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क्या ईरान -इसराइल जंग से चुनाव प्रभावित होगा?

क्या ईरान -इसराइल जंग से चुनाव प्रभावित होगा?

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के बीच ही ईरान और इसराइल के बीच संघर्ष से मध्य पूर्व में तनाव और बढ़ गया है। तो क्या अमेरिका चुनाव पर इसका सीधा असर होगा?

राष्ट्रपति के चुनावी जंग में अमेरिकियों के बीच दो घटनाएं खासी महत्वपूर्ण हो गई हैं: पहली घटना का संबंध ईरान- इसराइल जंग से है; दूसरी है उपराष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेट मनोनीत टिम वाल्ज और रिपब्लिकन के जे. डी. वैंस के बीच हुई बहस। यह भी इत्तफ़ाक़ है कि बहस के ही रोज़ ईरान ने इसराइल पर मिसाइलों की बरसात कर डाली। ईरान ने पहली दफ़ा यहूदी राष्ट्र इसराइल के ख़िलाफ़ बैलिस्टिक मिसाइलों का इस्तेमाल किया और राजधानी तेल अवीव निशाना बना। बहस के समय तक 200 से अधिक मिसाइलें दागी जा चुकी थीं। ज़ाहिर है, बहस पर इस असली जंग की छाया न पड़े, यह कैसे हो सकता था। बहस का आग़ाज़ ही इसराइल पर ईरान के ताज़ा हमले से हुआ। दोनों परस्पर विरोधी नेताओं ने अपने अपने अंदाज़ में इसराइल की रक्षा की बात की, और ईरान को दोषी ठहराया। यह भी कहना था कि अमेरिका अपने मित्र देश को अकेला नहीं छोड़ेगा। यह सही भी है, अमेरिका ने इसराइल को हमले की अग्रिम चेतावनी दे दी थी और कई मिसाइलों को आकाश में बेअसर भी किया। दोनों नेताओं का यह भी समान स्वर था कि  ईरान-इसराइल जंग क्षेत्रीय जंग का रूप ले सकता है। जंग का विस्तार हो सकता है। जंग के नतीज़ों को भुगतने के लिए ईरान को तैयार रहना चाहिए।

यह सभी जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प इसराइल के पक्के समर्थक हैं, लेकिन राष्ट्रपति बाइडन का रवैया ढुलमुल रहा है। जबसे मध्य पूर्व में जंग छिड़ी है, तब से अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन इसराइल को हथियार भेजते आ रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही ‘युद्ध विराम’ की गुहार भी लगाते आ रहे हैं। लेकिन, इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू गुहार को नज़रअंदाज़ करते हुए नए नए मोर्चे खोलते जा रहे हैं। इसराइली सेनाएं लेबनान पर भी हमला कर रही हैं। ग़ज़ा को भी सबक़ सीखा दिया। अब ईरान के साथ नया मोर्चा खुल सकता है। चेतावनी दी ही जा चुकी है।

विभिन्न स्थानीय लोगों से बातचीत करने से एक सवाल उभरता है और वह यह है कि क्या  इसराइल ईरान पर तत्काल हमला करेगा या राष्ट्रपति -चुनाव की समाप्ति के बाद? अमेरिका नहीं चाहेगा कि चुनाव के दौरान इसराइल ईरान के विरुद्ध बदले की ‘निर्णायक कार्रवाई’ करे। इसका प्रतिकूल असर डेमोक्रेट प्रत्याशी कमला हैरिस पर पड़ सकता है। रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रम्प इसको भुनाने की कोशिश करेंगे। बहस के दौरान दोनों मनोनीत उम्मीदवारों ने अपने अपने वरिष्ठों -कमला हैरिस और ट्रम्प की नीतियों को दोहराया भी। लेकिन, कुछ लोगों का मत यह भी है कि यदि इसराइल लेबनान में नागरिकों को मारना जारी रखता है तो ट्रम्प को लाभ नहीं मिलेगा। वैसे पिछले दिनों ट्रम्प अपने भाषणों में अमेरिकी यहूदियों को चेतावनी दे भी चुके हैं। उनका यह कहना है कि यदि वे हारते हैं तो उसके लिए अमेरिकी यहूदी ज़िम्मेदार होंगे। स्थानीय लोगों की दृष्टि में ट्रम्प का यह कथन हास्यास्पद माना गया है। यहूदी स्वयं इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, बल्कि खिल्ली उड़ाते हैं। 

