करने पर सहमत हुए हैं। मुख्य विपक्षी नेता साजिथ प्रेमदासा और दुल्लास अल्हाप्परुमा, जो राजपक्षे के अधीन मंत्री थे, को राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री के लिए प्रस्तावित किया गया है। उनसे यह तय करने का अनुरोध किया गया है कि संसद अध्यक्ष के साथ बैठक से पहले पदों को कैसे साझा किया जाए।
सेना को लेकर चिन्ता
गम्मनपिला ने कहा- हम एक अराजक स्थिति में नहीं रह सकते। हमें आज (सोमवार) किसी तरह आम सहमति पर पहुंचना है।
नागरिक प्रशासन के अभाव में सैन्य अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक सुरक्षा पर बयान देने से विपक्षी दल भी चिंतित हैं। प्रेमदासा के प्रवक्ता कविंदा मकलांदा ने कहा कि सांसदों ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल शैवेंद्र सिल्वा पर एक सार्वजनिक बयान देने पर चर्चा की है, जिसमें कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए लोगों के सहयोग का आह्वान किया गया है। उन्होंने कहा कि एक लोकतांत्रिक देश में एक नागरिक प्रशासन की आवश्यकता है, सेना की नहीं।
महत्वपूर्ण बिन्दु
यदि राजपक्षे के इस्तीफा देने तक विपक्षी दल सरकार बनाने में विफल रहते हैं, तो विक्रमसिंघे प्रधानमंत्री के रूप में संविधान के तहत कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाएंगे। हालांकि, प्रदर्शनकारियों की मांग के अनुरूप, विपक्षी दल उन्हें कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में भी कार्यभार संभालने की अनुमति नहीं देना चाहते हैं।
प्रदर्शनकारियों का कब्जा बना हुआ है
उनका कहना है कि विक्रमसिंघे को तुरंत हट जाना चाहिए और अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्धने को कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभालने की अनुमति देनी चाहिए।
राजपक्षे ने कमी को दूर करने और आर्थिक सुधार शुरू करने के प्रयास में मई में विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री नियुक्त किया। लेकिन कमियों को हल करने में देरी ने उनके खिलाफ जनता को खड़ा कर दिया और प्रदर्शनकारियों ने उन पर राष्ट्रपति की रक्षा करने का आरोप लगाया।
श्रीलंका भारत और अन्य देशों से सहायता पर निर्भर है। साथ ही आईएमएफ से बातचीत की कोशिश जारी है। विक्रमसिंघे ने हाल ही में कहा था कि आईएमएफ के साथ बातचीत जटिल थी क्योंकि श्रीलंका अब एक दिवालिया राज्य है।
श्रीलंका ने अप्रैल में घोषणा की थी कि वो विदेशी मुद्रा की कमी के कारण विदेशी ऋणों के रीपेमेंट को रोक रहा है। इसका कुल विदेशी कर्ज 51 अरब डॉलर है, जिसमें से इसे 2027 के अंत तक 28 अरब डॉलर चुकाना होगा।
महीनों के प्रदर्शनों ने राजपक्षे के राजनीतिक खानदान को बहुत पीछे कर दिया है। इस खानदान ने पिछले दो दशकों में अधिकांश समय तक श्रीलंका पर शासन किया है, लेकिन प्रदर्शनकारियों द्वारा इस खानदान पर कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया जाता रहा है।