हमास-इजराइल युद्ध मंगलवार 10 अक्टूबर को चौथे दिन में प्रवेश कर गया है। करीब 1600 लोग दोनों तरफ से मारे जा चुके हैं। इजराइल ने ग़ज़ा को पूरी तरह तबाह कर दिया है। हमास ने शनिवार 7 अक्टूबर को अचानक ही हमला किया था। उसने इसे अल अक्सा फ्लड्स नाम दिया था। हमास ने कहा था अल अक्सा में लगातार हो रहे इजराइली हमलों की प्रतिक्रिया में उसने ये हमला किया है। लेकिन सच सिर्फ इतना नहीं है। सच कुछ और भी है।
इस मुद्दे पर आगे बढ़ने से पहले कुछ और बातें भी साफ हो जाना चाहिए। इजराइल की सेना दुनिया के अव्वल फौजों में शुमार है। वो अमेरिका के मुकाबले में तो नहीं है लेकिन उसने खुद को इतना अत्याधुनिक उपकरणों से लैस किया है कि वो अमेरिकी सेना से कम भी नहीं है। इतना छोटा सा देश हथियार और सैन्य तकनीक बेचने में कई विकसित देशों को टक्कर दे रहा है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के बाद अगर किसी दूसरी खुफिया एजेंसी का नाम है, तो वो इजराइल की मोस्साद है। लेकिन ये सारी मजबूती 7 अक्टूबर को धरी रह गई, जब हमास ने अचानक हमला किया। तमाम खुफिया जानकारी और इजराइली फौज बेबस नजर आई। हालांकि अब इजराइल ने कड़ा जवाब दिया और हमास से कई गुना ज्यादा नुकसान फिलिस्तीन और हमास का किया है। ये हमले इजराइल अपनी खोई इज्जत को बहाल करने के लिए कर रहा है। लेकिन सवाल ये है कि अगर गाजा पूरी तरह नष्ट भी हो गया और इजराइल पूरी तरह उस पर कब्जा कर लेता है तो भी क्या उसकी इज्जत बहाल होगी।
ये हमले क्यों हुए, तीन खास वजहें
अलग-अलग विश्लेषक इसको अलग तरीके से देख रहे हैं। सत्य हिन्दी चैनल पर वरिष्ठ पत्रकार और सत्य हिन्दी के संपादक आशुतोष के कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार क़मर आग़ा ने अपना नजरिया पेश करते हुए बताया कि फिलिस्तीन का मुद्दा कई वर्षों से गुमनामी में चला गया था। सऊदी अरब और इजराइल के नए संबंध बन गए हैं। जबकि दूसरी तरफ अल अक्सा और आसपास फिलिस्तीनियों पर जुल्म बढ़ता जा रहा है। उसकी चर्चा दुनिया में होना बंद हो गई थी। इधर इजराइल ने जब कहा कि वो अल अक्सा का दो तिहाई हिस्सा अपने कब्जे में ले लेगा तो हमास को मौका हाथ लग गया। इसीलिए हमास ने फिलिस्तीन के मुद्दे को चर्चा में लाने के लिए हमले का रास्ता अपनाया। वो लोग पिछले डेढ़-दो साल से तैयारी कर रहे थे, रॉकेट बना रहे थे। यह लड़ाई कब्जे की लड़ाई है। अब इस मामले की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हो रही है। इजराइल बार-बार कह रहा है कि वो हमास और हिजबुल्लाह को खत्म कर देगा। लेकिन इजराइल भूल गया है कि आप विचारधारा की हत्या नहीं कर सकते।बाकी दो वजहें
प्रिन्सटन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बर्नार्ड हेकेल ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखे गए लेख में इसकी दो और वजहें भी बताई हैं। उन्होंने लिखा है कि हमास फिलिस्तीन में नेतृत्व की लड़ाई लड़ रहा है। उसका फिलिस्तीनी प्राधिकरण (पीए) के साथ मुकाबला है और ऐसे हमलों की सफलता इसे हासिल करने का एक तरीका है। पीए फ़िलिस्तीनियों की आधिकारिक सरकार है जिसने इज़राइल के साथ ओस्लो शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके परिणामस्वरूप वादा किया गया फ़िलिस्तीनी राज्य कभी नहीं बनेगा। इसके अलावा पीए भ्रष्टाचार और कुशासन से भरा हुआ है। इसने फिलिस्तीनी प्रतिरोध को प्रतिबंधित कर दिया है, इसे इज़राइल के साथ मिलीभगत के रूप में देखा जाता है। उसने फिलिस्तीन में अपनी वैधता लगभग खो दी है। ग़ज़ा में हमास बचेगा या नहीं, कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन वो उस फिलिस्तीन का नेतृत्व कर रहा है जो आजादी और आत्मनिर्णय चाहता है। दूसरी बड़ी वजह है उस पहल को खत्म कर देना, जो अभी सऊदी अरब और खाड़ी के अन्य मुस्लिम देशों ने इजराइल के साथ संबंध सामान्य बनाकर की थी। हमास को ईरान का समर्थन और समर्थन प्राप्त है। जब सऊदी अरब और खाड़ी देशों ने इजराइल के साथ दोस्ती शुरू की थी, फिलिस्तीन का मुद्दा खत्म हुआ मान लिया गया था।बर्नाड हेकेल ने लिखा है कि हाल ही में, यूएस राष्ट्रपति जो बाइडेन के नेतृत्व में, सउदी और इजराइल एक शांति समझौते पर बातचीत कर रहे थे। अगर वो समझौता हो गया होता, तो इससे क्षेत्र में इज़राइल और अमेरिकी पावर का ईरान के खिलाफ खाड़ी देशों और इज़राइल का नया गठबंधन खड़ा हो जाता। इन हमलों और फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इज़राइल के भयानक बदले कारण, यह संभावना नहीं है कि जल्द ही कोई शांति समझौता होगा। सऊदी सरकार के लिए ऐसे देश के साथ शांति स्थापित करना बहुत मुश्किल होगा जो अरब आबादी को परेशान कर रहा है।
