कोलकाता हाईकोर्ट के न्यायधीश के पद से इस्तीफा देकर भाजपा ज्वाइन करने वाले अभिजीत गंगोपाध्याय अपने एक बयान के कारण विवादों में आ गए हैं। एक टीवी चैनल ने उनसे इंटरव्यू के रैपिड फायर राउंड में कई सवाल पूछे थे।
इस दौरान उनसे गांधी और गोडसे में से किसी एक का चयन करने को कहा गया जिस पर वह तुरंत चयन नहीं कर पाए। उन्होंने इस सवाल पर कहा कि मैं इसका उत्तर अभी नहीं दूंगा। मुझे इस पर विचार करने की जरूरत है। उनके ऐसा कहने के बाद से उनकी जमकर आलोचना हो रही है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अभिजीत गंगोपाध्याय की अपने एक बयान के कारण आलोचना हो रही है। वह पिछले गुरुवार को भाजपा में शामिल हो गए थे।
वह शुक्रवार को उस समय आलोचनाओं के घेरे में आ गए जब एक टीवी एंकर ने उनसे महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे के बीच किसी एक को चुनने का सवाल पूछा, जिसके बाद उन्होंने कहा कि उन्हें "इसके बारे में सोचना होगा"।
रिपोर्ट कहती है कि गंगोपाध्याय का नाम नंदीग्राम में तामलुक से भाजपा के संभावित लोकसभा उम्मीदवार के रूप में सामने आया है। शुक्रवार को वह एक बंगाली समाचार चैनल को इंटरव्यू दे रहे थे, इस दौरान उनसे "गांधी और गोडसे" के बीच किसी एक का चयन करने के लिए कहा गया था।
इस पर उन्होंने गहरी सांस ली और कहा, "मैं अब इसका जवाब नहीं दूंगा, मुझे इसके बारे में सोचना होगा। एक अन्य उत्तर में, वामपंथ के साथ अपने परिवार के लंबे संबंधों का जिक्र करते हुए गंगोपाध्याय ने कहा कि उन्होंने नौकरी मांगी थी, लेकिन दूसरों को मिल गई, उन्हें नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने सीपीएम को "नारों और हठधर्मिता" की पार्टी करार दिया।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट कहती है कि उनके दोनों बयानों ने सोशल मीडिया पर तूफ़ान ला दिया। टीएमसी के वरिष्ठ नेताओं ने उनके बयान की जमकर आलोचना की है।
टीएमसी सांसद साकेत गोखले ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा है कि हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अभिजीत गंगोपाध्याय ने भाजपा में शामिल होने के लिए सोमवार को इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने खुद कहा कि जब वह सिटिंग जज थे तो "बीजेपी ने उनसे संपर्क किया था"।
साकेत गोखले ने एक्स पर लिखा है कि, एक टीवी शो में इस शख्स से 'रैपिड फायर' पूछा गया।जब उनसे पूछा गया कि गांधी या गोडसे तो वे कहते हैं, "मुझे इसके बारे में सोचना होगा"।
एक व्यक्ति जो 4 दिन पहले तक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश था, वह गांधी और गोडसे के बीच निर्णय नहीं कर सकता। कल्पना कीजिए कि इस आदमी ने अदालत में कैसे फैसले सुनाए होंगे और उसकी मानसिकता क्या रही होगी।