वास्तव में, अमेरिकी समाज में प्रधानमंत्री नेतन्याहू काफी विवादास्पद नेता बन चुके हैं। एक यहूदी प्रौढ़ महिला सुश्री करेंन के मत में इसराइली प्रधानमंत्री फासीवाद के समर्थक हैं। हिटलर ने किस प्रकार से लाखों यहूदियों को मारा था, उन्होंने उस ‘महाविनाश’ को भुला दिया है। वे आत्मरक्षा के नाम पर ग़ज़ा के लोगों के साथ वही कर रहे हैं जो हिटलर ने यहूदियों के साथ किया था। करेंन ने बताया कि उनके करीबी रिश्तेदार हिटलर के यातना शिविर के शिकार हो चुके हैं। वे इसराइल का दौरा करती रही हैं। जब मैंने उन्हें बताया कि मैं पोलैण्ड में दो यातना शिविरों को देख चुका हूं और उन लोगों की तस्वीरें भी देखीं जिन्हें गैस चैम्बर में मारा गया था, उक्त महिला भावुक हो गईं और आंखें डबडबाने लगीं। उन्हें नेतन्याहू से सख्त नफ़रत है। 

सामाजिक एक्टिविस्ट होने के कारण वे इसराइल के यहूदी परिवारों से जुड़ी हुई हैं। एक अन्य भारतवंशी कार्तिक का कहना था कि डेमोक्रेट और रिपब्लिकन के समर्थकों पर ईरान -इजराइल जंग का विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि अमेरिका में ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है जो नेतन्याहू को दोषी ठहराते हैं। वे अपने को सुरक्षित रखने के लिए मोर्चे -पर-मोर्चा खोलते जा रहे हैं। अब ईरान के साथ नया मोर्चा खोला जायेगा, बहाना होगा ‘बदला’। कार्तिक का मानना है कि अमेरिकी मतदाता अपना मन बना चुके हैं। वे ईरान-इसराइल से प्रभावित होने वाले नहीं हैं। दोनों ही दलों में कम-अधिक नेतन्याहू के समर्थक व विरोधी हैं। अलबत्ता, भारतवंशियों के गुजराती समुदाय में ट्रम्प भक्त अधिक हैं। नये  घटनाचक्र से उनकी भक्ति और अधिक मज़बूत होगी। निश्चित ही उनका ट्रम्प -समर्थन प्रधानमंत्री मोदी के बज़रिये है। एक अन्य भारत वंशी डॉ. मनस्विता की दृष्टि में आज बाइडन प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती हैरिकन तूफान से होने वाली विशाल क्षति से निपटना है। इस समय फ्लोरिडा, जॉर्जिया, और नॉर्थ कैरोलिना राज्यों में बाढ़ ने तबाही मचा रखी है। इन राज्यों में डेमोक्रेटिक पार्टी और बाइडन प्रशासन की साख दांव पर लगी है।” मैं नहीं समझती कि  मतदाताओं पर अंतरराष्ट्रीय मुद्दे अधिक हावी न होंगे।” वे स्वयं भी अपने पति के समान मतदाता हैं।

नब्बे मिनट तक चली उपराष्ट्रपति के दावेदारों के बीच बहस से एक बात साफ़ है कि अगले एक महीने तक अवैध आप्रवासी, स्वास्थ्य बीमा, ओबामा केयर, चाइल्ड केयर, मध्य वर्ग की आवास समस्या, सुपर रिच यनी अति अमीरों पर कर -सीमा, स्वदेशी उत्पादन को प्रोत्साहन, चीन की चुनौती, गर्भपात जैसे मुद्दे छाये रहेंगे।