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सऊदी अरब के तमाम शहरों में इजराइल के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं। इसके अलावा कुवैत, कतर, यमन, ईरान, इराक, दुबई समेत तमाम देशों में इजराइल विरोधी मूड के कारण वहां के शासक भी सहम गए हैं। खबर है कि सऊदी अरब ने इजराइल के साथ फिलहाल हर तरह की बातचीत रोक दी है। शांति समझौते का तो अब सवाल ही नहीं पैदा होता है।
ईरान का इस हमले से क्या है कनेक्शन
ऐसे हमले के लिए जिस लेवल की योजना की जरूरत होती है, उससे यह सवाल उठने लगा कि क्या हमास इसे अकेले कर सकता था। और अगर उसे मदद मिली है, तो क्या वो ईरान से आई थी। हालांकि ईरान ने हमास के ऑपरेशन की सराहना की है, लेकिन इसमें शामिल होने से इनकार किया है। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में ईरान ने एक अधिकृत बयान जारी कर हमले को "पूरी तरह से स्वायत्त और फिलिस्तीनी लोगों के वैध हितों के साथ अटूट रूप से जुड़ा हुआ" बताया है। लेकिन कोई इसे मानने को तैयार नहीं है। ईरान इस क्षेत्र में हमास का सबसे लंबे समय से समर्थक है, ऐसे में किसी को ईरान का बयान सच नहीं लग रहा है।
सीएनएन ने अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन फाइनर के हवाले से बताया कि यूएस का मानना है कि इज़राइल में हमास के हमलों में ईरान "मोटे तौर पर शामिल" है, लेकिन कहा कि अमेरिका के पास इस समय इन हमलों को ईरान से जोड़ने वाली "प्रत्यक्ष जानकारी" नहीं है।
अमेरिकी सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि ईरान लंबे समय से हमास को हथियार, ट्रेनिंग और अन्य वित्तीय सहायता दे रहा था। अमेरिका सबूत की तलाश में जुटा हुआ है। उसे ऐसे आदेश या योजना की जानकारी का इंतजार है जो ईरानी भागीदारी को बताता हो।बहरहाल, हमास और उसके फिलिस्तीनी आतंकवादी सहयोगियों, इस्लामिक जिहाद के साथ ईरान के विकसित होते रिश्ते अच्छी तरह से समझे जा सकते हैं। फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद जो ग़ज़ा में हमास से छोटा समूह है लेकिन अब एक महत्वपूर्ण लड़ाकू बल है। उसका और ईरान के साथ एक लंबे और सार्वजनिक गठबंधन को हर कोई जानता है।
दूसरी ओर, हमास का ईरान के साथ अधिक अस्पष्ट संबंध रहा है। सीरिया में गृह युद्ध के दौरान हमास सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद के खिलाफ था, क्योंकि ईरान असद के साथ था। लेकिन हमास भी अब ईरान के खेमे में लौट आया है। वो अब अपने मकसद के बारे में ईरान और उसके अर्धसैनिक सहयोगियों के साथ खुले तौर पर संवाद कर रहा है।
इज़राइल का आरोप है कि ईरान हमास को हर साल लगभग 100 मिलियन डॉलर की मदद करता है। 2021 में अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा था कि हमास को ईरान से धन, हथियार और प्रशिक्षण प्राप्त होता है, साथ ही कुछ धन अरब और अन्य खाड़ी देशों में जुटाया जाता है। इस इलाके में ईरान समर्थक लेबनान के शिया सशस्त्र समूह हिजबुल्लाह ने बार-बार फिलिस्तीनी इस्लामी समूहों के साथ मजबूत सुरक्षा समन्वय का दावा किया है। बता दें कि पश्चिमी दुनिया के अधिकांश और कुछ अरब देश हिजबुल्लाह, हमास और इस्लामिक जिहाद को आतंकवादी समूह मानते हैं।
हाल के दो महत्वपूर्ण घटनाक्रमों से पता चलता है कि हमले से ठीक एक महीने पहले, हमास पोलित ब्यूरो के उप प्रमुख, सालेह अल-अरौरी और फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद प्रमुख ज़ियाद अल-नखला ने बेरूत में हिजबुल्लाह महासचिव हसन नसरल्लाह से मुलाकात की थी। इनकी मुलाकात का फोटो भी सामने आया था।
इससे पहले अप्रैल में हमास के वरिष्ठ राजनीतिक नेता इस्माइल हानियेह ने नसरल्लाह के साथ बैठक के लिए लेबनान की राजधानी का दौरा किया था। हनियेह, जो गाजा पट्टी में रहते हैं, लेबनान की यात्रा पर कैसे पहुंचे, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है। क्योंकि हमास के सबसे बड़े नेता कभी भी सार्वजनिक दौरे या दूसरे देशों में नहीं जाते हैं।