भारत छोड़ रहे हैं लोग। बल्कि, कहें कि भारत से भाग रहे हैं लोग। ऐसा तब है जब नरेंद्र मोदी और अमित शाह हर रोज दावा कर रहे हैं कि भारत मैन्यूफैक्चरिंग हब बन चुका है, दुनिया भारत को आशा भरी नज़रों से देख रही है, भारत पांचवीं अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है, वगैरह-वगैरह। भारत वह तीसरा अभागा देश है जहां से देशवासी सबसे ज्यादा संख्या में पलायन कर रहे हैं। पहले नंबर पर चीन है। अरबपतियों के देश छोड़ने के मामलों में भी यही क्रम है।
मोदी 2.0 में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने देश को बताया था कि 2015 से 2021 के बीच करीब 8 लाख लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ी थी। मोदी 3.0 में वर्तमान गृह राज्यमंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने जो अपडेट लोकसभा में दिया है उसे पिछली रिपोर्ट से जोड़कर देखें तो 2015 से 2023 के बीच 9 साल में 12 लाख 39 हजार 111 लोगों ने देश छोड़ दिया है। इसका मतलब ये है कि हर दिन 377 से ज्यादा लोग देश छोड़ रहे हैं। दो साल पहले यह औसत 350 था।
देश छोड़ने वाले सारे लोग करोड़पति या अरबपति नहीं होते। धन से इतर भी वे बौद्धिकता, तकनीक और अन्य क्षमताओं से लैस होते हैं। इन्हें हम देश का क्रीम कह सकते हैं। क्रीमी पॉपुलेशन का पलायन करना देश का बड़ा नुकसान है। भावी पीढ़ियां इसे भुगतेंगी। क्रीमी पॉपुलेशन में देश का निवेश होता है मगर निवेश का फायदा किसी और देश को मिले तो ये निवेश व्यर्थ या डूबा हुआ ही समझा जाना चाहिए।
न्यूज वर्ल्ड हेल्थ और एलआईओ ग्लोबल की रिपोर्ट कहती है कि 2000 से 2014 के दरम्यान 14 सालों में 61 हज़ार भारतीय करोड़पतियों ने दूसरे देश की नागरिकता ली थी। भारत में करीब 3.57 लाख करोड़पति हैं। अगर 10 लाख डॉलर से अधिक संपत्ति वाले लोगों की बात करें तो 2015 से 2019 के बीच 29 हजार ऐसे भारतीयों ने देश छोड़ा था।
2024 में अरबपतियों के देश छोड़ने में भारत तीसरे नंबर पर रह सकता है
देश छोड़ने की घटना विश्वव्यापी है। दुनिया भर में 2024 में 1.28 लाख अमीर अपने देश से पलायन कर सकते हैं। यही आंकड़ा एक साल पहले 1.20 लाख था। आर्थिक रूप से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ताकत चीन से हो रहा अमीरों का पलायन भी कुछ कहानी कह रहा है।
21वीं सदी को एशिया की सदी बताने वाले जिनपिंग-मोदी के लिए यह चिंता का विषय है। एशिया से सबसे ज्यादा अमीरों का पलायन होगा तो 21वीं सदी एशिया की कैसे होगी?
स्वदेश में क्षोभ, विदेश से उम्मीद
राजनीतिक स्वतंत्रता और कारोबारी भविष्य के साथ-साथ अमीर लोग सुकून भरी जिन्दगी की गारंटी भी सुनिश्चित करना चाहते हैं। सीमा पर तनाव, युद्ध के हालात, युद्ध की आशंका, आतंकवाद, राजनीतिक अस्थिरता, सामुदायिक असंतोष, सांप्रदायिकता, नस्लीय भेदभाव जैसी आशंकाओं से पूंजी भयभीत होती है। यह बात आर्थिक महाशक्ति बनने वाले देश को अधिक शिद्दत के साथ समझनी होगी।
भारत छोड़ने वाले लोग इसकी वजह के तौर पर सबसे पहली चिंता सेफ्टी और सिक्योरिटी बताते हैं। यह फैक्टर व्यक्तिगत, पारिवारिक और आर्थिक क्षेत्र में भी होता है। वित्तीय चिंता दूसरी बड़ा कारण है देश छोड़ने का। कुछ लोग टैक्स से बचने के लिए भी देश छोड़ रहे हैं। वहीं रिटायरमेंट के बाद आराम की जिन्दगी की ओर आकर्षित होकर भी भारत से बाहर जा रहे हैं लोग। कारोबार के भविष्य और कारोबारी अवसर के कारण देश छोड़ने वालों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे लोग मध्यम आयुवर्ग के होते हैं।
विदेश में बसने का फ़ैसला वे लोग अधिक करते हैं जो नौकरी-पेशा के कारण एक बार विदेश जाते हैं और तुलनात्मक रूप से वहां जीवन का संघर्ष कम पाते हैं। ऐसे लोग लाइफ स्टाइल फैक्टर्स के साथ-साथ मौसम, प्रकृति और सुहावने दृश्यों के साथ जीने को अपनी प्राथमिकता बना लेते हैं। इन्हें लगता है कि इनके बच्चों के लिए अच्छी स्कूलिंग और शिक्षा भी भारत से बाहर विदेश में हो सकती है। यह कारण ये लोग जरूरत के तौर पर पेश करते हैं। भारत के हेल्थ केयर सिस्टम और स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग को भी वजह बनाकर देश छोड़ रहे हैं लोग।
यह जानना भी दिलचस्प है कि भारत के लोगों का पसंदीदा डेस्टिनेशन कौन है? इस्लामिक देश यूएई अरबपतियों का पसंदीदा देश है न सिर्फ भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए। हेनली एंड पार्टनर्स की रिपोर्ट के मुताबिक़ 2024 में 6700 लोग यूएई में बस सकते हैं। इस सूची में अमेरिका, सिंगापुर, कनाडा क्रमश: दूसरे, तीसरे और चौथे नंबर पर हैं। (नीचे देखें पूरी सूची)
अरबपतियों का पसंदीदा देश
विदेश के लिए आकर्षण और भारत छोड़ने के सारे तर्क भारत सरकार के उन दावों को नेस्तनाबूत करते हैं जो लगातार विश्वगुरु बनने की आकांक्षा को व्यक्त करते हैं। अगर भारत विश्वगुरु बनने की दिशा में भी बढ़ रहा होता तो भारत छोड़ने के साथ-साथ भारत में आ बसने के आंकड़े भी होते। इस मामले में भारत फिसड्डी है। आखिर क्यों भारत में बसने के लिए प्रेरित नहीं होते हैं देश? इसका कारण वही है जिन वजहों से भारत छोड़ रहे हैं लोग। ऊंचे स्तर का भ्रष्टाचार, करों का बोझ, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, मुश्किल जीवन वगैरह-वगैरह।