बेशक, ओहायो के सीनेटर वैन्स ने ‘अमेरिका को फिर से महान बनाने और अर्थव्यवस्था के सुधार‘ पर विशेष ज़ोर दिया, जबकि मिंनीसोटा के गवर्नर वाल्ट्ज़ ने हैरिस की आर्थिक नीतियों को ही दोहराया। लेकिन, उन्होंने ट्रम्प पर उस समय करारा हमला किया जब उन्होंने बताया कि पूर्व राष्ट्रपति ने पिछले 15 सालों से कोई ‘संघीय कर’ नहीं चुकाया है। वे स्वयं के हित साधते रहते हैं। वैन्स के पास प्रभावशाली उत्तर नहीं था। वे उस समय भी कुछ सकपका गए जब संचालिका ने उनसे पूछा कि वे ट्रम्प का विरोध करते रहे हैं। उनकी नीतियों से असहमत रहे हैं। उनका ज़वाब था कि वे अब बदल गये हैं। डोनाल्ड ट्रम्प अच्छे नेता हैं। उनके कार्यकाल (2016 -20) में कोई जंग नहीं हुई थी। इसकी सबसे बड़ी वज़ह यह थी कि लोग उनसे डरते थे। लेकिन, यह दावा पूरी तरह सही नहीं है। ट्रम्प काल में भी मध्य पूर्व एशिया और अफगानिस्तान में अशांति रही है। उनकी उत्तर कोरिया की यात्रा निष्फल रही थी। यह सही है कि जो बाइडन का शासन काल (2020 -24) अशांत रहा है; पहले अफगानिस्तान; और अब ईरान- इसराइल जंग। इसकी काट विरोधी के पास नहीं थी। लेकिन, दोनों ने अपने अपने जवाबों के दौरान अपनी कमियों को भी स्वीकार किया। इसके साथ ही राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, शिशु कल्याण, आवास समस्या जैसे मुद्दों पर सहमति दिखाई।

दोनों उम्मीदवारों की बॉडी लैंग्वेज पर भी मतदाताओं और मीडिया की नज़र रही है; जहां वेंस की मुद्राएं बेहद संयत थीं और चेहरे पर महीन मुस्कान के साथ आत्मविश्वास झलक रहा था, वहीं वॉल्ट्ज की काया भाषा में कुछ आक्रामकता झलकी। मुख्तसर से, वेंस की मुद्राएं कमला हैरिस के सदृष्य थीं, जबकि कुछ स्थलों पर विरोधी की मुद्राओं में ट्रंप की झलक दिखाई दे रही थी। पाठक जानलें, वेंस की पत्नी ऊषा भारतीय मूल की हैं और डेमोक्रेट समर्थक रह चुकी हैं। विवाह के बाद उन्हें रिपब्लिकन समर्थक माना जा रहा है। बावजूद इसके, बहस का रूप संतुलित ही माना गया है। इसके विपरीत हैरिस ट्रंप बहस में कई उतार चढ़ाव थे; ट्रंप के खिलंदड़ी मिजाज़ और आक्रामकता का सामना हैरिस की मुस्कराहट भरी शालीनता ने किया और पहली बहस में ही बाज़ी मार ली! शायद यही वज़ह है, ट्रम्प ने अभी तक दूसरी बहस के संकेत नहीं दिए हैं। एक प्रकार से वे कमला हैरिस के साथ दूसरी बहस से बच रहे हैं क्योंकि पहली बहस के परिणाम अच्छे नहीं निकले हैं। उनका प्रदर्शन कमतर आँका गया है। पिछले दिनों उनकी सभाओं में भीड़ कम जुटी है। इससे भी वे चिंतित और नाराज़ हैं। मीडिया में उनकी नाराज़गी उछली है। 

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