इस युद्ध में इजराइल के 350 नागरिक अब तक मारे जा चुके हैं और दूसरी तरफ फिलिस्तीनी हिस्से में 227 नागरिक मारे जा चुके हैं। 8 अक्टूबर रविवार हमले का दूसरा दिन है। दोनों तरफ से भयावह वीडियो और फोटो जारी किए जा रहे हैं। महिलाओं और बच्चों के साथ क्रूरता के ऐसे वीडियो सामने आ रहे हैं कि आपको किसी न किसी पक्ष की निन्दा करनी ही होगी। लेकिन हर युद्ध में मनोवैज्ञानिक प्रचार साथ-साथ चलता है तो यह कहना मुश्किल है कि कौन सा देश युद्ध में महिलाओं और बच्चों से क्रूरता कर रहा है। वैसे बिना युद्ध हुए ही आए दिन ग़ज़ा पट्टी से निर्दोष नागरिकों और बच्चों के साथ क्रूरता के फोटो-वीडियो आते ही रहते हैं। लेकिन यहां बात हो रही है कि कौन सा देश किस तरफ है।
भारत वर्षों तक फिलिस्तीन का अभिन्न मित्र रहा है। यासर अराफात और इंदिरा गांधी के समय यह मित्रता चरम पर रही है। जवाहर लाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी, नरसिम्हा राव, डॉ मनमोहन सिंह तक भारत का झुकाव फिलिस्तीन की ओर रहा है। स्व. सुषमा स्वराज आखिरी विदेश मंत्री थीं जो इजराइल की यात्रा से पहले फिलिस्तीन भी गई थीं लेकिन दरअसल 2014 में भाजपा के सत्ता में आते ही भारत की इजराइल नीति पूरी तरह बदल गई और उसने फिलिस्तीन के लिए सारे रास्ते बंद कर दिए। यही वजह है कि 7 अक्टूबर को जब हमास ने इजराइल पर हमला किया तो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान सबसे पहले आया। उन्होंने कहा कि इस मुश्किल घड़ी में भारत अपने अभिन्न मित्र इजराइल के साथ खड़ा है।
अमेरिका में किसी भी दल का राष्ट्रपति हो, उसकी नीति इजराइल समर्थक ही रहती है। क्योंकि अमेरिका में सारा कारोबार यहूदी व्यापारियों के पास है। जिसमें हथियारों के सबसे बड़े सौदागर यहूदी या यहूदी मूल के लोग ही हैं। हमास के हमले की सूचना मिलते ही राष्ट्रपति जो बाइडेन नेशनल टेलीविजन पर आए और कहा कि इज़राइल को अपनी रक्षा करने का अधिकार है। उन्होंने ईरान और अन्य देशों को एक स्पष्ट चेतावनी जारी की: "यह इज़राइल के प्रति शत्रुतापूर्ण होगा अगर कोई भी पार्टी इन हमलों का फायदा उठाने की कोशिश करेगी। यह फायदा उठाने का समय नहीं है। दुनिया देख रही है।"
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने विदेश विभाग द्वारा जारी एक बयान में कहा, "आतंकवाद को कभी कोई सही नहीं ठहराया जा सकता है। हम इजराइल की सरकार और लोगों के साथ एकजुटता से खड़े हैं और इन हमलों में मारे गए इजराइली लोगों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं।" .
