अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के अब बस कुछ घंटे ही रह गए हैं। अटकले तेज़ है कि कौन चुनाव जीतेगा। साथ ही एक सवाल उभर कर सामने आ रहा है कि अगर ट्रंप चुनाव हार गये तो क्या वो पूरी शालीनता से पद छोड देंगे
यही सबसे बड़ा डर है, जो अमेरिका के लोगों को परेशान किए हुए है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसकी पूरी संभावना है कि रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनल्ड ट्रंप यदि चुनाव हारते हैं तो वे उसे अदालत में चुनौती दे सकते हैं, वोटों की गिनती में देर तो हो ही सकती है।
डोनल्ड ट्रंप ने कई हफ़्ते पहले ही चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठा कर यह संकेत दे दिया था कि नतीजा उनके पक्ष में नहीं रहा तो वे उसे मानने को बाध्य नहीं होंगे। उन्होंने दो दिन पहले एक बार फिर चुनाव प्रक्रिया पर सवालिया निशाना लगाया।
चुनाव प्रक्रिया पर सवाल
उन्होंने कहा कि युनाइटेड पोस्टल सर्विस के एक कर्मचारी को काम से हटा दिया गया, क्योंकि चुनाव पूर्व दिए गए वोटों के कई मतपत्र कूड़े के ढेर पर पड़े हुए मिले। दरअसल ट्रंप ऐसा कह कर चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं। ऐसे में वह चुनाव नतीजों को मानने से इनकार कर दें तो क्या ताज्जुबअमेरिकी चुनाव को लेकर इस तरह की अनिश्चितता पहले कभी नहीं देखी गई है।
इस बार के अमेरिकी चुनाव का क्या नतीजा होगा, देखें सत्य हिन्दी का यह वीडियो।
अमेरिका में चुनाव से पहले ही लोगों को मतदान का अधिकार है। और लगभग 9 करोड़ लोग अब तक अपने मताधिकार का प्रयोग कर भी चुके है। लेकिन ये पोस्टल बैलट हैं इनकी गिनती बाद में होती है। पहले चुनाव दिन के वोटों की गिनती होगी।
नतीजों में होगी देर
पोस्टल बैलट चूंकि इस बार बहुत अधिक यानी करोड़ों में है, लिहाज़ा उसके बग़ैर चुनाव नतीजों का एलान नहीं किया जा सकता है और इन वोटों की गिनती में देर होगी। लिहाजा, यह साफ है कि चुनाव के नतीजों में देरी हो सकती है। पेनसिलवेनिया, नॉर्थ कैरोलाइना और मिनेसोटा ऐसे राज्य हैं, जहां पोस्टल बैलट की गिनती में कई दिन भी लग सकते हैं।
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा व उनकी पत्नी मिशेल के साथ उप राष्ट्रपति उम्मीदवार कमला हैरिसफ़ेसबुक
इस बार यब आशंका भी जताई जा रही है कि चुनाव के बाद बड़े पैमाने पर हिंसा भी हो सकती है। यदि ऐसा हुआ तो यह पहली बार होगा कि राष्ट्रपति चुनाव में खून-ख़राबा हो। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार, आर्म्ड कनफ्लिक्ट लोकेशन एंड इवेंट डेटा प्रोजेक्ट और मिलिशियावॉच ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पेनसिलवेनिया, जॉर्जिया, मिशिगन और विस्कोन्सिन जैसे बैटलग्राउंड स्टेट्स यानी कांटे की टक्कर वाले राज्यों में हिंसा हो सकती है।
हिंसा की आशंका
दक्षिणपंथी मिलिशिया यानी हथियारबंद समूहों से डोनल्ड ट्रंप और उनके प्रशासन की नज़दीकी जगज़ाहिर है। ये मिलिशिया या हथियारबंद लोग खुले आम हिंसा और ख़ून-ख़राबा की वकालत करते हैं।
कम से कम 9 मिलिशिया ऐसे हैं जो खुले आम ट्रंप का समर्थन भी करते हैं। इनमें से कुछ चर्चित समूह हैं- प्राउड बॉयज़, पैट्रियट प्रेयर, ओथ कीपर्स, लाइट फ़ुट मिलिशिया, सिविलियन डिफेन्स फोर्स, अमेरिकन कंटेनजेन्सी और बुगालू बॉयज़।
