करतारपुर गलियारे पर पैदा हुई गर्माहट क्यों हो गई ख़त्म?

12:20 pm Dec 01, 2018 | प्रमोद मल्लिक - सत्य हिन्दी

करतारपुर साहिब गलियारे पर काम शुरू होने के मौके पर भारत-पाकिस्तान रिश्तों में जो गर्माहट देखी गई, वह दो दिन भी नहीं टिक पाई। यह साफ़ हो चुका है कि दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने के लिए कोई बातचीत फ़िलहाल नहीं होगी। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने करतारपुर साहिब गलियारे पर काम शुरू करने का ऐलान करते हुए एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही थी। उन्होंने कहा था कि दिल्ली से रिश्ते सुधारने के मुद्दे पर उनकी सरकार और पाकिस्तानी सेना एक साथ है।

पाक सेना का हृदय परिवर्तन?

ऐसा क्या हो गया कि पाक सेना भारत से बेहतर रिश्ते चाहती है, यह सवाल उठना लाज़िमी है। पाकिस्तान में यह माना जाता है कि नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी से बात करना अधिक मुफ़ीद है। इस पार्टी की सरकार अधिक कड़े निर्णय ले सकती है और उसे लागू भी कर सकती है। पाकिस्तान अपनी बात मोदी सरकार से मनवा ले तो यह सरकार राष्ट्रवाद के नाम पर उसे जनता के गले उतार भी देगी।

वाजपेयी-मुशर्रफ़ बातचीत

कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ भारत की सबसे अहम बातचीत अटल बिहारी वाजपेयी के समय ही हुई थी। माना जाता है कि दोनों देश किसी समझौते के पास पहुँच चुके थे, पर अंत में बात बिगड़ गई। ग़ौर करने लायक बात यह है कि यह सब करगिल हमले के कुछ दिनों बाद ही हुआ था। बातचीत भी किसी और के साथ नहीं, करगिल के ‘विलन’ समझे जाने वाले परवेज़ मुशर्रफ़ के साथ हुई थी। 

भारत के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश को पाकिस्तानी सेना के समर्थन की बात चौंकाने वाली इसलिए है कि सेना बड़े पड़ोसी से बेहतर रिश्ते के बजाय तनातनी का माहौल बनाए रखना चाहती है। भारत-विरोध उसे मज़बूती देता है, उसे पैर फैलाने का मौक़ा मिलता है और वह चुनी हुई सरकार को धौंस में रखती है।

तख़्तापलट के बाद परवेज़ मुशर्रफ़ का पहला विदेश दौरा भारत ही था।

इसका मतलब यह भी नहीं है कि पाकिस्तानी सेना का ‘हृदय परिवर्तन’ हो गया है। इसे समझने के लिए अमृतसर में हुए आतंकवादी हमले पर ध्यान देना होगा। जाँच एजेंसियों ने कहा कि वहां जो ग्रेनेड फटा था, वह पाकिस्तान में बना हुआ था। इसे इस रूप में देखा जा रहा है कि आईएसआई खालिस्तान आंदोलन को एक बार फिर खड़ा कर रहा है। कुछ सिख संगठनों ने अमरीका, कनाडा, ब्रिटेन में रहने वाले सिखों के बीच खालिस्तान पर एक ‘जनमत संग्रह' साल में 2020 में करने का निर्णय किया है। समझा जाता है कि इस मुहिम के पीछे आईएसआई है। यानी, पाकिस्तानी सेना का भारत को लेकर रुख नहीं बदला है।

पाकिस्तान भले ही भारत से बातचीत को लेकर गंभीर न हो या उसकी सेना कोई नतीजा न निकलने दे, पर उसे यह संकेत देना है कि वह तो रिश्ता सुधारना चाहता है, पर क्या करे, दिल्ली ही ऐसा नहीं होने देना चाहती। आक्रामक रवैया तो भारत का है, वह तो दोस्ती के लिए तैयार है।

'इमरान की गुगली'

यह इससे भी साफ़ है कि पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने वृहस्पतिवार को सार्वजनिक तौर पर कहा कि इमरान ख़ान ने करतारपुर गलियारे पर भारत की ओर ‘गुगली गेंद’ फेंकी है। भारतीय कूटनीति पाकिस्तान पर बहुत साफ़ और एकरूपता बनाए रखने वाली नहीं रही है। मौजूदा सरकार की तो कोई पाकिस्तान नीति है, यह भी नहीं दिखता है। ऐसे में भारत सरकार ने इस्लामाबाद को बैठे बिठाए मौक़ा भी दे दिया। करतारपुर साहिब कार्यक्रम के एक ही दिन बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने साफ़ कह दिया कि दोतरफ़ा बातचीत शुरू करने की कोई योजना फ़िलहाल नहीं है।

पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी और सुषमा स्वराज

संयुक्त राष्ट्र की एक बैठक में दोनों देशों के विदेश मंत्री जाने वाले हैं। पहले यह तय हुआ था कि दोनों अलग से मिलेंगे हालाँकि इसका कोई अजेंडा नही बनाया गया था, पर इसे अच्छा तो कहा ही जा सकता है। सरकार ने इस बैठक को रद्द कर दिया है।  अब आम चुनाव तक कुछ होने की उम्मीद कम है। इमरान ख़ान भले ही चाहते हों कि सत्ता में आने के बाद वह अपने खाते में भारत-पाक मामले में कोई उपलब्धि जल्द-से-जल्द दिखा दें, लेकिन बीजेपी चुनाव के ठीक पहले पाकिस्तान पर अपना रुख लचीला नहीं कर सकती।