कोरोना अब और ख़तरनाक होता जा रहा है। अब वह हवा के ज़रिये भी इंसानों को संक्रमित करने लगा है। पहले वह इंसानों से इंसानों में फैलता था। ऐसे में सोशल डिस्टैंसिंग के साथ- साथ मास्क लगाना बेहद ज़रूरी हो गया है। इस बात की तस्दीक़ विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कर रहा है।
कुछ दिनों पहले ही कुछ वैज्ञानिकों ने भी इस पर चिंता जताई थी और कहा था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना के हवा में संक्रमण फैलने की बात को जानबूझ कर कम कर आँकता है।
अब क्या कहता है डब्लूएचओ?
इसके पहले इस अंतरराष्ट्रीय संगठन ने कहा था कि कोरोना का संक्रमण हवा से होने के बारे में कई सबूत मिले हैं, पर उनके बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है।डब्लूएचओ के संक्रमण रोकथाम व नियंत्रण विभाग की तकनीकी प्रमुख बेनीडेटा अलेग्रांत्सी ने जनीवा में मंगलवार को ‘द गार्जियन’ से कहा,
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‘भीड़ वाली जगह, बंद कमरों और जहाँ हवा आने- जाने का प्रबंध न हो, ऐसी जगहों पर हवा से कोरोना संक्रमण की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।’
बेनीडेटा अलेग्रांत्सी, तकनीकी प्रमुख, संक्रमण रोकथाम व नियंत्रण विभाग, डब्लूएचओ
उन्होंने इसके आगे कहा, ‘लेकिन इससे जुड़े और सबूत एकत्रित करने और उनके अध्ययन किए जाने की ज़रूरत है, हम इसमें मदद जारी रखेंगे।’
इसके पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि सांस की बीमारी फैलाने वाले कोरोना वायरस नाक और मुँह से छोड़े जाने वाले महीन कणों से फैलते हैं।
डब्लूएचओ को खुली चिट्ठी
सोमवार को 32 देशों के 239 डॉक्टरों ने डब्लूएचओ को एक खुली चिट्ठी लिखी थी, जिसे क्लिनिकल इनफेक्शस डिजीज़ पत्रिका ने छापा है। इसमें कहा गया था कि इस बात के पक्के सबूत हैं कि हवा में तैरते ये सूक्ष्म कण सांस लेने पर शरीर के अंदर जा सकते हैं और प्रभावित कर रोग फैला सकते हैं।इन डॉक्टरों व वैज्ञानिकों ने यह भी कहा कि ये कण हवा में काफी देर तक तैरते रहते हैं। इस ख़त में विश्व स्वास्थ्य संगठन से अपील की गई थी कि वह इसके अनुसार, अपने दिशा निर्देश में बदलाव करे।
क्या कहना है वैज्ञानिकों का?
इस चिट्ठी पर दस्तख़त करने वाले और कोलोरैडो विश्वविद्यालय में केमिस्ट का काम करने वाले वैज्ञानिक होज़े जिमेनेज़ ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा,
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‘हम चाहते हैं कि इन सबूतों को स्वीकार किया जाए, यह डब्लूएचओ की आलोचना नहीं है, यह एक वैज्ञानिक बहस है। हमें अपनी बात को सार्वजनिक तौर पर कहना पड़ा क्योंकि डब्लूएचओ हमारे दिए सबूतों को और हमारी बातों को सुनने से इनकार कर रहा था।’
होज़े जिमेनेज़, केमिस्ट, कोलोरैडो विश्वविद्यालय
जेमिनेज़ ने कहा कि इसका इतिहास रहा है कि हवा में तैरते कणों से रोग फैलने की बात को लोग पहले स्वीकार नहीं करते हैं, इसका विरोध करते हैं और इसके लिए बहुत ही पुख़्ता सबूत माँगते हैं, उसका स्तर बहुत ही ऊपर रखते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैज्ञानिक कोरोना से बचाव, उपचार के साथ-साथ इस महामारी से निपटने के तौर-तरीक़ों पर बुलेटिन भी जारी करता रहा है। यही कारण है कि 239 वैज्ञानिकों ने डब्ल्यूएचओ के पास अपना शोध भेजा था ताकि वह इन निर्देशों को जारी करे जिससे अधिक से अधिक लोग इस संदर्भ में सावधानियाँ बरत सकें। डब्लूएचओ ने इसे मान लिया है, अब इसके आगे का शोध होगा।