क्या कहता है संंविधान
अमेरिका के इलेक्टोरल काउंट एक्ट के तहत यह प्रावधान है कि हारने वाला उम्मीदवार उचित आधार पर अदालत जा सकता है और वह चुनाव नतीजों को लटका सकता है। वह चाहे तो अगले राष्ट्रपति के शपथग्रहण समारोह के समय तक यानी 20 जनवरी 2021 तक मामला लटकाए रख सकता है।'विल ही गो' पुस्तक के लेखक लॉरेन्स डॉगलस ने 'द अटलांटिक' पत्रिका से कहा,
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अमेरिकी संविधान सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के लिए निश्चित व्यवस्था नहीं करता है, वह यह मान कर चलता है कि हस्तांतरण शांतिपूर्ण ही होगा।
लॉरेन्स डॉगलस, 'विल ही गो' पुस्तक के लेखक
हार नहीं मानेंगे
डॉगलस का मानना है कि ट्रंप चुनाव में हार स्वीकार नहीं करेंगे, कम से कम 'इंटरगेनम पीरियड' में तो नहीं ही मानेंगे। इंटरगेनम पीरियड का मतलब चुनाव से लेकर अगले राष्ट्रपति के शपथग्रहण तक, यानी इसकी पूरी संभावना है कि 20 जनवरी 2021 तक ट्रंप हार न मानें।फिर क्या होगा, सवाल यह है। अमेरिकी संविधान में इसके लिए कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है। राष्ट्रपति की मृत्यु होने या उनके पद से हटने की स्थिति में उप राष्ट्रपति अगले चुनाव तक पद भार संभाल सकते हैं, यह व्यवस्था है।
उप राष्ट्रपति
पर अमेरिकी व्यवस्था में उप राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव नहीं होता है, कोई उप राष्ट्रपति पद के लिए वोट नहीं डालता है, राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होता है, उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार उसका 'रनिंग मेट' होता है। जो उम्मीदवार जीतता है, उसका रनिंग मेट उप राष्ट्रपति बन जाता है।मौजूदा व्यवस्था के अनुसार, उप राष्ट्रपति माइक पेन्स का कार्यकाल डोनल्ड ट्रंप के साथ खत्म हो जाएगा, वह राष्ट्रपति पद का काम नहीं संभाल सकते। फिर क्या होगा
अमेरिकी संविधान इस पर चुप है।
ऐसा पहले हुआ है
याद दिला दें कि साल 2000 में जब रिपब्लिकन उम्मीदवार जॉर्ज बुश और डेमोक्रेट अल गोर के बीच चुनाव हो रहा था, अल गोर ने चुनाव हारने के बाद उसी रात अपनी हार मान ली। लेकिन अगले ही दिन इसे वापस ले लिया और वोटों की गिनती की मांग कर दी। इससे पूरे अमेरिका में हड़कंप मच गया।
जॉर्ज बुश सीनियर के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ने वाले डेमोक्रेट नेता अल गोर
अल गोर ने फ़्लोरिडा में वोटों के फिर से मतगणना की मांग की थी और मामला अदालत पहुँच गया था। फ़्लोरिडा की अदालत ने 12 दिसंबर को 5-4 से फ़ैसला दिया और गिनती की माँग खारिज कर दी गई थी।
अल गोर चाहते तो इस मामले को आगे ले जा सकते थे और वह कांग्रेस में इस पर अपील कर सकते थे। कांग्रेस उनकी अपील पर सुनवाई कर सकती थी। पर अल गोर ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने फ्लोरि़डा कोर्ट के फैसले के एक दिन बाद यानी 13 दिसंबर को कहा कि वह अदालत की बात को मानते हैं, बात यहीं खत्म करते हैं।
क्या इस बार भी ऐसा होगा अगर ट्रंप हारे तो क्या वो अल गोर की तरह अदालत का फ़ैसला मान लेंगे या फिर कुछ और रास्ता अख़्तियार करेंगे