क्या पहले से बेहाल पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था पर एफ़एटीएफ़ की गाज गिरने वाली है? क्या पाकिस्तान को काली सूची में डाल दिया जाएगा और उसके बाद उसे विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे संस्थानों से पैसे नहीं मिलेंगे। यह सवाल लाज़िमी इसलिए है कि पेरिस स्थित वित्तीय नियामक संस्था एफ़एटीएफ़ ने कहा है कि टेरर फन्डिंग रोकने के लिए 27 में से 25 मामलों में इस्लामाबाद नाकाम रहा है।
पाकिस्तानी रुपया 150 पार
यह ऐसे समय हुआ है जब पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बिल्कुल बदहाली के दौर से गुजर रहा है। अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले पाकिस्तानी रुपया 150 पार कर चुका है, सरकार के पास रोज़मर्रा के खर्च के लिए पैसे नहीं है। इससे पार पाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 6 अरब डॉलर का कर्ज देने से साफ़ इनकार कर दिया था। वह काफ़ी मान मनौव्वल के बाद ही राजी हुआ है। अमेरिका ने पहले ही हाथ पीछे खींच लिया है। पूंजी निवेश का स्रोत लगभग सूख चुका है। एक उम्मीद चीन पर है, क्योंकि एक तो राजनीतिक-भौगोलिक कारणों से वह पाकिस्तान का साथ दे रहा है, दूसरे उसके अपने व्यावसायिक हित हैं।लेकिन सवाल उठता है कि एफ़एटीएफ़ के मुद्दे पर पाकिस्तान क्यों सचेत नहीं हो रहा है। वह क्यों नहीं कार्रवाई कर रहा है। एफ़एटीएफ़ ने इस मामले में लश्कर-ए-तैयबा और उसके संगठन जमात-उद-दावा, जैश-ए-मुहम्मद और उसके संगठन फ़लाह-ए-इनसानियत का नाम लिया है।
एफ़एटीएफ़ ने पाकिस्तान से पूछा है कि आतंकवादी गुटों और उनसे जुड़े संगठनों के मदरसों, अस्पतालों और दूसरे दातव्य संस्थानों को मिलने वाले लगभग 70 लाख डॉलर के दान को उन तक पहुँचने के लिए क्या किया है।
पाकिस्तान को मिली मोहलत हो रही है ख़त्म
पाकिस्तान पहले से ही एफ़एटीएफ़ की निगरानी सूची में है, जहाँ इसे कार्रवाई करने और टेरर फन्डिंग रोकने के लिए 15 महीने का समय दिया गया था। यह मियाद इस साल अक्टूबर में ख़त्म हो रही है। फ़िलहाल पाकिस्तान ग्रे लिस्ट में है। यदि उसने कार्रवाई नहीं की और एफ़एटीएफ़ को संतुष्ट करने में नाकाम रहा तो वह काली सूची में डाल दिया जा सकता है। पर उसके लिए अच्छी बात यह है कि नवंबर में चीन एफ़एटीएफ़ का प्रमुख बनेगा। वह अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान को काली सूची में डाले जाने से बचाएगा।क्या है एफ़एटीएफ़?
एफ़एटीएफ़ 36 देशों का संगठन है, जिसका मक़सद ऐसे तमाम वित्तीय लेनदेन को रोकना है, जिससे मनी लॉन्डरिंग होती हो, आतंकवादी संगठनों या लोगों को धन महैया कराना मुमकिन हो या दूसरी तरह के ग़ैर-क़ानूनी आर्थिक क्रिया-कलाप होते हों। इसकी स्थापना 1989 में हुई और इसका मुख्यालय पेरिस है। इसकी स्थापना जी-7 देशों ने मनी लॉन्डरिेंग रोकने के लिए की थी, पर 2001 में 9/11 के हमले के तुरन्त बाद अक्टूबर में हुई बैठक में आतंकवाद से लड़ने को भी इसमें शामिल कर लिया गया।क्या है पाकिस्तान का स्टैटस?
एफ़एटीएफ़ के रडार पर पाकिस्तान पहले से ही है। इसने फ़रवरी 2015 में कहा था कि मनी लॉन्डरिंग रोकने में पाकिस्तान ने पहले से बेहतर काम किया है, लिहाज़ा उसे निगरानी सूची से बाहर कर दिया जाए। इसके बाद जुलाई 2018 में पाकिस्तान को एक बार फिर निगरानी सूची में डाल दिया गया। लेकिन इस बार उस पर ज़्यादा गंभीर आरोप हैं।काली सूची का मतलब?
यदि पाकिस्तान अक्टूबर तक टेरर फन्डिंग रोकने में कामयाब नहीं हुआ तो उसे काली सूची में डाल दिया जा सकता है। टास्क फ़ोर्स की काली सूची में फ़िलहाल दो देश हैं-ईरान और उत्तर कोरिया।इतना ही नहीं, मूडीज़, स्टैंडर्ड एंड पूअर और फ़िच जैस रेटिेंग एजन्सियाँ पाकिस्तान की सॉवरन क्रेडिट रेटिंग कम कर देगी। पाकिस्तान की मौजूदा रेटिेंग भी बहुत अच्छी नहीं है। यह रेटिंग और गिरी तो पाकिस्तान में कोई कंपनी निवेश करना नहीं चाहेगी, कोई देश कर्ज नहीं देगा। चीन की बात और है। चीन उसे पैसे दे सकता है और उसकी अर्थव्यवस्था को कुछ समय तक सहारा देकर टिकाए रख सकता है। पर अकेला चीन कितना पैसा देगा, यह सवाल है। दूसरी बात यह है कि चीन की शर्तें बेहद कड़ी होती हैं, उसकी परियोजनाएं बहुत महँगी होती हैं। कई देशों ने खुल कर उसका विरोध किया है। यहां तक कि पाकिस्तान ने कुछ चीनी परियोजनाओं को बंद करने का आग्रह बीजिंग से औपचारिक तौर पर कर दिया है।
इसलिए अब समय आ गया है कि पाकिस्तान बहानबाजी करने के बजाय ठोस कदम उठाए और हर हाल में टेरर फन्डिंग रोके। वह अपनी अर्थव्यवस्था पर ज़ोर दे। प्रधानमंत्री इमरान ख़ान जिस 'नया पाकिस्तान' की बात करते हैं, उससे यह उम्मीद बँधती है। पर वह कितना कारगर होंगे, यह अभी कहना मुश्किल है।