रॉयटर्स के मुताबिक फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने इजराइल पर हमास के हमले का बचाव किया। अब्बास ने कहा- फिलिस्तीनी लोगों को अपनी रक्षा करने का अधिकार है। विशेषकर जब उनकी जमीन पर कब्जा करके "आतंक" फैलाया जा रहा हो।
ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामेनेई के सलाहकार ने शनिवार को फिलिस्तीनी लड़ाकों को बधाई दी। याह्या रहीम सफ़वी के हवाले से कहा गया है, "फ़िलिस्तीन और येरुशलम की आज़ादी तक हम (ईरान) फ़िलिस्तीनी लड़ाकों के साथ खड़े रहेंगे।" ईरान के टीवी चैनलों ने दिखाया कि ईरान के संसद सदस्य अपनी सीटों से उठकर "इजराइल मुर्दाबाद" के नारे लगा रहे हैं। ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनानी ने कहा, "यह ऑपरेशन अवैध कब्जाधारियों के सामने फिलिस्तीनी लोगों के आत्मविश्वास को दर्शाता है। इसने सभी को हैरान कर दिया।"
समझा जाता था कि ईरान से दोस्ती के कारण चीन फिलिस्तीन का समर्थन करेगा लेकिन उसका बयान दोनों पक्षों से शांति के लिए आया। चीनी विदेश मंत्रालय ने संबंधित पक्षों से "शांत रहने, संयम बरतने और नागरिकों की सुरक्षा के लिए शत्रुता को तुरंत समाप्त करने और स्थिति को और बिगड़ने से रोकने" का आग्रह किया। हालांकि चीन ने यह भी कहा कि "संघर्ष से बाहर निकलने का मूल रास्ता दो-देश समाधान को लागू करना और एक स्वतंत्र फिलिस्तीन देश की स्थापना करना है।" यानी स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र की स्थापना ही इसके समाधान का रास्ता है।
जर्मनी और फ्रांस ने इजराइल का समर्थन किया। जर्मनी के चांसलर स्कोल्ज़ ने सोशल मीडिया पर कहा, "इजराइल से भयावह खबर हम तक पहुंची। हम ग़ज़ा से रॉकेट हमले और बढ़ती हिंसा से गहरे सदमे में हैं। जर्मनी हमास के इन हमलों की निंदा करता है और इजराइल के साथ खड़ा है।" फ्रांस के राष्ट्रपति मैकरां ने इजराइल के समर्थन में कहा- "मैं पीड़ितों, उनके परिवारों और उनके करीबी लोगों के प्रति अपनी पूरी एकजुटता व्यक्त करता हूं।"
सऊदी अरब और मिश्र (इजिप्ट) ने युद्ध फौरन रोकने की अपील की। सऊदी अरब की ओर से कहा गया कि हिंसा रोकी जाए। यूएन सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई जाए। अरब ने इजराइल के समर्थन में कुछ भी नहीं कहा। मिश्र ने "गंभीर परिणामों" की चेतावनी दी और "अधिकतम संयम बरतने और नागरिकों को और अधिक खतरे में डालने से बचने" का आह्वान किया।
यूरोपियन यूनियन, कनाडा और ब्रिटेन ने इजराइल से हमदर्दी जताते हुए उसका समर्थन किया। कनाडा और ब्रिटेन ने कहा है कि वे हमेशा से इजराइल के साथ रहे हैं और रहेंगे। रूस ने भी तटस्थता दिखाई। रूस ने कहा कि दोनों देश संयम बरतें। हालांकि रूस से युद्धरत यूक्रेन ने इजराइल का समर्थन किया है।
इंडोनेशिया, कुवैत, कतर आदि ने फिलिस्तीन की जमीन पर इजराइल के कब्जे का मामला उठाते हुए कहा कि इस स्थिति के लिए इजराइल ही जिम्मेदार है। कतर ने कहा कि आए दिन फिलिस्तीनी लोगों पर अत्याचार किए जा रहे हैं जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। दूसरी तरफ तुर्की के राष्ट्रपति एड्रोजन ने दोनों पक्षों से शांति की अपील करते हुए तटस्थता का रास्ता अपनाया। दक्षिण अफ्रीकी देशों ने हमास के हमले की निन्दा की लेकिन साथ ही यह भी कहा कि इजराइल दो देश का क्यों नहीं स्थायी समाधान तलाशता। फिलिस्तीन को एक अलग देश की स्वतंत्रता मिलना चाहिए।
जापान, इटली, यूक्रेन, पोलैंड, चेक रिपब्लिक आदि ने हमास के हमले की निन्दा की। उन्होंने कहा कि इजराइल में निर्दोष नागरिकों को मारा जाना कहीं से भी जायज नहीं ठहराया जा सकता। जापान के प्रधानमंत्री किशिदा ने कहा कि उनकी संवेदानाएं मारे गए इजराइली परिवारों के साथ हैं।